
रायगढ़। मछली पकड़ने के मौसम की शुरुआत के पहले ही दिन रायगढ़ जिले में उस वक्त हड़कंप मच गया जब मत्स्य विभाग ने अचानक मछुआरों को इंडियन ऑयल से सब्सिडी वाला डीज़ल खरीदने से रोक दिया। 31 जुलाई को मत्स्य आयुक्त किशोर तावड़े द्वारा जारी निर्देश में सभी मछुआरा संघों से कहा गया कि वे तत्काल प्रभाव से इंडियन ऑयल से कर-मुक्त डीज़ल न खरीदें। इसके चलते 1 अगस्त को मानसूनी प्रतिबंध हटने के बावजूद सैकड़ों मछली पकड़ने वाली नौकाएं घाटों पर खड़ी रह गईं। 61 दिन बाद समुद्र में लौटने की तैयारी कर चुके मछुआरों के लिए यह फैसला भारी झटका साबित हुआ। मछुआरों ने बताया कि वे पहले ही लंबे समय से बेरोजगार बैठे थे और डीज़ल न मिलने से उनके कीमती शुरुआती दिन बर्बाद हो गए। इस नीतिगत बदलाव के कारण तीन दिन तक समुद्र में कोई मछली पकड़ने नहीं जा सका, जिससे उन्हें लाखों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। प्रभावित मछुआरा समुदायों ने आदेश के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किए और इसे अव्यवहारिक बताते हुए तुरंत वापस लेने की मांग की। बढ़ते जन आक्रोश और विपक्ष के निशाने पर आने के बाद विभाग ने 3 अगस्त को फैसला पलटते हुए इंडियन ऑयल से कर-मुक्त डीज़ल की खरीद पर लगा प्रतिबंध हटा दिया। फैसले के रद्द होते ही सैकड़ों नौकाएं समुद्र में रवाना हो गईं। इस बीच मत्स्य पालन और बंदरगाह विकास मंत्री नितेश राणे ने विभाग में तकनीकी बदलावों की घोषणा करते हुए कहा कि अब मछली उत्पादन और वितरण की निगरानी के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल किया जाएगा। मंत्री ने जानकारी दी कि “स्मार्ट फिश स्टॉक असेसमेंट सिस्टम (SFSS)” नामक परियोजना के लिए 8 जुलाई को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस प्रणाली से जलाशयों के प्रबंधन, मछली संसाधनों की निगरानी और विपणन को नई दिशा मिलेगी। इस अवसर पर आयुक्त किशोर तावड़े, डॉ. एन. रामास्वामी और साई कृष्णा सहित कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। इस घटनाक्रम ने न केवल सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में तात्कालिकता और पारदर्शिता की आवश्यकता को रेखांकित किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि नीतिगत फैसले लेने से पहले ज़मीनी हालात का मूल्यांकन कितना जरूरी है।