
मुंबई। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों की अवहेलना और संविदा नियुक्तियों की बढ़ती प्रवृत्ति के विरोध में महाराष्ट्र भर के सरकारी अस्पतालों की लगभग 30,000 नर्सें अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। हड़ताल के तीसरे दिन तक, हालांकि आवश्यक सेवाएं चालू हैं, लेकिन प्रतिदिन औसतन 2,000 से अधिक नियमित सर्जरी स्थगित करनी पड़ रही हैं, जिससे चिकित्सा व्यवस्था पर भारी असर पड़ा है। हड़ताल की शुरुआत आज़ाद मैदान में शांतिपूर्ण धरने से हुई थी, लेकिन सरकार की उदासीनता के चलते गुरुवार को नर्सों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल का रास्ता अपनाया। अकेले मुंबई में ही 2,500 से अधिक नर्सें हड़ताल में शामिल हैं। अस्पताल प्रशासन ने प्रशिक्षु और वरिष्ठ नर्सों के जरिए सेवाएं बहाल रखने की कोशिश की, लेकिन ज़मीनी स्तर पर स्थिति बिगड़ती जा रही है। मरीजों को जरूरी सर्जरी रद्द होने की वजह से मायूस होकर लौटना पड़ रहा है। जे.जे. अस्पताल के डीन ने पुष्टि की कि नियमित सर्जरियों को रोका गया है ताकि आवश्यक देखभाल को प्राथमिकता दी जा सके। स्थिति तब और गंभीर हो गई जब अस्पतालों के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी- जैसे वार्ड बॉय, सफाईकर्मी और क्लर्क भी नर्सों के समर्थन में आ खड़े हुए। इन कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने जल्द ही नर्सों की मांगों पर ठोस निर्णय नहीं लिया तो वे भी हड़ताल में शामिल हो सकते हैं। इस संदर्भ में कर्मचारियों के संगठन ने सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। हालात को काबू में रखने के लिए कई अस्पताल प्रशासन ने अनुपस्थित कर्मचारियों को चेतावनी पत्र जारी किए हैं और सस्पेंशन की भी धमकी दी है। हालांकि, महाराष्ट्र राज्य नर्स एसोसिएशन की अध्यक्ष मनीषा शिंदे ने दोहराया है कि जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं होतीं, नर्सें हड़ताल वापस नहीं लेंगी। सरकार की तरफ से अब तक कोई ठोस आश्वासन सामने नहीं आया है, जिससे संकेत मिलते हैं कि अगर जल्द समाधान नहीं निकला तो यह स्वास्थ्य संकट और गहराता जाएगा।