
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे स्थित एक व्यवसायी द्वारा अपनी आय छुपाने और संपत्ति छिपाने के मामले में महिला के मासिक गुजारा भत्ते में उल्लेखनीय वृद्धि की है। अदालत ने मासिक भत्ता 50,000 से बढ़ाकर 3.5 लाख रुपए कर दिया। सुनवाई के दौरान यह सामने आया कि पति ने अपने विशाल 1,000 करोड़ रुपए मूल्य के व्यवसायिक साम्राज्य के बावजूद केवल 6 लाख रुपए वार्षिक कमाने का झूठा दावा किया था। न्यायमूर्ति बी.पी.कोलाबावाला और न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरेशन की खंडपीठ ने इसे “बेतुका” बताते हुए आदेश दिया कि पति अपने वास्तविक वित्तीय संसाधनों को छिपाकर न्यायालय को गुमराह करने में असफल रहा। अदालत ने पिछले वर्ष के अवैतनिक रखरखाव के लिए उसे 42 लाख रुपए जमा करने का भी निर्देश दिया। यह मामला 1996 में विवाहित जोड़े का है, जिन्होंने 2013 में अलग होने से पहले 16 साल तक साथ जीवन व्यतीत किया। पुणे पारिवारिक न्यायालय ने तलाक के बाद महिला की गुजारा भत्ते की मांग को खारिज कर दिया था, जबकि पति ने आर्थिक तंगी का हवाला दिया। उच्च न्यायालय ने सभी दलीलों और साक्ष्यों की समीक्षा के बाद महिला के पक्ष में निर्णय दिया। महिला ने अपनी याचिका में बताया कि वह अपनी बेटी का पालन-पोषण अकेले कर रही है और उसे गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जबकि पति विलासितापूर्ण जीवन जी रहा था। अदालत ने पति की विलासितापूर्ण जीवनशैली के कई प्रमाणों—भव्य जन्मदिन समारोह, विदेशी यात्रा, केंज़ो ब्रांड के कपड़े और बेटी की विदेश में शिक्षा के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि वह आर्थिक रूप से बिल्कुल भी तंग नहीं था। पीठ ने कहा कि पति द्वारा ₹6 लाख प्रति वर्ष कमाने का दावा कपटपूर्ण था और उसका उद्देश्य न्यायालय को गुमराह करना था। अदालत ने पारिवारिक न्यायालय के पिछले आदेश को रद्द कर दिया और स्पष्ट किया कि महिला और उसकी बेटी सम्मान और आर्थिक सुरक्षा के साथ जीने की हकदार हैं। अदालत ने कहा कि इतने बड़े संसाधनों वाला व्यक्ति अपनी कानूनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता और वैवाहिक और भरण-पोषण कार्यवाहियों में सच्चाई और पूरी वित्तीय जानकारी देना अनिवार्य है। इस फैसले से महिलाओं के अधिकारों और आर्थिक सुरक्षा के महत्व पर जोर दिया गया है।




