
मुंबई। महाराष्ट्र के एक लाख से अधिक स्कूलों में दो करोड़ से अधिक विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इन विद्यार्थियों को ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना पर आधारित गुणवत्तापूर्ण और आनंददायक शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से राज्य सरकार लगातार नई पहलें कर रही है। इसी दिशा में स्कूली शिक्षा मंत्री दादाजी भुसे ने उद्योगों से अपील की है कि वे अपनी कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) निधि का उपयोग स्कूलों और विद्यार्थियों की वास्तविक आवश्यकताओं के अनुसार करें। स्कूली शिक्षा मंत्री दादाजी भुसे ने गुरुवार को महाराष्ट्र प्राथमिक शिक्षा परिषद के कार्यालय में आयोजित एक विशेष बैठक में विभिन्न उद्योगों के सीएसआर प्रमुखों के साथ संवाद किया। बैठक का उद्देश्य सीएसआर निधि का प्रभावी और समन्वित उपयोग सुनिश्चित करना था। मंत्री भुसे ने कहा कि “राज्य में कई उद्योग सीएसआर निधि के माध्यम से शिक्षा क्षेत्र में सहयोग कर रहे हैं, लेकिन यह आवश्यक है कि इस सहयोग में एकजुटता और पारदर्शिता बनी रहे। सीएसआर निधि का उपयोग सिर्फ दिखावे के लिए नहीं, बल्कि विद्यार्थियों के हित और स्कूलों की वास्तविक जरूरतों के अनुसार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार विद्यार्थियों को केंद्र में रखकर योजनाएँ बना रही है। शिक्षकों के साथ-साथ स्कूलों में स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ शौचालय, प्रयोगशालाएँ, अच्छे भवन और डिजिटल शिक्षण सामग्री जैसी सुविधाएँ सुनिश्चित की जा रही हैं। “विद्यांजलि पोर्टल” के माध्यम से स्कूलों और विद्यार्थियों की जरूरतों की जानकारी उद्योगों को दी जा सकती है ताकि वे सही दिशा में योगदान कर सकें। बैठक में स्कूली शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव रणजीतसिंह देओल, महाराष्ट्र प्राथमिक शिक्षा परिषद के राज्य परियोजना निदेशक संजय यादव, उपमुख्यमंत्री कार्यालय के संयुक्त सचिव (वित्त एवं योजना) डॉ. संतोष भोसले, स्कूली शिक्षा विभाग के उपसचिव तुषार महाजन सहित विभिन्न उद्योगों के सीएसआर प्रमुख उपस्थित थे। प्रधान सचिव रणजीतसिंह देओल ने इस अवसर पर कहा कि राज्य सरकार शिक्षा क्षेत्र में उद्योगों के सहयोग का स्वागत करती है। उन्होंने बताया कि राज्य के सभी स्कूलों और विद्यार्थियों से संबंधित जानकारी ‘यूडिस’ (UDISE+) और केंद्र सरकार के ‘विद्यांजलि’ पोर्टल पर उपलब्ध है। इन दोनों प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से स्कूलों की प्राथमिक आवश्यकताओं की पहचान कर सीएसआर निधि का बेहतर उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि “राज्य में ‘गोद लिए गए स्कूल योजना’ भी शुरू की गई है। यदि कोई उद्योग किसी स्कूल को गोद लेता है, तो उस उद्योग का नाम स्कूल के नाम के साथ जोड़ा जाएगा। इससे न केवल उद्योगों को सामाजिक प्रतिष्ठा मिलेगी, बल्कि विद्यार्थियों को स्थायी सहयोग भी प्राप्त होगा। इस बैठक में स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से एक विस्तृत प्रस्तुति दी गई, जिसमें राज्य में स्कूली शिक्षा की मौजूदा स्थिति, चल रही सीएसआर परियोजनाएँ और सहयोग की आवश्यकता वाले क्षेत्रों की जानकारी प्रस्तुत की गई। वहीं, विभिन्न उद्योगों के सीएसआर प्रमुखों ने भी अपने चल रहे कार्यों और भविष्य की प्राथमिकताओं के बारे में बताया। सीएसआर प्रमुखों ने कहा कि सरकार द्वारा इस तरह का संवाद मंच तैयार किया जाना स्वागतयोग्य कदम है। इससे उद्योगों के बीच सहयोग की भावना मजबूत होगी और सीएसआर निधि का उपयोग अधिक प्रभावी रूप से शिक्षा के उत्थान में किया जा सकेगा। बैठक के अंत में स्कूली शिक्षा मंत्री दादाजी भुसे ने कहा कि “विद्यार्थी ही राज्य का भविष्य हैं। यदि सरकार और उद्योग मिलकर काम करें, तो हम महाराष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था को देश के लिए एक आदर्श मॉडल बना सकते हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सीएसआर निधि का हर रुपया उस बच्चे तक पहुँचे, जिसके भविष्य को संवारने का सपना हम सब देख रहे हैं। इस बैठक को लेकर उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले महीनों में राज्य के विभिन्न जिलों में सीएसआर निधि से संचालित कई नई शैक्षणिक परियोजनाएँ शुरू की जा सकती हैं। शिक्षा विभाग अब उद्योग जगत के साथ समन्वय बढ़ाकर सरकारी स्कूलों में डिजिटल शिक्षा, विज्ञान प्रयोगशालाएँ और खेल सुविधाओं के विकास पर भी ध्यान केंद्रित करेगा।