Friday, March 14, 2025
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सेबी के पूर्व अध्यक्ष समेत छह अधिकारियों को बड़ी राहत, हाईकोर्ट ने विशेष अदालत के आदेश पर लगाई रोक

मुंबई। सेबी के पूर्व अध्यक्ष और पांच अन्य अधिकारियों को बड़ी राहत देते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को विशेष अदालत के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें 1994 में कथित शेयर बाजार धोखाधड़ी और नियामक उल्लंघन के संबंध में उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। न्यायमूर्ति शिवकुमार डिगे की पीठ ने कहा कि विशेष न्यायाधीश ने बिना विस्तृत जानकारी दिए और अभियुक्तों की कोई विशेष भूमिका स्पष्ट किए बिना ही आदेश पारित कर दिया। इस कारण, हाईकोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की।
कौन-कौन हैं याचिकाकर्ता?
इस मामले में याचिकाएं सेबी की पूर्व अध्यक्ष माधबी पुरी बुच, वर्तमान पूर्णकालिक निदेशक अश्विनी भाटिया, अनंत नारायण जी, कमलेश चंद्र वार्ष्णेय, बीएसई के प्रबंध निदेशक और सीईओ सुंदररामन राममूर्ति, और इसके पूर्व अध्यक्ष व सार्वजनिक हित निदेशक प्रमोद अग्रवाल ने दायर की थीं। याचिकाकर्ताओं ने अदालत में दलील दी कि विशेष अदालत का आदेश अन्यायपूर्ण और कठोर है क्योंकि 1994 में कथित अनियमितताओं के समय वे अपने वर्तमान पदों पर नहीं थे। उन्होंने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट को इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए था कि उन पर “प्रतिरूपी दायित्व” नहीं लगाया जा सकता।
सरकार की ओर से क्या कहा गया?
सेबी के तीन पूर्णकालिक निदेशकों की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शिकायतकर्ता सपन श्रीवास्तव को “आदतन मुकदमेबाज” बताया और कहा कि हाईकोर्ट पहले भी उनके खिलाफ एक तुच्छ याचिका दायर करने पर 5 लाख रूपए का जुर्माना लगा चुका है। मेहता ने यह भी कहा कि शिकायत में 1994 के एक आईपीओ की जांच की मांग की गई थी, जबकि उस समय छह में से कोई भी अधिकारी सेबी या बीएसई में पदस्थ नहीं थे। उन्होंने सवाल किया कि इन अधिकारियों को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
अर्थव्यवस्था पर असर की दलील
बीएसई अधिकारियों के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने तर्क दिया कि इस तरह की एफआईआर दर्ज करने से देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंच सकता है। उन्होंने कहा कि यह पूंजी बाजार नियामक संस्था के खिलाफ एक तुच्छ और अनावश्यक कार्रवाई है, जिससे निवेशकों का भरोसा प्रभावित हो सकता है।
अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद
शिकायतकर्ता श्रीवास्तव ने याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया। न्यायमूर्ति डिगे ने मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद निर्धारित की।

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