
नागपुर। भारतीय संस्कृति की सनातनता का मूल स्रोत कही जाने वाली संस्कृत भाषा को जनसामान्य तक पहुँचाने की दिशा में एक और ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हेडगेवार अंतरराष्ट्रीय गुरुकुल और विद्यार्थी भवन का लोकार्पण तथा भूमिपूजन किया। यह आयोजन कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा वारंगा के शैक्षणिक परिसर में किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, उच्च व तकनीकी शिक्षा मंत्री चंद्रकांत पाटिल, वित्त राज्य मंत्री ॲड.आशीष जायस्वाल, कुलगुरु हरेराम त्रिपाठी और संस्थापक कुलगुरु डॉ. पंकज चांदे उपस्थित थे। मुख्यमंत्री फडणवीस ने अपने भाषण में कहा कि भारतीय संस्कृति आज भी जीवित है क्योंकि उसे संस्कृत भाषा ने संरक्षित किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह विश्वविद्यालय केवल शिक्षण संस्थान नहीं बल्कि भारत की ज्ञानपरंपरा और जीवनमूल्यों का संवाहक बनेगा। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय की मूल स्थापना योजना रामटेक में थी, पर वैश्विक पहचान दिलाने के उद्देश्य से इसे नागपुर के समीप वारंगा में बसाया गया। यहां राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की तर्ज पर विश्वस्तरीय संस्कृत विश्वविद्यालय समयबद्ध तरीके से विकसित किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने बताया कि संस्कृत भाषा में 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्दों का भंडार है, जिससे यह दुनिया की सबसे समृद्ध भाषाओं में गिनी जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि वे स्वयं संस्कृत सीखना चाहते हैं और भविष्य में विश्वविद्यालय के लिए सेवा देने का संकल्प भी व्यक्त किया। इस अवसर पर डॉ. मोहन भागवत ने संस्कृत को ग्लोबल और वसुधैव कुटुंबकम जैसे विचारों की आत्मा बताते हुए कहा कि अब समय है जब संस्कृत राजाश्रित नहीं, लोकाश्रित बने। उन्होंने कहा, आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में संस्कृत हमारे सत्व और बल का स्रोत बन सकती है। जहां सत्व और बल होता है, वहीं ओज और लक्ष्मी का वास होता है। डॉ. भागवत ने स्पष्ट किया कि आत्मनिर्भर भारत के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने सामर्थ्य के अनुसार योगदान दे और संस्कृत ही वह ऊर्जा है जो इस सत्व को जागृत कर सकती है। कुलगुरु हरेराम त्रिपाठी ने विश्वविद्यालय के विभिन्न शैक्षणिक उपक्रमों की जानकारी दी। इस समारोह में पूर्व कुलगुरु उमा वैद्य, कुलसचिव देवानंद शुक्ल और अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, अधिकारी तथा छात्र उपस्थित थे। यह आयोजन केवल भवनों के लोकार्पण का नहीं, बल्कि संस्कृत पुनर्जागरण के राष्ट्रीय संकल्प का प्रतीक बन गया, जो भारत को सांस्कृतिक और वैचारिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।