Tuesday, October 14, 2025
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माता वैष्णो देवी के मार्ग पर विनाशलीला: कुदरत का कहर या श्राइन बोर्ड का लालच और लापरवाही

मनोज कुमार अग्रवाल
चौबीसों घंटे माता रानी के जयकारों से गुंजायमान रहने वाला माता वैष्णो देवी मंदिर का मार्ग अब सन्नाटे में डूबा हुआ है। विनाशकारी भूस्खलन ने यहां न केवल 34 जिंदगियां लील लीं, बल्कि हजारों परिवारों को अनिश्चितता और भय के अंधेरे में धकेल दिया। कुछ तीर्थयात्री राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र के रहने वाले थे। अज्ञात 10 शवों में से चार महिलाओं के हैं। अर्धकुंवारी मार्ग, जो तीर्थयात्रा का प्रमुख विश्राम स्थल है, अब मलबे और चट्टानों के ढेर में तब्दील हो चुका है। श्रद्धालुओं की भीड़ जहां कभी भक्ति और उमंग से भरी होती थी, वहां अब रोते-बिलखते लोग अपने प्रियजनों की तलाश में भटक रहे हैं। जम्मू कश्मीर के रियासी जिले के कटरा में स्थित वैष्णो देवी मंदिर के रास्ते में अर्धकुंवारी मां के पास हुए भूस्खलन में अब तक 34 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। बीस घायल अस्पतालों में इलाज के लिए भर्ती है। मृतकों की संख्या और बढ़ सकती है क्योंकि अभी कुछ और लोगों के दबे होने की आशंका है। बचाव कार्य जारी है। गंभीर हालात को देखते हुए उत्तर रेलवे ने जम्मू और कटरा स्टेशनों से आने-जाने वाली 58 ट्रेनों को रद्द कर दिया और 64 ट्रेनों को विभिन्न स्टेशनों पर बीच में ही रोकना पड़ा। धराली, थराली, मनाली, किश्तवाड़ के बाद माता वैष्णो देवी के त्रिकुटा पर्वत पर कुदरत के कहर से हुई इन मौतों ने देश को झकझोर दिया है। ताजा हादसे ने माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के कामकाज पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या उसकी नीतियां सही है? क्या लगातार निर्माण कार्य और बढ़ती दुकानें त्रिकुटा पर्वत पर उचित हैं? क्या भक्तों की संख्या बढ़ाने के लिए पहाड़ और पेड़ों का दोहन उचित है? क्या त्रिकुटा पर्वत पर भोजनालय चलाने और अन्य कामों के लिए डीजल वाहनों के आने-जाने की परमिशन देनी उचित है? क्या बाणगंगा से लेकर ऊपर दरबार तक बढ़ती जा रही गंदगी पर किसी का ध्यान है? शायद नहीं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने हादसे के बाद उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नियंत्रण वाले वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के उस फैसले पर सवाल उठाया, जिसमें भारी बारिश की चेतावनी के बावजूद तीर्थयात्रा जारी रखने की अनुमति दी गई थी। अब्दुल्ला ने कहा कि जब हमें मौसम के बारे में पता था तो लोगों को यात्रा मार्ग पर क्यों नहीं रोका गया? उन्हें सुरक्षित स्थान पर क्यों नहीं ले जाया गया? भारतीय वायुसेना ने जम्मू और उत्तरी पंजाब के बाढ़ग्रस्त इलाकों में राहत और बचाव कार्यों के लिए छह हेलीकॉप्टर को सेवा में लगाया तथा गुरदासपुर के डेरा बाबा नानक कस्बे से सेना के 38 और बीएसएफ के 10 जवानों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। इससे पहले राहत और बचाव सामग्री लेकर भारतीय वायुसेना का सी-130 परिवहन विमान, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की एक टीम के साथ जम्मू में उतरा। रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि बचाव कार्य में शामिल होने के लिए और अधिक परिवहन विमान तैयार रखे गए हैं। सोशल मीडिया पर अब इस हादसे को लेकर स्थानीय और बाहरी श्रद्धालुओं का गुस्सा फूट रहा है। जिस रास्ते से चौबीस घंटे सातों दिन रात श्रद्धालु माता के जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ते थे, वहां कुदरत के कहर ने गहरा घाव दिया है जिसे हजारों परिवार जीवन भर नहीं भुला पाएंगे। श्रद्धालु टिप्पणी कर रहे हैं- यह क्यों मां? मां के घर में यह कैसी आपदा है? क्या दोषी हम हैं? दुर्गा सप्तशती के आखिर में मां से क्षमा मांगने के लिए क्षमा प्रार्थना मंत्र का पाठ किया जाता है। भूल में हुई अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी जाती है। क्या यह भूल हमसे हुई है? सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है। कटरा