प्रस्तुति – पांडेय जितेंद्र
लाखों वर्षों में सदैव आईक्यू ही शासक बनते रहे हैं। विवेकवान नहीं होने से जनता या प्रजा को अशिक्षित, बेरोजगार और गुलाम बनाए रखते थे। सुख के सारे संसाधन सिर्फ अपने लिए रखते थे। आईक्यू वाले खुद को शासक और प्रजा को गुलाम कहते रहे। प्रजा को किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं मिलता था। केवल श्रम करना उनका धर्म और कर्म बताया जाता रहा। सुखभोग और संपत्तियों पर प्रजा का कोई अधिकार नहीं होने दिया जाता था। एक प्रतिशत जिसमें स्वयं राजा और उसके मंत्री, राज्यकर्मियों को सारे संसाधन उपलब्ध कराए गए। सुखभोग पर उनका अधिकार आरक्षित रहता था।राजसत्ता राजा के हाथ में ही रहती थी। राजा जिसपर अपनी चाटुकारी से प्रसन्न होता उसे ढेर सारे धन पुरस्कार में देता था।तब उस चाटुकार को भांट अथवा चरण कहा गया। कालांतर ने नाम बदला राज कवि कहा जाने लगा। काम चाटुकारिता में काव्य सुनाना ही रहा। समय बदलता रहा। राजा, महाराजा, सम्राट और चक्रवर्ती कहा जाने लगा। राजा को ईश्वरीय अवतार कहा जाने लगा था। प्रजा का भाग्य विधाता हुआ करते थे इसलिए प्रजा उसे ईश्वर या भगवान मानकर आदर सम्मान देने लगी।पूजा करने लगी। राज्यकर्मी प्रजा से जबरन उत्पाद का अधिकांश छीन लेते थे।असंतोष होने के बावजूद प्रजा राजा अथवा भगवान के विरुद्ध बोलने का साहस तक नहीं कर सकती थी। एक दूसरे राज्य पर हमले करना अपना साम्राज्य विस्तार किया करते थे। महाकवि कालीदास ने इक्ष्वाकुवंशीय क्षत्रिय राजाओं द्वारा कभी विश्वजित तो कभी अश्वमेध करने का वर्णन किया है अपने रघुवंशम महाकाव्य में।अश्व की हवन कुंड में बलि दी जाती थी और फिर इसी अग्निकुंड से वही श्वेत वर्णीय अश्व निकलता था। उस श्वेत अश्व को बिना बल्गू के विचरण के लिए छोड़ा जाता था।उस अश्व की रक्षा के लिए राज्य की सेना लगाई जाती थी। जिस किसी राजा के राज्य से वह अश्व निर्विघ्न निकल जाता अर्थात उसे रोकने और बांधने का प्रयास नहीं किया जाता तो यह मान लिया जाता था कि उस राजा ने चक्रवर्ती सम्राट होना स्वीकार कर लिया है। यदि कोई राजा यज्ञ अश्व को पकड़वा कर बंदी बना लेता था तो चक्रवर्ती बनने वाले सम्राट की सेना,अश्व रोकने वाले राजा से युद्ध करता था और उसे हराने के बाद अपना अश्वयज्ञ का अश्व पुनः छोड़ देता था। यज्ञ अश्व जितने राज्यों से निर्विघ्न चलता रहता था तब यह माना जाता था कि इतने राजाओं ने अश्व यज्ञ करने वाले राजाओं की अधीनता स्वीकार कर ली है।
यह व्यवस्था पूरी तरह से अन्याई या जंगली होती थी जिसमें हर बलवान सिंह अन्य बनैले जानवरों को मार खाए।या हर बड़ी मछली छोटी को मार खाने वाली व्यवस्था थी। जिसे जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत भी कही जाती थी।
कालांतर में भी यही होता रहा।द्वापर युग में यज्ञ का स्वरूप बदला। अब अश्वमेध यज्ञ की जगह राजसूय यज्ञ कहा जाने लगा।एक छोटे राज्य का कुमार सिकंदर जिसे अंग्रेजी में अलेकजेंदर भी कहा जाता था। एक बड़ी सेना लेकर विश्व विजय करने निकल पड़ा। तमाम राजाओं को जीतने के बाद वह जब तक्षशिला राज्य में पहुंचा तो वहां के सम्राट पुरु या पर्वतेश्वर के हाथो पराजित हुआ। उसके विश्व विजय अभियान को झटका लगा और पराजित होकर लौट गया। विश्वविजय का सपना देखने वाले सिकंदर की पराजय ने विश्व विजय अभियान का मार्ग सदा के लिए बंद हो गया। उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने तो अपने सैनिक अभियान में आज के अफगानिस्तान, ईरान, इराक, सऊदी अरब तुर्की आदि जीत लिया था जिसके नाम से विक्रमी संवत चलाया गया। अरबी भाषाओं में लिखी उत्तम कविताओं के संग्रह शेर उल ए उलक में एक कविता में विक्रमादित्य के राज्य का उल्लेख मिलता है।