Sunday, August 10, 2025
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डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने किया बरी, उम्रकैद की सजा रद्द

मुंबई। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बड़ी राहत मिली है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कथित माओवादी संबंधों के आरोप में कई वर्षों से जेल में बंद साईबाबा को बरी कर दिया है। 54 वर्षीय साईबाबा और पांच अन्य को 2017 में एक सत्र अदालत ने दोषी ठहराया था। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने माओवादी लिंक मामले में मंगलवार को फैसला सुनाया और जीएन साईबाबा, हेम मिश्रा, महेश तिर्की, विजय तिर्की, नारायण सांगलीकर, प्रशांत राही और पांडु नरोटे (मृतक) को बरी कर दिया। इसके साथ ही जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस वाल्मिकी एसए मेनेजेस की बेंच ने उनकी उम्रकैद की सजा भी रद्द कर दी। पिछले साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट को जीएन साईबाबा के माओवादियों से कथित संबंध मामले में नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया था। दरअसल हाईकोर्ट ने इस मामले में दोषी साईबाबा और पांच अन्य को बरी करते हुए उनकी रिहाई का आदेश दिया था। लेकिन इस फैसले को महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर सुनवाई करते हुए 19 अप्रैल 2023 को शीर्ष कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था। कथित माओवादी संबंध के लिए गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत जीएन साईंबाबा को उम्रकैद की सजा मिली थी। लेकिन अब उन्हें फिर से हाईकोर्ट ने आरोपमुक्त कर दिया है।
जीएन साईबाबा पर क्या थे आरोप?
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की एक अदालत ने 2017 में कथित नक्सल विचारक साईबाबा और अन्य को माओवादियों से संबंध रखने और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में संलिप्तता के लिए सजा सुनाई थी। तब से वह नागपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। इस मामले में उन्हें 2014 में महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तारकिया गया था। साईबाबा की पत्नी वसंता कुमारी के मुताबिक, साईबाबा ह्रदय और किडनी रोग समेत कई अन्य रोगों से ग्रस्त हैं। साईबाबा 90 फीसदी विकलांग हैं और व्हीलचेयर पर चलते हैं। माओवादियों से कथित संबंध के चलते उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज ने सहायक प्रोफेसर के पद से बर्खास्त कर दिया।

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