
मनोज कुमार अग्रवाल
इस बार का मानसून का सीजन उत्तर भारत में गंभीर प्राकृतिक आपदा बनकर कहर बरपा रहा है। आमतौर पर सूखे रहने वाले राजस्थान में भी रेतीले मैदान जलमग्न है उधर पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, दिल्ली समेत उत्तर भारत में मूसलाधार बारिश भूस्खलन से आम जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। पंजाब के पठानकोट, फिरोजपुर समेत 12 जिले एक हफ्ते से बाढ़ की चपेट में हैं। राज्य में 1,312 गांवों के 2.56 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। अब तक 29 लोगों की मौत हो गई है। हरियाणा में भी बारिश का कहर जारी है भिवानी, हिसार, सिरसा, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र और पंचकूला में कुछ स्कूलों में छुट्टी कर दी गई है। गुरुग्राम के दफ्तरों में कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम के आदेश जारी किए गए हैं। उधर, दिल्ली में यमुना नदी का पानी खतरे के निशान को पार करने के बाद ट्रांस-यमुना क्षेत्र की कई कॉलोनियों में घुस गया। सरकार ने यमुना बाजार, मयूर विहार और आसपास के इलाकों की कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को अपना जरूरी सामान लेकर राहत शिविरों में जाने की अपील की है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान,हरियाणा से लेकर हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड में अतिवृष्टि से नदिया उफान पर हैं, तो पहाड़ ढह रहे हैं। बादल फटने, भूस्खलन की घटनाओं में सैकड़ों जान जा चुकी है। लगातार कई दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश ने जम्मू क्षेत्र में तबाही मचा दी है। वैष्णो देवी मंदिर के मार्ग पर भूस्खलन में 39 लोगों की मौत हो गई है, ये आंकड़ा बढ़ भी सकता है, क्योंकि कई लोगों के बारे में अभी तक लापता होने की जानकारी दी जा रही है। प्रशासन के मुताबिक लगातार और भारी बारिश के कारण हुए भूस्खलन में कम से कम 20 लोग घायल हुए हैं, जिनका विभिन्न अस्पतालों में इलाज हो रहा है। गौरतलब है कि मंगलवार को दोपहर करीब 3 बजे भूस्खलन हुआ और पहाड़ की ढलान से पत्थर, शिलाखंड और चट्टानें एकदम से नीचे गिरने लगीं। इससे बेखबर लोग इसकी चपेट में आ गए। घटना के बाद वैष्णो देवी मंदिर की तीर्थयात्रा स्थगित कर दी गई। मंदिर तक जाने के दो मार्ग हैं, जिसमें हिमकोटि पैदल मार्ग पर सुबह से यात्रा स्थगित कर दी गई थी, जबकि पुराने मार्ग पर दोपहर डेढ़ बजे तक यात्रा जारी थी। अब भारी बारिश के अंदेशे के बीच यात्रा अगले आदेश तक स्थगित करने का फैसला किया गया है। हालांकि यही समझ पहले दिखाई गई होती तो शायद 39 लोग अकाल मौत न मरते। जब लगातार तेज बारिश हो रही थी तो यात्रा जारी रखने की लापरवाही क्यों बरती गई। पहाड़ी इलाकों में बारिश का कहर लगातार बरप रहा है, फिर भी सरकार इस तरफ से सचेत क्यों नहीं हो रही, यह समझ से परे हैं। इससे पहले 14 अगस्त को किश्तवाड़ जिले के मचैल माता मंदिर के रास्ते में पड़ने वाले आखिरी गांव चशोती में बादल फटने के कारण अचानक बाढ़ आ गई, जिसमें कम से कम 65 लोगों की मौत हो गई और भीषण तबाही का मंजर सामने आया। मरने वालों में ज्यादातर तीर्थयात्री थे। इस प्राकृतिक आपदा में 100 से अधिक लोग घायल हो गए तथा 32 लोग अब भी लापता हैं। जम्मू-कश्मीर के अलावा हिमाचल प्रदेश और पंजाब भी बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में हैं। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में पिछले महीने ही बाढ़ से काफी तबाही हुई थी। अब एक बार फिर हालात गंभीर हैं। भारी बारिश के कारण प्रदेश के 8 जिलों में सभी शिक्षण संस्थानों में छुट्टी कर दी गई है। वहीं व्यास नदी का जलस्तर अचानक इतना बढ़ गया कि यह नदी चंडीगढ़-मनाली नेशनल हाईवे पर बहने लगी। मनाली के बाहंग में कुछ दुकानें, घर और शेरे-ए-पंजाब होटल नदी में बह गए। फिलहाल नदियों का जलस्तर बढ़ने से मंडी, कांगड़ा, चंबा और कुल्लू में रेड अलर्ट जारी किया गया है। चंबा में मणिमहेश यात्रा भी रोक दी गई है लेकिन इससे पहले मणिमहेश यात्रा के दौरान ऑक्सीजन की कमी के चलते पंजाब के चार श्रद्धालुओं की मौत