इसके बाद तो अनेक शक, हुंड,पल्लव,तुर्क मुगल के द्वारा भारत पर हमले कर जीतने और शासन करने लगे थे। क्षत्रिय नरेशों में चक्रवर्ती सम्राट दिलीप द्वारा अंतिम रूप से सौ अश्वमेध यज्ञ करने के उल्लेख हैं।इसके उपरांत किसी भी क्षत्रिय नरेश द्वारा अश्वमेध यज्ञ का कहीं वर्णन नहीं मिलता। हां मगध के अय्याश सम्राट विहद्रथ को मारकर ब्राह्मण पुष्य मित्र शुंग ने सम्राट बनने के उपरांत अश्वमेध यज्ञ किया था।उसके बाद आज तक किसी अश्वमेध,विश्वजीत और राजसूय यज्ञ का कोई भी वर्णन नहीं मिलता। आधुनिक समय अर्थात इसामसीह जन्म के उपरांत भक्तिकाल का आगमन हुआ।सुकरात ईसा मसीह,कबीर सुर तुलसी मीरा, अरस्तू , मोहम्मद, शंकराचार्य, विवेकानंद जैसे लोग केवल आई क्यू होने के कारण एस क्यू के अभाव में जनता को ईश्वर और आध्यात्म शिक्षा देने ,ईश्वर भक्ति में काव्य रचना करने,प्रेम की बात कहने तक ही सीमित रहे। एसक्यू नहीं होने से ये सारे लोग न्याय का अर्थ भी नहीं जान सके। सीमित विचारों का ही प्रचार प्रसार करते रहे। कभी अन्याई व्यवस्था का विकल्प प्रस्तुत नहीं कर सके।यदि कर सकते तो निश्चित ही दुनिया में न्यायव्यवस्था लागू हो गई होती।
मनुष्य की फितरत अति विचित्र होती है। सुकरात मीरा को विष पिलाकर मार डाला,मोहम्मद साहब को करबला जंग में मारा गया। ईसा मसीह को सूली चढ़ाया गया।राम को सरयू जल में समाधि लेनी पड़ी।कृष्ण को बहेलिए ने विष बुझे तीर से मार डाला। इंसानी फितरत है पहले अच्छी और सच्ची बातें कहने वालों की हत्या कर दो बाद में उसे भगवान मानकर पूजा शुरू कर दो। यही तो दुनिया का इतिहास है। आज तक कोई संत, गुरू, मार्गदर्शक ऐसा उत्पन्न नहीं हुआ जो न्याय की बात करता। दुनिया का सौभाग्य है कि एस क्यू से संपन्न परम वंदनीय अरविंद अंकुर का मानव रूप में ईश्वरीय अवतार हुआ है। आज के पूर्व वेद, शास्त्र उपनिषद, श्रृमद्भगवदगीत बाल्मिकी रामायण, बाइबिल कुरान, तोतरेय किसी भी धर्म ग्रंथ में न्याय और उद्धार की बातें नहीं आई। ईश्वर की झूठी महत्ता बताने के लिए गज, वैश्या यानी गणिका के उद्धार की बातें की गई हैं उनके उद्धार का आशय आध्यात्मिक मोक्ष तक सीमित रही।सृष्टि ,मानव और समस्त चर अचर का यह सौभाग्य है जो श्री अरविंद अंकुर जी का प्रदुर्भाव हुआ है। संभवामी युग युग…
श्रद्धेय गुरुवर ने दुनिया में न्यायशील व्यवस्था निर्माण हेतु न्यायधर्म सभा की स्थापना करने के साथ १११ न्यायशील प्रस्ताव निर्मित कर दुनिया के समस्त राष्ट्राध्यक्ष तक पहुंचाया और आपके मार्गदर्शन में सुपात्र न्यायप्रचारक अनवरत न्यायप्रचार प्रसार का कार्य निश्वार्थ भाव से करते हुए जनमानस को झंकृत कर जागृत करने में प्राणप्रन से लगे हुए हैं बिना थके, बिना रुके।… गुरुदेव ने धर्मसंस्थापक संघ की नींव डालकर सनातनधर्म की पुनर्स्थापना, धर्मचतुष्टय सत्य, प्रेम, न्याय और पुण्य के आचरण हेतु न्यायप्रेमियो को प्रेरित करते रहते हैं।वर्णचतुष्टय ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र को क्रमशः पीक्यू ,आईक्यू, ईक्यू और एसक्यू के द्वारा मानव जीवन विकास की शिक्षा और मार्गदर्शन में लगने के साथ चार आश्रमिय जीवन ब्रह्मचर्य (शिक्षा), गृहस्थ, वासनप्रस्थ या पुरोहित और सन्यास (सनातनधर्म प्रचार) हेतु प्रेणना देकर मानव जीवन को समुन्नत, सत्यनिष्ठ और सत्यानुशासित बना रहे हैं। विश्व को अन्याई व्यवस्था से मुक्त करने के लिए महा लोकतंत्र की स्थापना के द्वारा छः मताधिकार और छः विशेषाधिकार जनता को दिलाने का प्रयत्न कर रहे हैं। ऐसी महाविभूति का सानिध्य संसार का सभी सुख प्रदान करने में सक्षम गुरूदेव के श्री चरणों में कोटि कोटि नमन।