
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने एक बार फिर लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर विवादित बयान देकर सियासी हलचल मचा दी है। वाराणसी में आयोजित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के 47वें दीक्षांत समारोह में उन्होंने छात्राओं को चेतावनी देते हुए कहा कि ‘लिव-इन रिलेशनशिप से दूर रहो, नहीं तो 50 टुकड़ों में मिलोगी। उनका ये कहने का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है और यूजर्स तरह-तरह का रिएक्शन दे रहे हैं। एंटी सेक्स आकर्षण पैदा करता है, सृजन भी यहीं से प्रारंभ होता है। भारतीय संस्कृति और यहां तक कि मनुस्मृति कहती है, पिता के साथ पुत्री तक को अकेले कमरे में सोना नहीं चाहिए, जिसका अर्थ है पिता पुत्री भले ही प्रेम का रिश्ता हो लेकिन एक साथ अकेले कमरे में शयन करना खतरे से खाली नहीं होता। वहां भी मनोविज्ञान का विपरीत लिंगी आकर्षण शारीरिक संबंध बनने का कारक हो सकता है। जब पिता पुत्री के बीच आकर्षण सेक्स का कारण बन सकता है, तो फिर अन्य रिश्तेदारों, सर्वथा अपरिचित व्यक्ति के साथ काफी समय तक एक कमरे में सोना भी आकर्षण और जिस्मानी ताल्लुकात का मनोवैज्ञानिक कारण बन जाता है। छात्र छात्राएं भी जो क्लासमेट या सीनियर जूनियर होते हैं, इन्हें भी लिव इन रिलेशन से दूर रहना चाहिए। शारीरिक आकर्षण परस्पर विरोधी लिंग में होने को लस्ट कहा जाता है। जो यह कहते हैं खासकर युवा युवती कि उन्हें प्यार हो गया है, आई लव यू, यह वास्तविक प्रेम नहीं आकर्षण है। चंद दिनों महीनों में प्रेम का भूत जब उतरता है, तब सिवाय पश्चाताप के हाथ कुछ नहीं आता। ऐसे में जब महिलाएं गर्भवती होती हैं, तो उनके साथ लिव इन रिलेशन वाला मनुष्य अलग या भाग जाता है। पेट में बच्चा रहने के बाद लड़कियों के सामने लोकलाज के भय से आत्महत्या के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचता। गर्भपात का कारण भी यही अवैध रिलेशनशिप है, जिसे धर्म पाप कहता है। राज्यपाल का कहना कि बेटियां लिव इन रिलेशन में न आएं। महात्मा गांधी के सिद्धांतों को अपनाने और समाज में बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया। बेटियों की चिंता में मुखर हो चुकी राज्यपाल ने कहा, बेटियां 50/50 टुकड़ों में करके भरने वालों को देखा है। काशी विद्यापीठ के 74वें दीक्षांत समारोह में कहा कि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। लिव इन रिलेशन का अर्थ है आम खाओ और गुठली फेंक दो, बेटियां सावधान रहें। राज्यपाल ने इस पर कहा, पिछले दस दिनों में ऐसी घटनाओं की सूचनाएं मिली हैं जिन्हें सुनकर बेहद दुख होता है। एक हाईकोर्ट के जज की चिंता बताते हुए कहा, मेरे सामने पास्को एक्ट पर बताया जो लोग गलत काम करते हैं, भाग जाते हैं। एक दो लोग हैं, उन्हें न्याय देना है। यही नहीं, आनंदीबेन ने लड़कियों को बंद कमरे में सुना लिव इन रिलेशन का कारण। कई विश्वविद्यालयों में जाकर लड़कियों की वेदना सुनने जिनमें हिम्मत कर एक लड़की ने अपने पिता, दूसरी ने मामा, तीसरी ने काका और चौथी ने पड़ोसियों पर आरोप लगाए थे, जिन्होंने हिम्मत दिखाकर पुलिस स्टेशन गई और एफआईआर लिखवाई। दोषी लोगों की