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डॉ. सुदीप शुक्ल
देश की नजरें जब दिल्ली चुनावों की मतगणना और परिणाम के रुझानों पर टिकी थीं तब प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने मीडिया के सवालों पर प्रतिक्रया देते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल की छवि खराब हुई है, वह पैसे और शराब के चक्कर में फंस गए। यह प्रतिक्रिया इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अन्ना आंदोलन से ही आम आदमी पार्टी की जमीन तैयार हुई थी और यह जमीन आठ फरवरी को आए चुनाव परिणामों के साथ दरक गई है। 11 साल बाद आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता से बुरी तरह से बाहर हो गई है। आम आदमी पार्टी के एकछत्र नेता, संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल स्वयं चुनाव हार गए हैं। केजरीवाल की इस हार के साथ ही मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना को छोड़कर उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया सहित अधिकांश मंत्री तक अपनी सीट नहीं बचा पाए हैं। इस बात का अंदेशा तब भी लग रहा था जब जनवरी महीने में तेज चुनाव प्रचार के बीच दिल्ली यात्रा के दौरान मैंने वहां लोगों से बात की थी। आप के वास्तविक वोटर आम लोग ही आप और केजरीवाल के विरुद्ध मुखर थे। यह जनता के उस सपने के टूटने की अभिव्यक्ति थी जिसमें उन्होंने ईमानदारी और शुचिता की राजनीति की अपेक्षा की थी। 27 साल बाद भारतीय जनता पार्टी दिल्ली विजय कर चुकी है। भाजपा की आंधी में वह आप बुरी तरह से पराजित हुई है जिसने पिछले एक दशक से अपनी अजेय छवि गढ़ी थी। पिछले पांच साल में केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की छवि टूटी है। आम आदमी पार्टी की इस पराजय में ही इसके अर्थ छिपे हुए हैं। 11 साल पहले आम आदमी पार्टी का सत्तासीन होना जनता का उस विकल्प को परखना था जिसने राजनीतिक शुचिता, ईमानदारी, शुद्ध आचरण, सत्य और आम आदमी के प्रभावी होने की उम्मीद का सपना दिखाया था। आप जनता का यह सपना पूरा नहीं कर पायी उल्टे खुद भी भ्रष्टाचार, शराब जैसे घोटालों, राजनीतिक गिरावट और राष्ट्रीय हितों के मुद्दों की अनदेखी की प्रवृत्ति में शामिल हो गई। ऐसे मे जनता के उस विकल्प की उम्मीद टूटती गई जिसकी उसने आदर्श कल्पना की थी।
ईमानदारी, साधारण आदमी, मफलर, सादे कपड़े, छोटा फ्लैट, नीली वैगन आर जैसे प्रतीकों से केजरीवाल और आप की ओर दिल्ली की जनता आकर्षित हुई थी। केजरीवाल और आप उस दावे के प्रतीक थे जो राजनीति में बदलाव को लेकर किया गया था। केजरीवाल का दावा था कि वे राजनीति में आम आदमी को प्रभावी रखेंगे लेकिन सत्ता में आने के बाद ये प्रतीक, दावे और वादे पीछे छूटते चले गए। दिल्ली की जनता को जब तक यह समझ आया काफी देर हो चुकी थी। जनता ने तब अपने को ठगा अनुभव किया जब केजरीवाल ने अपने लिए आलीशान ‘शीशमहल’ पर 40 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। ईमानदारी के प्रतीक के रूप में सामने आए केजरीवाल और उनके साथियों का शराब घोटाले में जेल जाना और फिर भी कुर्सी नहीं छोड़ना लोगों के लिए तगड़ा झटका था। अन्ना आंदोलन के समर्थकों के लिए यह सब धक्के और धोखे जैसा ही था। जनता ने अपने दरकते सपनों की पीड़ा को ईवीएम का बटन दबाते समय याद रखा और परिणाम सबके सामने हैं।
केजरीवाल और उनकी पार्टी ने पंजाब, गोवा और गुजरात के चुनावों में जमकर पैसा खर्च किया। उनकी पार्टी का नाम ही आम आदमी पार्टी रह गया और वह कब खास होती चली गई किसी को पता भी नहीं चला। पार्टी के भीतर भी कम गड़बड़ नहीं थी। पार्टी की ही महिला सांसद को मुख्यमंत्री निवास में पीटा जाना और उस पर मुख्यमंत्री का मौन रहना महिलाओं के आप से मोहभंग के लिए बड़ा कारण था। एक बड़ी गलती केजरीवाल यह भी कर बैठे कि उन्होंने अपनी रेवड़ी स्कीमों के आगे इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास की मूल अवधारणा पर ही ध्यान नहीं दिया।
दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि और कद ईमानदारी और राजनीतिक शुचिता के मामले में अरविंद केजरीवाल से कही ऊंचा है। मोदी का प्रभाव भी जनता पर बहुत व्यापक है। भाजपा के घोषणा पत्र में भी जनता से जुड़ी लोक कल्याणकारी योजनाओं का वादा किया गया। पार्टी कार्यकर्ताओं ने प्रचार में पूरी शक्ति लगा दी और एकजुट रहकर चुनाव लड़ा। इसलिए जब वोट देने की बारी आई तो मतदाताओं ने मोदी वाली भाजपा को ही चुना। परिणाम सामने है, 27 साल बाद दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है। अन्ना हजारे ने चुनाव परिणामों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए जो कहा है वह बताता है कि कैसे आप ने अपनी जमीन छोड़ दी है। अन्ना ने कहा कि मैंने हमेशा कहा है कि उम्मीदवार का आचरण शुद्ध होना चाहिए, जीवन दोष अयोग्य होना चाहिए, त्याग करना चाहिए. मैंने यह अरविंद को बताया था, लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया और अंततः उन्होंने शराब पर ध्यान केंद्रित किया। वहीं अरविंद केजरीवाल के पुराने साथी और आप के संस्थापक सदस्य रहे कुमार विश्वास ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि यह आम आदमी पार्टी के पतन का मार्ग है और पार्टी उस पर आगे बढ़ चुकी है।(विनायक फीचर्स)