
मुंबई। मीरा-भायंदर में हिंदी और मराठी भाषाओं को लेकर उभरते तनाव और विभाजन की राजनीति के बीच, महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री और शिवसेना (शिंदे गुट) के वरिष्ठ नेता प्रताप सरनाईक ने सद्भाव और भाषायी एकता की दिशा में एक सकारात्मक पहल की घोषणा की है। एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र में रहने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए मराठी भाषा सीखना आवश्यक तो है, लेकिन यह आग्रह प्रेम से होना चाहिए, न कि दबाव से। सरनाईक ने घोषणा की कि ‘मराठी मैत्री अभियान’ के तहत शिवसेना अपनी सभी स्थानीय शाखाओं में बाराखड़ी (मराठी वर्णमाला पुस्तकें) और अन्य मराठी शिक्षण सामग्री नि:शुल्क वितरित करेगी, ताकि गैर-मराठी भाषी लोग सहज और स्नेहपूर्वक भाषा सीख सकें। उन्होंने बताया कि इन शाखाओं में मुफ्त मराठी भाषा कक्षाएं भी आयोजित की जाएंगी, जहां कोई भी इच्छुक व्यक्ति मराठी सीख सकता है। बिना किसी सामाजिक दबाव के। उन्होंने कहा, “मीरा-भायंदर में कोई भाषा संघर्ष नहीं होना चाहिए। हम यहां विकास के लिए हैं, विभाजन के लिए नहीं। सरनाईक ने जोर देकर कहा कि मीरा-भायंदर एक ऐसा शहर है जिसकी सांस्कृतिक जड़ें आगरी-कोली समुदाय में गहराई से जुड़ी हुई हैं, और जहां देश के विभिन्न हिस्सों से आए लोग एकजुट होकर मंगलागौर, गणेशोत्सव जैसे पर्व मनाते हैं। उन्होंने बताया कि शिवसेना के वर्तमान में मीरा-भायंदर नगर निगम में 22 नगरसेवक हैं, जिनमें से कई गैर-मराठी भाषी हैं, और वे वर्षों से स्थानीय राजनीति में मराठी नेताओं के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। यह शहर एकता का प्रतीक है, न कि संघर्ष का मैदान।” सरनाईक ने आरोप लगाया कि कुछ राजनीतिक तत्व भाषाई विवादों को भड़काकर अपने राजनीतिक हित साधने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन शिवसेना का ध्यान समावेशी विकास पर है। उन्होंने साफ किया कि यदि कोई महाराष्ट्र में रहना चाहता है, तो उसे मराठी भाषा जाननी चाहिए। “लेकिन जबरदस्ती नहीं, बल्कि प्यार और आत्मीयता से।” उन्होंने गैर-मराठी निवासियों से अपील की कि वे शिवसेना शाखाओं से संपर्क करें और इस भाषाई पुल का हिस्सा बनें। अपने भाषण का समापन करते हुए प्रताप सरनाईक ने एक सशक्त संदेश दिया। आइए हम भाषा के पुल बनाएं, दीवारें नहीं।यह पहल उस समय आई है जब राज्य में कुछ स्थानों पर मराठी बनाम हिंदी को लेकर राजनीतिक और सामाजिक तनाव देखे गए हैं। ऐसे माहौल में यह बयान और पहल विवाद की राजनीति की बजाय सह-अस्तित्व की दिशा में एक संतुलित और जिम्मेदार प्रयास मानी जा रही है।