
यूं ही नहीं जीएसटी को गब्बर टैक्स कहा जाने लगा है। इतिहास के विद्यार्थी जानते होंगे कि अंग्रेज सरकार ने हमारे ही देश के नमक जो आम व्यक्ति के लिए अपरिहार्य है, पर टैक्स लगा दिया था और जानते हैं कि गांधीजी ने इस अमानवीय कानून को तोड़ने के लिए पैदल मार्च किया। समुद्र किनारे जाकर उन्होंने एक मुट्ठी नमक उठा लिया बिना टैक्स दिए। उस समय सरोजिनी नायडू ने खुशी से कहा, यह देखो कानून टूट गया। अंग्रेज तो विदेशी थे। उनका मकसद हमारे देश की खनिज संपदा, धन लूटना था। ज्यादा से ज्यादा धन अपने देश इंग्लैंड भेजना था लेकिन गांधी जी के द्वारा एक मुट्ठी नमक उठाकर ब्रिटिश राज को झुकने के लिए मजबूर कर दिया। ब्रितानिया हुकूमत भले ही आतातायी, लुटेरी, आक्रांता, क्रूर और दमनकारी रही हो किंतु उसने भी भोजन के काम आने वाले आटा दाल चावल दूध घी मक्खन दही, खाद्यतेल जैसी रोजमर्रा की चीजों पर टैक्स नहीं लगाया क्योंकि क्रूरता के साथ मानवता थोड़ी बहुत शेष थी उनमें। अंग्रेजों के प्रति भी नफरत का भाव नहीं रहा। गांधी जी से इंगलैंड में पूछा गया, कितनी बार जेल गए। गांधी जी ने कहा दर्जनों बार। तब अंग्रेजों ने पूछा, तब तो आप हम अंग्रेजों से बहुत नफरत करते होंगे। गांधी जी का जवाब था नहीं हम भारतीय नफरत नहीं करते। लेकिन अब गांधी बुद्ध महावीर, गुरू नानक, राम कृष्ण के देश में हिंदू मुस्लिम कहकर समाज में जहर घोलकर दंगे कराए जा रहे।जो काम अंग्रेज नहीं कर पाए वह स्वयं को हिंदुत्व का ठेकेदार कहने वाली बीजेपी सरकार कर रही है। मोदी सरकार ने आटा दाल चावल दूध घी दही उर्वरक पर भी गब्बर टैक्स लगा दिया। यही नहीं प्राकृतिक उत्सर्जन यानी पेशाब करने पर भी भारी फीस या दंड के साथ 12 प्रतिशत गब्बर टैक्स लगा दिया है। यह भी सोचने का विवेक रह गया कि पेशाब पर फीस और गब्बर टैक्स विदेशी सलानियों को भी देना पड़ेगा और जब वे लौटकर अपने देश जाएंगे तो इंडिया की बदनामी होगी। शायद सरकार यह भूल गई कि देश विदेश में सुलभ शौचालय लाखों की संख्या में बनवाकर सुविधा देने वाले विंदेश्वरी पाठक ने शौच के लिए भले फीस तय की हो लेकिन पेशाब करने के लिए निशुल्क व्यवस्था है। वाकया आगरा कैंट रेलवे स्टेशन का है। दो ब्रिटिश पर्यटक दिल्ली से आगरा कैंट पहुंचे। गाइड ने रिसीव किया। उन दोनो विदेशियों को पेशाब लगी। वे शौचालय गए। तब उन्हें 224 रुपए का बिल थमा दिया गया। सौ रुपए प्रति व्यक्ति पेशाब की फीस और बारह रूपए प्रति व्यक्ति जीएसटी। वह तो गाइड समझदार ही नहीं राष्ट्रप्रेमी और शुभचिंतक निकला। सोचा यदि ब्रिटिशर्स पैसे देने तो अपने वतन वापस जाकर भारत को बदनाम कर देंगे। दुनिया भर में थू थू होने लगेगी इसलिए उसने दो सौ चौबीस रुपए अपनी जेब से भर दिया और देश को बदनाम होने से बचा लिया।तनिक सोचिए तो यदि किसी परिवार के छः व्यक्ति होंगे तो छः सौ पेशाब करने के और बहत्तर रुपए गब्बर टैक्स के देने होगे। एक सामान्य गाइड को देश के सम्मान की चिंता हो सकती है लेकिन हिंदू हिंदुत्व की ठेकेदार बीजेपी सरकार को देश के सम्मान की, मानवता की तनिक भी चिंता नहीं है अन्यथा प्राकृतिक उत्सर्जन पर तो गब्बर टैक्स नहीं लगाती