भी हो गई। वहीं मूसलाधार बारिश के बीच लाहौल-स्पीति, शिंकुला दर्रा, बारालाचा, खरदूंगला और रोहतांग जैसे ऊंचाई वाले इलाकों में सीजन की पहली बर्फबारी हुई है। शिंकुला दरें में अब तक करीब आठ इंच बर्फ गिर चुकी है। इस बर्फबारी को देखते हुए इलाके में शीतलहर का असर बढ़ गया है। हिमाचल प्रदेश में अगस्त में अब तक सामान्य से 44 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। हिमाचल प्रदेश में कुदरत का कहर ऐसा बरपा है कि 20 जून से 1 सितंबर तक 326 लोग इसकी बलि चढ़ गए। वहीं, 41 लोग अभी भी लापता हैं और 385 लोग इस बरसात में अब तक घायल हुए हैं। प्रदेश में बादल फटने, बाढ़ और लैंडस्लाइड की घटनाओं ने 4196 घरों की अपनी चपेट में लिया। इसमें 861 कच्चे और पक्के घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए हैं जबकि 3335 घरों को आंशिक तौर पर नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा प्रदेशभर में अब तक 3813 गौशालाएं ध्वस्त हुई हैं और 471 दुकानों/फैक्ट्रियों को नुकसान पहुंचा है। हिमाचल प्रदेश में इस साल अगस्त की बारिश ने 76 साल का रिकॉर्ड तोड़ा दिया। बीते महीने सामान्य से 68 प्रतिशत ज्यादा (256.8 एमएम) बारिश हुई। यह 1949 के बाद से सबसे ज्यादा है। सोमवार को उत्तराखंड में केदारनाथ मार्ग पर लैंडस्लाइड से दो लोगों की मौत हो गई और 6 घायल हो गए। भारी बारिश के कारण चार धाम यात्रा 5 सितंबर तक स्थगित कर दी गई है। हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भारी बारिश के कारण पंजाब की नदियां उफान पर हैं। पंजाब के कई जिलों में बाढ़ की स्थिति बन गई है। भारी बारिश और बाढ़ के कारण गुरदासपुर के जवाहर नवोदय विद्यालय के 400 छात्र और 40 स्टाफ स्कूल परिसर में ही फंस गए। बाढ़ का पानी निचली मंजिल की कक्षाओं में भर गया। आरोप है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान के दौरे के कारण प्रशासनिक अधिकारी आवभगत की तैयारियों में फंसे रहे और बच्चे स्कूल में परेशान होते रहे। इस पर अभिभावकों ने नाराजगी जाहिर की। बाद में तीन दिन तक स्कूल बंद रखने का फैसला लिया गया है। जम्मू-कश्मीर से पंजाब तक या उससे पहले महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड, दिल्ली, बिहार, हरियाणा, असम इन तमाम राज्यों में बाढ़, बारिश, भूस्खलन आदि की जितनी भी घटनाएं अभी हो रही हैं, या अतीत में हुई हैं, उनमें फौरी राहत के उपाय के अलावा और कोई गंभीर कदम नहीं उठाया जा रहा है, ताकि भविष्य में सुरक्षा का इंतजाम हो। इसे अब प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि मानव निर्मित आपदा की तरह मानकर दोषियों की शिनाख्त करने की जरूरत है, तभी ठोस समाधान निकल पाएगा या असल मायनों में बचाव कार्य हो पाएगा। हर बार बाढ़ या भू स्खलन के बाद लोगों को प्रभावित स्थानों से निकालने को अगर हमने बचाव कार्य माना तो फिर यह भी मान लेना चाहिए कि हम ऐसी आपदाओं को निमंत्रण दे रहे हैं। बाढ़ हो या बारिश, इनकी चपेट में कभी भी मंत्री, अधिकारी या सरकार में फैसले लेने वाले लोग नहीं आते हैं, उनके तो आरामगाहों में बारिश से बचने के लिए खूब जगह है और वो ऐसे मौसम का लुत्फ उठाते हैं। सरकारों को इस बात का दर्द नहीं है कि बारिश में कैसे बसी-बसायी जिंदगियां बह जाती हैं। असली दिक्कत तो आम जनता को होती है। जिनकी अकाल मौत होती है, उनके पीछे पूरा परिवार प्रभावित होता है। मौत से बचे तो विस्थापन का दंश सहना पड़ता है। अपने घरों को छोड़कर राहत शिविरों में शरणार्थियों की तरह रहना पड़ता है। जतन से संजोई गृहस्थी उजड़ जाती है, तो कितनी तकलीफ होती है, लेकिन विकास की अंधी दौड़ में लगी हुई सरकारें प्रकृति के इशारे को कभी समझती ही नहीं हैं। लगातार बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं बता रही हैं कि पहाड़ों को काटकर या नदी के प्राकृतिक रास्ते को नियंत्रित कर वहां व्यावसायिक गतिविधियां करना मौत को दावत देने के समान है। प्रकृति खुलकर संकेत दे रही है कि इंसान संभल जाए और जंगलों का, खदानों का अंधाधुंध दोहन बंद करे। इस संकेत को गंभीर चेतावनी बतौर समझना चाहिए वरना इस क्षति की कोई भरपाई नहीं है।