नागपुर। बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने मंगलवार को छानबीन समिति को निर्देश दिया कि वह कांग्रेस नेता रश्मि बर्वे को एक सप्ताह के भीतर अनुसूचित जाति (एससी) ‘चांभार’ का प्रमाण पत्र जारी करे। अदालत ने कहा कि पूर्व में द्वेष की भावना से उनके प्रमाण पत्र को अवैध रूप से अमान्य कर दिया गया था। जाति खोजबीन समिति (सीएससी) को ‘‘प्रशासन के सेवक’’ के तौर पर काम करने के लिए कड़ी फटकार लगाते हुए न्यायमूर्ति अविनाश घरोटे और न्यायमूर्ति एम एस जावलकर की पीठ ने समिति पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे एक सप्ताह के भीतर बर्वे को अदा करना होगा। उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के जाति संबंधी दावे को यह सुनिश्चित करने के लिए खारिज कर दिया गया था कि वह संसदीय चुनाव नहीं लड़ सकें। कांग्रेस ने रामटेक लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए बर्वे को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन मार्च में जाति खोजबीन समिति ने उनके जाति प्रमाण पत्र को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उन्होंने अनुसूचित जाति ‘चांभार’ का प्रमाण पत्र धोखाधड़ी से हासिल किया है। बर्वे ने नागपुर जाति खोजबीन समिति के आदेश और रामटेक संसदीय क्षेत्र के निर्वाचन अधिकारी द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें लोकसभा चुनाव के लिए उनका नामांकन खारिज कर दिया गया था। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता अनुसूचित जाति चांभार से संबंधित हैं। अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सीएससी ने राज्य के अवर सचिव के पत्र और उसे प्राप्त शिकायतों से प्रभावित होकर, बिना विवेक का इस्तेमाल किए काम किया। उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के जाति संबंधी दावे को खारिज करने के लिए अनिवार्य नियमों और यहां तक कि उचित अवसर प्रदान करने के प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को भी ताक पर रख दिया गया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह संसदीय चुनाव नहीं लड़ सकें। उच्च न्यायालय ने कहा कि यह उसका कर्तव्य है कि वह सीएससी पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाए, ताकि वह भविष्य में किसी और के इशारे पर काम करने के बजाए वैधानिक कार्यों पर ध्यान दे। उच्च न्यायालय ने कहा कि जाति खोजबीन समिति को एक सप्ताह के भीतर बर्वे को एक लाख रुपये का हर्जाना देने का निर्देश दिया जाता है। अदालत ने राज्य सरकार के अनुरोध पर अपने आदेश पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया।