Tuesday, October 14, 2025
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उत्तर प्रदेश की योगी पुलिस रक्षक से भक्षक बनने की दुःखद कहानी

इंद्र यादव, indrayadavrti@gmail.com
भारतीय समाज में एक पुरानी कहावत है- “सरकार के रक्षक जब बने भक्षक तब जनता कहां जाए?” यह कहावत आज उत्तर प्रदेश की पुलिस व्यवस्था पर बिल्कुल फिट बैठती है। पुलिस, जिसे जनता की सुरक्षा और न्याय की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वही आज शोषण, हत्या और लूट का माध्यम बन रही है। इससे न केवल राज्य की छवि धूमिल हो रही है, बल्कि पूरी दुनिया में भारतीय पुलिस की साख पर सवाल उठ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा किए जा रहे इन कृत्यों से समाज को क्या संदेश मिल रहा है? क्या यह संदेश है कि कानून कमजोरों के लिए जंजीर है और ताकतवरों के लिए हथियार? उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे बड़ा राज्य, जहां आबादी करोड़ों में है, वहां पुलिस की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। लेकिन हाल के वर्षों में यहां पुलिस की कार्रवाइयों में शोषण और हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे हैं। मिसाल के तौर पर, मुजफ्फरनगर में एक 13 वर्षीय नाबालिग लड़के को पुलिस हिरासत में इतनी बुरी तरह पीटा गया कि उसकी एक आंख की रोशनी चली गई। लड़के का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने मस्जिद के माइक से एक घोषणा की, जिसे पुलिस ने “संवेदनशील” माना।लड़के के पिता का कहना है कि पुलिस अब शिकायत करने पर उन्हें धमका रही है। इसी तरह, एक अन्य घटना में अमेरिकी मुस्लिम नेटवर्क ने उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के खिलाफ पुलिस की गिरफ्तारियों और हिंसा की निंदा की है, जहां “आई लव प्रॉफेट मुहम्मद” जैसे पोस्टर लगाने पर लोगों को पीटा गया। ये घटनाएं बताती हैं कि पुलिस अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रसित हो रही है।पुलिस की हिंसा सिर्फ अल्पसंख्यकों तक सीमित नहीं है। दलितों और पिछड़ों के खिलाफ अत्याचारों के आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं। एनसीआरबी के डेटा के अनुसार, उत्तर प्रदेश महिलाओं और दलितों के खिलाफ अपराधों में शीर्ष पर है, जहां पुलिस की भूमिका संदिग्ध है। हाल ही में जौनपुर में एक गर्भवती मुस्लिम महिला को इलाज से वंचित किया गया, और एक दलित युवक की लिंचिंग हुई।गाजियाबाद में पुलिस ने पत्रकारों को गालियां दीं और उन्हें “दलाल” कहा, जो प्रेस की आजादी पर हमला है। प्रयागराज के शंभूनाथ मिश्रा के घर में पुलिस ने कथित रूप से घुसकर महिलाओं को पीटा, फर्जी मुकदमा दर्ज किया, और घायल महिलाओं (जिनमें दूधमुंहे बच्चों की मांएं शामिल हैं) को बिना मेडिकल जांच के जेल भेज दिया। पीड़ित पक्ष का आरोप है कि पुलिस ब्राह्मणों के खिलाफ पक्षपाती है।फर्जी एनकाउंटरों की बात करें तो, राज्य में 190 से ज्यादा पुलिस एनकाउंटर मौतें हुई हैं, ज्यादातर गरीब और पिछड़े समुदायों से। फिरोजाबाद में दो करोड़ की लूट के आरोपी को एनकाउंटर में मार गिराया गया,जबकि मेरठ में हत्या के आरोपी को गोली मारकर गिरफ्तार किया गया।ये एनकाउंटर न्याय की जगह बदला लेने जैसे लगते हैं, जो पुलिस की छवि को और खराब कर रहे हैं। ये घटनाएं समाज को ये संदेश दे रही हैं कि कानून सबके लिए समान नहीं है। अमीर और ताकतवर लोग पुलिस का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकते हैं, जबकि गरीब और कमजोर लोग इसका शिकार बनते हैं। अलीगढ़ में एक हिंदू महासभा की नेता पर हत्या का आरोप लगा, लेकिन पुलिस की जांच में देरी हो रही है।बाराबंकी में एक भीम आर्मी कार्यकर्ता ने पुलिस की अवैध मांग से तंग आकर आत्महत्या कर ली। ये मामले बताते हैं कि पुलिस भ्रष्टाचार में डूबी हुई है, जहां रिश्वत और धमकी आम है। समाज में इससे डर का माहौल बनता है – लोग पुलिस से मदद मांगने की बजाय डरते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर,मानवाधिकार संगठन जैसे एमनेस्टी और यूएन ह्यूमन राइट्स ने उत्तर प्रदेश में फर्जी एनकाउंटर और हिरासत में मौतों की जांच की मांग की है।इससे भारत की छवि एक लोकतांत्रिक देश के रूप में खराब हो रही है। पिछले शासनकालों में भी उत्तर प्रदेश में अपराध और पुलिस भ्रष्टाचार था, लेकिन वर्तमान में “सर्वश्रेष्ठ कानून व्यवस्था” का दावा किया जाता है, जबकि जमीनी हकीकत जंगल राज जैसी है। महिलाओं के खिलाफ अपराध 15% बढ़े हैं, और दलितों के खिलाफ लाख से ज्यादा मामले दर्ज हैं। कानपुर में एक छात्र को बाइक जब्त करने पर पुलिस ने बुरी तरह पीटा,जबकि रायबरेली में सादे कपड़ों में पुलिस ने भाई-बहन को पीटा और गिरफ्तार किया। ये घटनाएं बताती हैं कि पुलिस की मनमानी बढ़ रही है, जो समाज में असमानता और अन्याय को बढ़ावा दे रही है।
समाज को मिल रहा संदेश स्पष्ट है की अगर पुलिस ही भक्षक बन जाए, तो न्याय की उम्मीद कहां से करें? इससे युवा पीढ़ी में कानून के प्रति अविश्वास बढ़ता है, और अपराधी तत्व मजबूत होते हैं। जरूरत है पुलिस सुधार की – पारदर्शिता, जवाबदेही और मानवाधिकारों का सम्मान। जब तक पुलिस रक्षक की भूमिका में वापस नहीं आएगी, तब तक समाज का विश्वास बहाल नहीं होगा। सरकार को इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, वरना “रक्षक से भक्षक” बनने की यह कहानी और दुःखद मोड़ लेगी।

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