
नई दिल्ली/मुंबई। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 4 अगस्त को उत्तर भारतीय विकास सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील शुक्ला को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और पार्टी की मान्यता रद्द करने की मांग को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की अनुमति दे दी। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के गुण-दोष पर कोई विचार नहीं किया है। सुनवाई के दौरान जब पीठ ने पूछा कि “क्या बॉम्बे हाईकोर्ट अवकाश पर है?”, तो शुक्ला के वकील ने याचिका वापस लेने की इच्छा जताई, जिसे न्यायालय ने अनुमति प्रदान करते हुए उच्च न्यायालय में जाने की छूट दी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि वह याचिका में उठाए गए सभी मुद्दों पर विचार करे। सुनील शुक्ला की याचिका में आरोप है कि मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने 30 मार्च 2025 को गुड़ी पड़वा रैली के दौरान एक भड़काऊ भाषण दिया, जिससे मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा भड़क उठी। खास तौर पर हिंदी बोलने वाले सरकारी कर्मचारियों को निशाना बनाया गया। याचिका में यह भी दावा किया गया कि राज ठाकरे की टिप्पणी के बाद शुक्ला को मनसे कार्यकर्ताओं से जान से मारने की धमकियां मिलीं, जिससे उन्होंने सुरक्षा की मांग की।
शुक्ला ने एफआईआर दर्ज करने के साथ-साथ भारत के चुनाव आयोग से मनसे की राजनीतिक मान्यता रद्द करने की भी अपील की है। उन्होंने तर्क दिया कि मनसे की कथित उत्तर भारतीय विरोधी गतिविधियाँ भारत के संविधान और चुनावी मानदंडों का उल्लंघन करती हैं। अपनी याचिका में शुक्ला ने 100 से अधिक गुमनाम धमकी भरे कॉल्स और सोशल मीडिया पोस्ट का हवाला दिया है, जो कथित रूप से उनके जीवन के लिए खतरा पैदा करते हैं। उन्होंने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं—153ए (समूहों के बीच वैमनस्य फैलाना), 295ए (धार्मिक भावनाओं का अपमान), 504 (जानबूझकर अपमान), 506 (आपराधिक धमकी) और 120बी (षड्यंत्र)—का उल्लेख किया है। साथ ही जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 को भी शामिल किया गया है, जो चुनावी प्रक्रिया में सांप्रदायिकता फैलाने पर प्रतिबंध लगाती है। अब यह मामला बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, जहां इस पर आगामी सुनवाई होगी।