भारतीय राजनीति में घटनाएँ सहसा नहीं होतीं, उनके पीछे एक गहरी योजना और रणनीति होती है। नितिन गडकरी, जो 2014 से मोदी सरकार में परिवहन मंत्री के रूप में कार्यरत हैं, उनके खिलाफ हाल के घटनाक्रम इसी गहरे राजनीतिक खेल का हिस्सा नजर आते हैं। नितिन गडकरी ने देशभर में सड़कों का जाल बिछाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम को जोड़ने के उनके प्रयासों ने उन्हें देशभर में लोकप्रिय बना दिया है। उनकी साफगोयी और बिना लाग लपेट के काम करने का तरीका उन्हें जनता के बीच खासा पसंदीदा बनाता है। इतना ही नहीं, वे समय-समय पर अपनी ही सरकार के फैसलों पर सवाल उठाकर एक सशक्त नेता के रूप में उभरे हैं। नितिन गडकरी की लोकप्रियता और उनकी आरएसएस से नजदीकियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के बीच तनाव पैदा किया है। गडकरी की यह लोकप्रियता हमेशा से मोदी और शाह के लिए चुनौती रही है। यही कारण है कि उनके मंत्रालय से कई महत्वपूर्ण विभाग छीन लिए गए, ताकि उनका कद छोटा किया जा सके। हाल ही में, मोदी-शाह की जोड़ी के करीबी सांसद द्वारा गडकरी को एक पत्र लिखवाया गया, जिसमें उनके कार्य और तौर-तरीकों पर सवाल उठाए गए। यह पत्र ऐसे समय में सामने आया है जब हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित हो चुकी हैं, लेकिन झारखंड और महाराष्ट्र में चुनाव कराने की हिम्मत सरकार नहीं जुटा पा रही है। सत्ताधारी दल के सांसद द्वारा ऐसा पत्र लिखना या लिखवाना इस बात का संकेत है कि यह गडकरी को मानसिक रूप से तोड़ने और उनकी छवि खराब करने की एक सोची-समझी साजिश है। बीजेपी के वे सांसद, जो आमतौर पर सरकार से सवाल करने की हिम्मत नहीं करते, अब गडकरी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। गडकरी इस “लेटर बम” का जवाब जरूर देंगे, और उन्हें देना भी चाहिए। वे इस पत्र की शिकायती भाषा से विचलित होने वाले नहीं हैं। उनका संसदीय क्षेत्र नागपुर में है, जहाँ आरएसएस का मुख्यालय भी स्थित है। गडकरी की आरएसएस से करीबी मोदी-शाह को खल रही है, और इसी का परिणाम है यह लेटर बम। इसके पीछे एक और कारण यह भी है कि गडकरी ने नेशनल हाइवे पर टोल टैक्स वसूली बंद करने की सरकार से मांग की है, जो मोदी-शाह की नीतियों के खिलाफ जाती है। नितिन गडकरी के खिलाफ चल रही यह साजिश भारतीय राजनीति में चल रहे गहरे खेल का ही हिस्सा है। उनकी लोकप्रियता और बेबाकी ने उन्हें जहां जनता का चहेता बना दिया है, वहीं पार्टी के भीतर उनके विरोधियों की संख्या भी बढ़ा दी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में गडकरी इस चुनौती का कैसे सामना करते हैं और क्या यह राजनीतिक तकरार उनके करियर को नई दिशा देती है।