Sunday, November 16, 2025
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पर्यावरण व सोशल एक्टिविस्ट काजल कसेर द्वारा ‘रेड इज़ माई पॉवर’ नारे के साथ

रजोशक्ति जागरूकता महाअभियान: मासिक धर्म को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग

सुनील चिंचोलकर
पामगढ़, छत्तीसगढ़।
सावित्रीबाई फुले शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला, पामगढ़ में मासिक धर्म से जुड़ी जागरूकता पर विशेष चर्चा सत्र आयोजित किया गया। इस अवसर पर पर्यावरण एवं सामाजिक कार्यकर्ता काजल कसेर ने छात्राओं को संबोधित करते हुए माहवारी से जुड़े शारीरिक, मानसिक व सामाजिक पहलुओं पर विस्तार से मार्गदर्शन दिया। चर्चा के उपरांत काजल कसेर ने अपनी लिखी ‘माहवारी जागरूकता’ पुस्तक छात्राओं में वितरित की। कार्यक्रम में विद्यालय की प्राचार्य शिल्पा दुबे सहित व्याख्याता रश्मि वर्मा, निर्मला रात्रि, लता रात्रे, लता सोनवानी, आरती लहरे, शेफाली, तथा स्टाफ सदस्य मोहन प्रमोद सिंह, ईश्वर खरे, विनोद भारती, निधि सोनी उपस्थित रहे। शैक्षिक सहयोग हेतु निधि लता जायसवाल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्कूल परिवार ने समाज सेविका काजल कसेर को उनके सामाजिक योगदान के लिए बधाई दी। बालिकाओं ने अत्यंत शालीनता से कार्यक्रम में भाग लिया तथा जानकारी को गंभीरता से ग्रहण किया। सहयोगी साथी के रूप में कुमारी कंसारी एवं अन्य शिक्षकगण भी उपस्थित रहे।
आयोजन व्यवस्था प्रभारी विनय गुप्ता का संदेश
इस कार्यक्रम के आयोजन प्रभारी, सोशल एक्टिविस्ट एवं AAP जिला सचिव विनय गुप्ता ने कहा—
“देश की आधी आबादी को रूढ़िवाद और अंधविश्वास की बेड़ियों से मुक्त कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। महिलाओं के स्वास्थ्य जैसे गंभीर विषयों पर ऐसे आयोजन लगातार होते रहने चाहिए, ताकि समाज में व्यापक जागरूकता पैदा हो सके।”
काजल कसेर ने बताया – मासिक धर्म पर बात करना क्यों आवश्यक?
काजल कसेर ने कहा कि दुनिया में अरबों महिलाएं मासिक धर्म से गुजरती हैं, फिर भी यह विषय आज भी कलंक, मिथक और गलतफहमियों से घिरा हुआ है। उन्होंने कहा- मासिक धर्म से गुजरने वाली हर महिला को सम्मान और गोपनीयता के साथ इसे प्रबंधित करने का अधिकार है। दुनिया भर में लाखों महिलाओं के पास मासिक धर्म के दौरान बहते पानी, सुरक्षित शौचालय और स्वच्छ उत्पाद जैसी जरूरी सुविधाएँ नहीं हैं। हर 5 में से 1 व्यक्ति के पास उपयुक्त शौचालय भी उपलब्ध नहीं, जिससे स्वच्छ प्रबंधन चुनौतीपूर्ण बन जाता है। स्कूलों में ऐसे विषयों पर खुलकर चर्चा करने से मासिक धर्म से जुड़ी गरीबी और चुनौतियों को समझने में मदद मिलती है। जागरूकता बढ़ने से छात्र-छात्राओं में सहानुभूति व संवेदनशीलता विकसित होती है, जिससे स्कूल में समावेशी वातावरण तैयार होता है। काजल कसेर ने कहा कि जब तक हम खुलकर बातचीत नहीं करेंगे, तब तक वास्तविक परिवर्तन सम्भव नहीं है। युवाओं को मासिक धर्म के दौरान होने वाले शारीरिक और भावनात्मक बदलावों के बारे में शिक्षित करना जरूरी है, ताकि सभी छात्र एक-दूसरे के अनुभवों को समझ सकें और सहयोगी माहौल बने।

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