का रहने वाला शख्स रोते हुए बता रहा है कि कैसे मां के घर त्रिकुटा पर्वत को विकास के नाम पर बर्बाद कर दिया गया है। सोशल मीडिया पर एक कटरावासी ने साफ-साफ कहा कि श्राइन बोर्ड की किताबों से लेकर रामायण तक में साफ-साफ लिखा है कि मां वैष्णो देवी प्रभु श्रीराम के लिए तपस्या कर रही हैं। श्रीराम ने उन्हें वादा किया था कि कलयुग में जब वो लौटेंगे तो माता को स्वीकार करेंगे। ऐसे में माता की तपस्या को प्रदूषण, गाड़ियों के हॉर्न, पेड़ों की कटाई और लगातार हो रहे निर्माण से क्यों बाधा पहुंचाई जा रही है? मां गुस्से में हैं। कारण साफ है,उनकी हजारों सालों की तपस्या में बाधा आ रही है। श्राइन बोर्ड भीड़ बढ़ाने के लिए त्रिकुट पर्वत को व्यवसाय के रूप में चलाने लगा है। गरीब भक्तों के लिए इंतजाम के नाम पर कुछ नहीं किया जा रहा है। बाणगंगा से लेकर भैरवनाथ तक हर जगह पहाड़ पर कूड़े के ढेर दिख रहे हैं। इस व्यक्ति ने बताया कि त्रिकुटा पर्वत पर हर जगह पानी है। हर जगह से पानी गिरता रहता है। पेड़ों के कारण वातावरण एकदम साफ-सुथरा था,मगर अब व्यवसायिकता सब कुछ बर्बाद कर रही है। अगर अब भी श्राइन बोर्ड और सरकार न जागी तो और बड़ा अनर्थ हो जाएगा। माता ही चली जाएंगी तो इन रौशनियों को देखने कौन आएगा? कौन त्रिकुटा पर्वत पर आएगा? सबसे जरूरी है कि मां की तपस्या में बाधा न पड़े। इसके लिए सभी को आगे आना होगा। एक अन्य पोस्ट मे लिखा हुआ है इस पर्वत को बख्श दो, पेड़ लगाओ इधर, तबाही हो गई है लोगों की, नहीं देखा जाता अब,दो महीने पहले भी तबाही की और अब फिर से तबाही कर दी आपने। माता रानी के पहाड़ों की जड़ें लेकर रख दीं आपने। कितना डिवलेपमेंट करना है। कहीं और जाकर डेवलपमेंट करो। इधर न करो। जो जहाजों की टिकट लेते है ना उसको श्राइन बोर्ड के खिलाफ कुछ नहीं बोलना है। जिसको अच्छे दर्शन चाहिए वह बोर्ड के खिलाफ बोलता ही नहीं है। यार बोलना पड़ेगा। जब त्रिकुटा पर्वत नहीं रहेगा ना तो कटरा भी नहीं रहेगा। मातारानी भी नहीं रहेगी। पहाड़ नहीं रहेगा। न यात्रा रहेगी। यह जगमग लाइटें नहीं रहेंगी। आपने पहाड़ की तबाही कर दी है। त्रिकुटा पर्वत को बख्श दो। आपको मातारानी का वास्ता। इस पहाड़ में सिर्फ पानी है। मैं बचपन से यहां रहता हूं।मेरी जन्मभूमि है कटरा। आप यहां जेसीबी चला रहे हो। स्थानीय लोगों का कहना है कि माता के दरबार तक लगातार पहाड़ी का कटान कर चार रास्ते बना लिए गए हैं। पहाड़ी पर आवागमन करते हैलीकॉप्टर सेवा और भारी तादाद में लोगों के आवागमन से भोगौलिक पर्यावरण पर बेहद बुरा असर पड़ रहा है। अभी भी कटरा और जम्मू के होटलों और गेस्ट हॉउस में करीबन 20 हजार यात्री रुके हुए थे। अर्धकुंवारी के पास 200 फीट हिस्सा बुरी तरह खराब हो गया है, यात्रा ट्रेक को ठीक करने में अभी समय लग सकता है। जम्मू के मौसम में सुधार तो आया है, लेकिन कश्मीर में लगातार बारिश से झेलम के साथ-साथ कई नदी-नालों का जलस्तर खतरे के निशान पर पहुंच गया है। इससे श्रीनगर में पानी भर गया है, अनंतनाग के अच्छाबल में भी कई जगह नदी का पानी लोगों के घरों में घुस गया है। मां वैष्णो देवी की यात्रा स्थगित होने की वजह से कटरा में सभी रजिस्ट्रेशन को बंद कर दिया गया है। श्राइन बोर्ड प्रशासन का कहना है कि मौसम में सुधार होने के बाद ही यात्रा को सुचारु रूप से चलाया जाएगा। हम सब जानते हैं कि बारिश और उसके बाद भूस्खलन को पूरी तरह रोकना निःसंदेह कठिन है, परंतु रडार प्रणाली, सूचना-संचार प्रौद्योगिकी, उपग्रह, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सेंसर, सेटेलाइट इमेजिंग और क्लाउड कंप्यूटिंग जैसी तकनीकों से इन स्थितियों का आंशिक पूर्वानुमान लगाकर लोगों को सचेत किया जा सकता हैं और इसके अनुरूप व्यवस्था को भी चुस्त-दुरुस्त बनाया जा सकता है। सरकारों को चेतावनी प्रणाली को सुदृढ़ करना, राहत तंत्र को प्रभावी बनाना और पहाड़ों पर अनियंत्रित निर्माण और पर्यावरण विनाश पर रोक लगाने की नीति अपनाना अनिवार्य है। फिलहाल माता के दर्शन करने गए श्रद्धालु यात्रा स्थगित होने के कारण बिना दर्शन वापिस लौटने के लिए विवश हैं।

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