Friday, November 22, 2024
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चुनाव आयोग को बॉम्बे हाईकोर्ट की फटकार, पूछा- पुणे लोकसभा सीट पर 6 महीने में क्यों नहीं हुआ उपचुनाव?

पुणे। पुणे में दिवंगत बीजेपी सांसद गिरीश बापट के निधन के बाद पुणे लोकसभा क्षेत्र के सांसद का पद खाली हो गया है। हालांकि वर्तमान लोकसभा का टर्म पूरा होने में 15 महीने की अवधि होने के बावजूद उपचुनाव नहीं होने पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को खरी-खरी सुनाई है। हाईकोर्ट ने पुणे उपचुनाव को लेकर चुनाव आयोग को उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि चुनाव और उपचुनाव कराना निर्वाचन आयोग का काम है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को चुनाव आयोग (ईसीआई) से सवाल किया कि इस साल 29 मार्च को सांसद गिरीश बापट की मृत्यु के बाद छह महीने के भीतर पुणे लोकसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव क्यों नहीं कराया गया। अदालत ने निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव न कराने के लिए ईसीआई द्वारा जारी प्रमाण पत्र के खिलाफ पुणे निवासी की याचिका पर सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि वह प्रथम दृष्टया चुनाव आयोग द्वारा दिए गए तर्क से सहमत नहीं है कि यदि उपचुनाव होते हैं, तो जीतकर आने वाले उम्मीदवार के पास सांसद के रूप में मुश्किल से तीन-चार महीने का कार्यकाल बचा होगा। साथ ही इससे 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियाँ भी प्रभावित होंगी।
हाईकोर्ट ने कहा कि अगर आयोग ने उपचुनाव न कराने के अपने रुख को सही ठहराने के लिए संतोषजनक जवाब नहीं दिया तो वह सोमवार (11 दिसंबर) को आदेश पारित करेगा।
जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस कमल आर खट्टा की खंडपीठ पुणे के सुघोष जोशी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि नियम के अनुसार छह महीने के भीतर उपचुनाव के माध्यम से रिक्ति भरी जानी चाहिए थी। इसलिए पुणे उपचुनाव इस साल 28 सितंबर तक हो जाना चाहिए था। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि पिछले कुछ महीनों से संसद में पुणे के संबंधित क्षेत्र की कोई आवाज नहीं उठी है। कोई जन प्रतिनिधि नहीं होने के कारण पुणे की विकास परियोजनाओं का मुद्दा संसद में नहीं उठाया गया, खासकर जो लंबे समय से अटकी है।
जोशी ने बताया कि 21 सितंबर को उन्होंने यह मुद्दा ईसीआई के समक्ष उठाया था, लेकिन उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, जिसके बाद उन्हें कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। याचिकाकर्ता की तरफ से दलील दी गयी कि चूंकि बीजेपी नेता बापट के निधन के बाद 15 महीने का कार्यकाल बचा था, जो कि सांसद के कुल पांच वर्ष के कार्यकाल का 25 प्रतिशत है, ऐसे में उपचुनाव कराया जा सकता था। इसके साथ ही तर्क दिया कि चुनाव आयोग ने 8 अगस्त को सात विधानसभा क्षेत्रों के लिए उपचुनाव की घोषणा की, लेकिन पुणे लोकसभा क्षेत्र के लिए ऐसा नहीं किया गया।

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