
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठी फिल्म ‘खालिद का शिवाजी’ के निर्माताओं को तत्काल राहत देने से इनकार कर दिया, लेकिन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (आईबी मंत्रालय) को निर्देश दिया कि वह फिल्म निर्माताओं का पक्ष सुने बिना निलंबन अवधि आगे न बढ़ाए। जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और नीला गोखले की पीठ ने 21 अगस्त को सुनवाई करते हुए कहा कि मंत्रालय को किसी भी आगे की कार्रवाई से पहले कम से कम एक सप्ताह पूर्व सूचना देनी होगी। मंत्रालय का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने अदालत को आश्वस्त किया कि विस्तार से पहले निर्माता को सूचित किया जाएगा और उनकी बात सुनी जाएगी। अदालत ने यह भी कहा कि मौजूदा निलंबन समाप्त होने से पहले मंत्रालय याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर निर्णय ले। राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक मोरे ने 7 अगस्त के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें फिल्म की रिलीज़ से एक दिन पहले सीबीएफसी प्रमाणपत्र निलंबित कर दिया गया। उन्होंने इसे “मनमाना, अवैध और राजनीति से प्रेरित” बताते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन का आरोप लगाया। फिल्म छत्रपति शिवाजी महाराज से प्रेरित एक मुस्लिम युवक की कहानी पर आधारित है। इसे 12 नवंबर 2024 को संपादनों के बाद मंजूरी मिली थी और महाराष्ट्र सरकार का समर्थन भी प्राप्त था। फिल्म कान्स 2025 सहित कई अंतरराष्ट्रीय समारोहों के लिए चुनी गई थी। ट्रेलर जारी होने के बाद विवाद भड़का जब दक्षिणपंथी समूहों ने आरोप लगाया कि फिल्म शिवाजी को “धर्मनिरपेक्ष” दिखाकर और उनकी सेना में मुस्लिम उपस्थिति को रेखांकित कर इतिहास को विकृत कर रही है। याचिका में कहा गया कि मंत्रालय ने 7 अगस्त को मात्र “एक घंटे से भी कम नोटिस” पर सिनेमैटोग्राफ अधिनियम की धारा 6(2) के तहत नोटिस जारी कर शाम 7 बजे तक प्रमाणपत्र एक महीने के लिए निलंबित कर दिया। यह आदेश 20 अगस्त को राजपत्र में प्रकाशित हुआ। याचिकाकर्ता का तर्क है कि निलंबन बिना सुनवाई और प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन में जारी हुआ तथा पुलिस ने भी संभावित अशांति की कोई रिपोर्ट नहीं दी। उच्च न्यायालय इस मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को करेगा।