
नई दिल्ली। कांग्रेस ने घोषित जीएसटी सुधारों पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की है। विपक्षी दल का कहना है कि मोदी सरकार ने नौ साल की देरी के बाद राहुल गांधी के सुझावों को अपनाया, जबकि इस अवधि में उपभोक्ताओं और छोटे व्यवसायों को उच्च टैक्स स्लैब का भारी बोझ झेलना पड़ा। कांग्रेस ने याद दिलाया कि जीएसटी का प्रस्ताव सबसे पहले यूपीए सरकार के दौरान रखा गया था। 2011 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जीएसटी विधेयक पेश किया था, लेकिन विपक्ष, जिसमें भाजपा भी शामिल थी, के विरोध के कारण यह पारित नहीं हो सका। 2017 में मोदी सरकार ने जीएसटी लागू किया, जिसके बाद राहुल गांधी ने इसे ‘गब्बर सिंह टैक्स’ करार दिया और गरीबों के हित में 18 प्रतिशत टैक्स सीमा का सुझाव दिया। कांग्रेस पदाधिकारियों का कहना है कि हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित सुधार उन्हीं सुझावों पर आधारित हैं, जिनकी वकालत राहुल गांधी वर्षों से करते आए हैं। एआईसीसी पदाधिकारी अभिषेक दत्त ने कहा कि सरकार को सुधारों की देरी के लिए जनता से माफी मांगनी चाहिए और राहुल गांधी को धन्यवाद देना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि राहुल गांधी द्वारा बिहार में मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं और वोट चोरी के आरोपों के बाद केंद्र सरकार की छवि को धक्का लगा है। कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य बी.के. हरिप्रसाद ने कहा कि देरी से किए गए सुधारों ने छोटे व्यवसायों को बर्बाद कर दिया, लाखों नौकरियां गईं और अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई। उन्होंने कहा-भारत को ऐसी सरकार की जरूरत है जो समय पर सुने और काम करे, न कि ऐसी जो राजनीतिक दबाव के बाद जागे। बीएम संदीप ने तंज कसते हुए कहा कि जब भाजपा की लोकसभा सीटें 2019 में 303 से घटकर 2024 में 240 रह गईं, तब जाकर आयकर और जीएसटी स्लैब कम हुए। उन्होंने जोड़ा कि अगर भाजपा की सीटें और कम हो जाएँ, तो जनता को और अधिक राहत मिलेगी।
हाल ही में जीएसटी परिषद की बैठक में कर्नाटक, तेलंगाना सहित आठ राज्यों के वित्त मंत्रियों ने कर सुधारों का स्वागत किया, लेकिन शिकायत की कि उन्हें राजस्व संग्रह से पर्याप्त हिस्सा नहीं मिल रहा।