धरपकड़ के बाद जेल में हैं। आनंदीबेन ने बच्चियों को उन चारों को सुनने के बाद कहा कि हिम्मत ही नहीं पड़ी कि दूसरों की बात सुनें। सच है, मर्माहत नारियां ही अधिक होती हैं। राज्यपाल ने ऐसी 80 लड़कियों से मुलाकात की थी जो लिव इन रिलेशन में रहीं, किसी के पास एक साल तो किसी के पास दो महीने का बच्चा था पेट में। आनंदीबेन ने यूनिवर्सिटीज में दो हॉस्टलों के बीच की जगहों पर शराब और बियर की बोतलें देखने की बात बताई। ड्रग्स पर गंभीर चिंता जताई। सिर्फ कॉलेज यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली छात्राएं ही नहीं, महानगरों में छोटी मोटी नौकरी करने वाली महिलाएं जो अपना करियर बना रही हैं, उनके सामने मजबूरी बन जाती है लिव इन रिलेशन में रहना क्योंकि महंगा किराया देना उनके वश की बात नहीं रहती, इसलिए मजबूर होकर पुरुष के साथ लिव इन रिलेशन में रहती हैं। कमी सरकारों की है। आखिर सरकार इस ओर ध्यान क्यों नहीं देती? खासकर बड़े महानगरों में शिक्षा, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों के अलावा छोटी मोटी नौकरियां करने वाली लड़कियों और महिलाओं के लिए विमेन हॉस्टल्स की व्यवस्था क्यों नहीं करती? अगर हर प्रदेश की सरकार और केंद्र सरकार लिव इन रिलेशन के कारण होने वाली घटनाओं का अध्ययन करें और उनके लिए अलग-अलग जगहों पर महिला आवास निर्मित कराएं, तो लिव इन रिलेशन के लिए छात्राएं और नौकरी करने वाली महिलाएं मजबूर न होतीं, जिनके परिवारजन उन शहरों में नहीं रहते। लेकिन सरकारों में बैठे नेताओं को अपने लिए दौलत जोड़ने, भ्रष्टाचार करने, करोड़ों रुपए लेकर किसी दूसरे दल से जुड़ने और अपनी सात पीढ़ियों के लिए अरबों रुपए जोड़ने, गलत तरीके से वोटरों को पैसे देकर वोट खरीदने से फुर्सत मिले तब न। अभी बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा तब की गई जब केंद्र सरकार ने वोट के लिए नोट बांट दिए। अगर चुनाव तिथियों की घोषणा पहले ही कर दी जाती, तब लाखों महिलाओं के खाते में दस हजार डाल पाना केंद्र सरकार के लिए असंभव हो जाता। इसलिए सरकार से मिलकर चुनाव आयोग ने पहले नोट फॉर वोट दे दिया, जिसके तुरंत बाद चुनाव की तारीखों की घोषणा की गई। जहां चुनाव आयोग फर्जी वोटर्स करोड़ों में बढ़ाए और विपक्ष के 80 लाख वोट काटकर सत्ताधारी की जीत कराए, वहां निष्पक्ष चुनाव कैसे कराए जा सकते हैं? जिस देश में केवल सत्ता में रहने के लिए चुनाव प्रभावित किया जाता हो, उस देश की सरकार से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह लिव इन रिलेशन से उत्पन्न समस्याओं को खत्म करने के लिए जरूरी संसाधन मुहैया कराए। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल का छात्राओं और महिलाओं के लिव इन रिलेशन से उत्पन्न समस्याओं से बचने के लिए सुझाव देना बहुत अच्छी बात हो सकती है, लेकिन काश अपनी वास्तविक चिंता के समाधान के उपाय भी तो खुद ही शुरू करा सकती हैं, अपनी ही उत्तर प्रदेश सरकार से रचनात्मक कदम उठवाकर देश की सरकारों के लिए आदर्श तो उपस्थित कर सकती हैं। अगर वे अपनी ही सरकार से कोई व्यवस्था करने में असफल रहती हैं, तो माना जाना चाहिए कि छात्राओं के लिव इन रिलेशन वाली चिंता केवल राजनीतिक है।