
विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कर्नाटक के बंगलुरु जिले की एक विधानसभा सीट के वोटर लिस्ट का छः महीने अध्ययन कराने के बाद निष्कर्ष पर पहुंचे कि एक लाख से अधिक फर्जी वोटर हैं। इस तरह से देश की सभी सीटों पर गड़बड़ी की गई होगी। बिहार के 65 लाख वोटरों के नाम मृत अथवा बाहर हैं के नाम पर काट कर निकाल दिया चुनाव आयोग ने। लोकसभा चुनाव में सभी वोटर्स थे। एक साल में एक ही प्रांत में 65 लाख लोग गायब? महाराष्ट्र में केवल चार महीने में 80 लाख वोटर बढ़ गए। यह कौन सा लॉजिक है? सुप्रीम कोर्ट ने SIR की सुनवाई के समय कहा कि आप 15 ऐसे लोगों को कोर्ट में पेश करिए जो जीवित हों परंतु वोटर लिस्ट से उनके नाम काट दिए गए हों। तब स्वतंत्र और बेबाक पत्रकार योगेंद्र यादव जो बुद्धिजीवी भी हैं, बिहार से लगभग दो दर्जन जीवित को सुप्रीम कोर्ट में पेश कर खुद ही बहस की, जिससे जस्टिस को मानना पड़ा कि वाकई बिहार में वोट चोरी की जा रही है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को वह लिस्ट बिहार के हर जिले में सार्वजनिक करने का आदेश दिया, जिसे मान भी लिया गया। आखिर जिस लिस्ट को सार्वजनिक करने की मांग विपक्ष कर रहा था तो चुनाव आयोग ने हठधर्मिता क्यों अपनाई? मेरा वोट मुझे देखने का अधिकार है। फंडामेंटल राइट है, फिर क्यों नहीं सार्वजनिक करना चाहता था चुनाव आयोग? कहीं न कहीं अंदर से डरा हुआ था कि चोरी पकड़ी न जाए। अब सार्वजनिक होने के बाद वोट चोरी के मामले बढ़ेंगे ही। दूसरी अहम बात, सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि चुनाव आयोग को नागरिकता जानने का अधिकार किसने दिया। यह कार्य होम मिनिस्ट्री का है। हरियाणा चुनाव की धांधली के बाद पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि सीसीटीवी फुटेज देने का, फिर कानून क्यों बदल दिया गया? क्या संयोग कोर्ट से ऊपर है या सत्ता के दबाव में कानून बदला? सुप्रीम कोर्ट में वोट चोरी करता आयोग पकड़ा गया। अब सीसीटीवी फुटेज देने से मना करने का बहाना बनाते हुए प्रेस कांफ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना, मां-बहनों की गोपनीयता कैसे भंग किया जा सकता है क्या? तो माननीय सीईसी को लगे हाथ जवाब देना चाहिए कि सीसीटीवी लगाने से पहले क्या आपने देश की माताओं-बहनों की गोपनीयता के संदर्भ में अनुमति और सहमति लिया था क्या? सीसीटीवी लगाने का मतलब चुनाव में पारदर्शिता लाना होता है। चुनाव आयोग देख सकता है तो जनता क्यों नहीं? यह भी जवाब देना चाहिए कि पुलिस को क्यों अधिकार दिया कि वह मुस्लिम महिलाओं के बुर्के उतरवा कर चेहरा देखे? मतदाता की पहचान करने के लिए बूथ पर प्रत्याशियों के एजेंट होते हैं। चुनाव कार्य में लगे पोलिंग ऑफिसर होते हैं। उन्हें अधिकार हैं कि वे बुर्का उतरवाकर संतुष्ट हों। फिर पुलिस ने किस अधिकार से बुर्का उतरवाया? किस अधिकार से चुनाव आयोग ने मतदाताओं की पहचान के लिए तमाम मर्दों के बीच मुस्लिम महिला की गोपनीयता भंग करे? नहीं, मुख्य चुनाव आयुक्त महोदय! आप यह बहाना बनाकर देश की माताओं-बहनों के आंचल के पीछे छुप नहीं सकते। सच तो यह है कि सीसीटीवी फुटेज देने से आपकी चोरी पकड़ ली जाएगी, जिसके लिए आपको कोर्ट दंडित भी कर सकता है। आप सच से डरते हैं। अपनी चोरी सामने आने से भयभीत हैं। स्मरण होगा कि चंडीगढ़ मेयर चुनाव में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी के वोट चुराते हुए अनिल मसीह को रंगे हाथों सीसीटीवी के फुटेज से ही पकड़ा गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से री-काउंटिंग होने पर आपकी चोरी पकड़कर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को विजयी घोषित किया गया था। यही कारण है जो आप सीसीटीवी फुटेज नहीं देने के बहाने बना रहे हो, ताकि आपके हजारों अनिल मसीह की बेइमानी जनता के सामने नहीं आए। अगर आप ईमानदार हैं और निष्पक्ष पारदर्शी चुनाव कराने का दावा करते हैं, तो फिर सीसीटीवी फुटेज देने से मना नहीं करेंगे। सच तो यह है कि जीवित मतदाताओं के नाम काटे जाने के पीछे की मंशा दुनिया समझ चुकी है। बेनकाब हो गया है चुनाव आयोग। अन्यथा सच को किस बात का डर?
