
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान को सीधे धमकी दे दी है। अपने परमाणु बम हमारे हवाले करो, अन्यथा हम नागासाकी और हिरोशिमा बना देंगे। ईरान के अधिकारी इस धमकी से इतना डर हुए हैं कि उन्होंने ख़मानेई से साफ शब्दों में कह दिया है। हमारा बन भी जाएगा, सरकार भी चली जाएगी। खामनेई दम ठोक रहे कि हम अमेरिका को खत्म कर देंगे, क्योंकि रूस, चीन हमारे साथ है। इसी बीच ईरानी और अमेरिकी अधिकारी बातचीत कर कोई मध्य का रास्ता तलाश रहे। अगर बातचीत का पलड़ा अमेरिका की तरफ नहीं झुका, तो ट्रंप जैसा खूंखार व्यक्ति कब क्या करेगी, पता नहीं। इसी बीच अमेरिका और चीन में ट्रेड वॉर चरम पर पहुंचने के बाद ट्रंप ने बढ़ाए गए रेसिपोकल टैरिफ लगाने पर तीन महीने, यानी नब्बे दिन के लिए खुद के ऑर्डर पर रोक लगा दी है। शेष विश्व, जिसमें भारत भी है, अमेरिका के साथ ट्रेड के संबंध में बातचीत वीडियोग्राफी के द्वारा जारी कर दी है। भारत के ऊपर दस प्रतिशत टैरिफ लागू है अभी। अगर दोनों देशों के फायदे होंगे, तभी बातचीत का ठोस समाधान निकलेगा। रूस के साथ भारत कई दौर की वार्ता कर रहा है। उद्योग लगने की बात पर पहले ही वार्ता हो चुकी है। रूस, भारत का बहुत पहले से ही खास मित्र बना हुआ है। दोनों के बीच व्यापार बढ़ाने के लिए आठवें सत्र की बातचीत जारी है। चीन सस्ती चीजें हमारे देश में डंप करने में लगा है, जिससे हमारे उद्योग-धंधों पर बुरा असर पड़ेगा। सरकार चाहे भी तो ना नहीं कर सकती। चीन तो अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर ही नहीं, सीधे युद्ध की चेतावनी दे चुका है कर लो जो करना है की भाषा में बेलाग। भारत वैसी स्थिति में नहीं है। अडानी प्रकरण भारत द्वारा अमेरिका को मुंह तोड़ जवाब देने की स्थिति में नहीं है। अगर अमेरिका और इजरायल ने सम्मिलित रूप से ईरान पर हमला किया, अपने एटमी बम ईरान पर वर्षा दिए, तो ईरान का नुकसान शायद जापान से भी अधिक हो, जब अमेरिका ने जापान के दो उन्नत शहरों नागासाकी और हिरोशिमा पर दो एटम बम गिरा दिए थे, जिससे जापान की कमर ही दूसरे विश्वयुद्ध में टूट गई थी। लेकिन गजब की जिजीविषा ने जापान को खड़ा ही नहीं किया, बल्कि दौड़ने लगा। तब जापान अकेला था, लेकिन ईरान के साथ वैसा नहीं है। रूस, चीन ईरान की मदद से पीछे नहीं हटेंगे। भले ही ट्रंप रूस को मनाने में लगे हो, लेकिन यूक्रेन पर रूसी हमला अधिक तेज हो गया है। अमेरिका के नाटो संगठन से हटने के बाद यूरोप कमजोर जरूर हुआ है, फिर भी यूक्रेन पर रूसी हमले नहीं रोक पा रहा। इसी बीच शांति व्यवस्था के लिए हुई संधि तोड़कर इजरायल ने गजा पर हवाई हमले तेज कर दिए, जिसमें मासूम बच्चों की जाने चली गई। कोई नेता अपने आप को जेल जाने से बचने के लिए युद्ध और विनाश का आश्रय ले सकता है, तो वह इजरायल है, जिसे मानवाधिकार का कोई भय नहीं, क्योंकि मानवाधिकार का सबसे बड़ा ठेकेदार अमेरिका उसके सत्व खड़ा, उसके हरेक दुष्कर्मों में साथ दे रहा है। और अगर अमेरिका, इजरायल ने मिलकर ईरान पर हमला किया, तो नुकसान जरूर ईरान का होगा, लेकिन यदि खोमैनी बचा रहा, तो ईरान अमेरिका पर बमबारी करने से नहीं चलेगा। शायद यह विश्वयुद्ध तीन की शुरुआत होगी, क्योंकि तब भन्नाया चीन और रूस साथ में आकर अमेरिका ही नहीं, यूरोप पर भी एटम बन गिराने लगे। फिर उत्तरी कोरिया कब पीछे रहने वाला? वह भी टूट पड़ेगा अमेरिका पर। तब शायद ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी अमेरिका की सहायता के लिए आगे नहीं आयेंगे। उसी समय संभवतः चीन भी भारत पर हमला कर दे, और विश्वयुद्ध विनाश का कारण बन जाए। सवाल यह है कि मानवता से द्रोह क्यों? शक्ति है तो उसका सदुपयोग करो। लेकिन ट्रंप सरीखा व्यक्ति सिर्फ अपना फायदा देखेगा। दुनिया के गरीबों की सुधि कौन लेगा? अगर तीसरा विश्वयुद्ध हुआ, तो निश्चित ही दुनिया की आबादी आधी रह जाए। तब एटम बमों से निकले विकिरण जीवित लोगों को तिल-तिल मरने को मजबूर कर दे।