
नागपुर। महाराष्ट्र में आरक्षण की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। शुक्रवार को राज्यभर से हजारों की संख्या में पहुंचे ओबीसी समुदाय के लोगों ने नागपुर में ‘सकल ओबीसी महा मोर्चा’ के बैनर तले विशाल रैली निकाली और मराठा समाज को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देने के राज्य सरकार के आदेश को तत्काल रद्द करने की मांग की। रैली यशवंत स्टेडियम से संविधान चौक तक निकाली गई, जिसमें ओबीसी समाज के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि, महिलाएँ और युवा बड़ी संख्या में शामिल हुए। रैली के दौरान प्रदर्शनकारियों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए कहा कि वे आरक्षण में अपने हक का हिस्सा किसी भी कीमत पर कम नहीं होने देंगे। प्रदर्शनकारियों के हाथों में तख्तियां थीं, जिन पर लिखा था- एक मिशन, ओबीसी आरक्षण और संविधान ने जो अधिकार दिया है, उसे कोई नहीं छीन सकता। इस आंदोलन को कांग्रेस विधायक और ओबीसी नेता विजय वडेट्टीवार का भी समर्थन मिला। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने मराठा आरक्षण के नाम पर ओबीसी समुदाय के अधिकारों से समझौता किया है। गौरतलब है कि 2 सितंबर को महाराष्ट्र सरकार ने एक सरकारी आदेश (जीआर) जारी किया था, जिसके तहत मराठा समाज के उन सदस्यों को ‘कुनबी जाति प्रमाणपत्र’ जारी करने की अनुमति दी गई थी, जो अपनी ओबीसी पृष्ठभूमि साबित कर सकें। यह निर्णय मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे के मुंबई के आजाद मैदान में हुए पाँच दिवसीय आंदोलन के बाद लिया गया था। इस आदेश के मुताबिक, पात्र मराठा लोग सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण का लाभ उठा सकेंगे। लेकिन ओबीसी संगठनों का कहना है कि इस कदम से उनके आरक्षण प्रतिशत में कटौती होगी और यह संविधान के समान अवसर और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। ओबीसी संगठनों ने राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि अगर यह आदेश वापस नहीं लिया गया, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। महाराष्ट्र में कुनबी समुदाय पहले से ही ओबीसी वर्ग में शामिल है और मराठा समाज के कई लोग अपनी कृषि पृष्ठभूमि के आधार पर कुनबी से समानता का दावा करते हैं। लेकिन ओबीसी संगठनों का कहना है कि मराठों को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने से वास्तविक पिछड़े वर्गों के अधिकार और अवसर प्रभावित होंगे।
रैली के अंत में संगठन के नेताओं ने सरकार से मांग की कि — 2 सितंबर के सरकारी आदेश को तुरंत रद्द किया जाए, ओबीसी आरक्षण पर किसी भी प्रकार का समझौता न किया जाए और ओबीसी आयोग को स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति दी जाए। इस विशाल मोर्चे से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि मराठा बनाम ओबीसी आरक्षण विवाद आने वाले दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा बन सकता है।