स्वतंत्र निष्पक्ष पत्रकार ने खुफिया कैमरे से एक कमरे में बैठकर बीएलओ द्वारा फॉर्म 7 भरते हुए, जिसमें केवल मतदाता नाम लिखकर खुद ही हस्ताक्षर करते रंगे हाथ ऑन कैमरा पकड़े गए थे। बीएलओ जिन्हें घर-घर जाकर जांच करानी थी, लेकिन समय इतना कम दिया गया कि सारे मतदाताओं के घर जाकर जांच करना असंभव था। इसीलिए दबाव में वे कमरे में बैठकर फॉर्म भरते पकड़े गए। एक अहम बात यह कि एक सेंटर में वहां की बीजेपी जिलाध्यक्ष क्यों साथ वाली चेयर पर बैठी मिलीं? साफ है उनके पास क्षेत्र के उन लोगों की सूची रही होगी, जिसके अनुसार नाम काटे गए जो बीजेपी को वोट नहीं देते। आप देश के संवैधानिक उच्च और स्वतंत्र पद पर आसीन हैं, जिससे निष्पक्षता और पारदर्शिता की अपेक्षा की जाती है। परंतु आप तो अपने पूर्ववर्ती से भी अधिक बड़े वोट चोर निकले। अन्यथा नियम नहीं बदलते मनमाने ढंग से। सीसीटीवी फुटेज और काटे गए नामों की सूची देने से मना नहीं करते? सच तो यह है कि इस पद पर आप अपनी काबिलियत से नहीं, सरकारी मंत्रालयों में रहकर स्वामिभक्ति दिखाकर नियुक्ति पाए हैं। आप भी अपने पूर्ववर्ती की भांति बीजेपी को चाहे जितनी अनियमितता और बेइमानी करनी पड़े, कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी भूल ने आपको हिम्मत और ताकत दी है, जो कोर्ट ने उस बेईमान अनिल मसीह को जेल नहीं भेजा। अगर जेल भेजा गया होता तो आप निश्चित ही ईमानदारीपूर्वक अपने पावन कर्तव्य का पालन करते और तब वोट चोरी के आरोप नहीं लगाए जाते। भूल रहे या निश्चिंत हैं आप कि आपके द्वारा की गई बेइमानी और पद के साथ नाइंसाफी से आप बीजेपी को जीत पक्की करते रहेंगे और बीजेपी की सरकार बनाते रहेंगे। यह मत भूलिए कि सुप्रीम कोर्ट संसद और सरकार से भी बड़ी एक हस्ती है, जिसे भगवान कहते हैं। कर्म-फल सिद्धांत के अनुसार आपके कर्मों का कुफ़ल या सुफल भगवान अवश्य देगा।
समूचा विपक्ष चुनाव आयोग की चोरी का सच बिहार वासियों को ही नहीं, समूचे देशवासियों के सम्मुख रख रहा है। जिस दिन जनता वास्तविकता समझ गई, बहुत बुरा होगा। याद रखें बिहार की धरती आंदोलन की धरती है। बिहार के चंपारण से महात्मा गांधी ने आंदोलन चलाकर तानाशाह ब्रिटिश सरकार को इंग्लैंड लौटने को मजबूर किया था और बिहार की ही धरती से जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी जैसी हस्ती को चुनाव में हराने के लिए जनता को प्रेरित किया था। उसी बिहार की धरती से राहुल गांधी और तेजस्वी यादव, बिहार की जनता को वोट चोरी का सबूत दिखाकर जागरूक करने में लगे हैं। जिनकी रैलियों में लाखों की भीड़ बताती है, जो भाड़े पर बुलाई नहीं गई है, कि बिहार से ही एक और परिवर्तन की बयार बहने जा रही है।