
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक अबू आज़मी द्वारा दायर उन याचिकाओं पर मुंबई पुलिस से जवाब मांगा है, जिनमें उन्होंने औरंगज़ेब पर की गई टिप्पणी को लेकर दर्ज दो एफआईआर को रद्द करने की मांग की है। ये एफआईआर उनके मार्च 2024 में महाराष्ट्र विधानसभा के बजट सत्र से निलंबन के बाद दर्ज की गई थीं। जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस राजेश पाटिल की खंडपीठ ने पुलिस से चार सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है और तब तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी। अबू आज़मी के वकील मुबीन सोलकर ने दलील दी कि आज़मी ने न तो किसी मराठा राजा और न ही किसी हिंदू शासक के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की। उन्होंने आरोप लगाया कि राजनीतिक विरोधियों ने उनके बयानों को संदर्भ से काटकर प्रस्तुत किया, ताकि राजनीतिक लाभ उठाया जा सके। एफआईआर मरीन ड्राइव पुलिस स्टेशन में दर्ज हैं, जिसमें आज़मी मानखुर्द-शिवाजी नगर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने अपनी याचिका में कहा-एफआईआर में उल्लिखित अपराधों के मूल तत्वों का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। इसमें यह नहीं बताया गया है कि बयान किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की मंशा से दिया गया था। यह पूरी कार्रवाई राजनीति से प्रेरित है और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। 3 मार्च को एक मीडिया साक्षात्कार में आज़मी ने मुगल शासक औरंगज़ेब को “अच्छा प्रशासक” बताया था और कहा था कि उनके काल में भारत की सीमाएं अफगानिस्तान से लेकर बर्मा तक फैली थीं। उन्होंने यह भी कहा था कि अगर औरंगज़ेब ने मंदिरों को तोड़ा था, तो उसने मस्जिदों को भी तोड़ा। यह टिप्पणी मराठा योद्धा छत्रपति संभाजी महाराज और औरंगज़ेब के बीच संघर्ष पर आधारित फिल्म ‘छावा’ की चर्चा के संदर्भ में आई थी। इसके बाद भाजपा मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने विधानसभा में आज़मी के निलंबन की मांग करते हुए प्रस्ताव रखा, जो पास हो गया। हालांकि, ठाणे में दर्ज प्रारंभिक एफआईआर बाद में मरीन ड्राइव पुलिस थाने को स्थानांतरित कर दी गई। सत्र न्यायालय ने दोनों मामलों में आज़मी को अग्रिम जमानत दी थी और पुलिस को फटकार लगाई थी कि उन्होंने बयान को पढ़े बिना एफआईआर दर्ज कर ली। न्यायालय ने आज़मी को साक्षात्कार देते समय संयम बरतने की सलाह दी। अब इस मामले की अगली सुनवाई हाईकोर्ट में चार सप्ताह बाद होगी।