
बड़ा जोर और शोर रहा है डिजिटल इंडिया का। हर क्षेत्र को डिजिटल करने के दावे का। सच तो यह है कि भ्रष्टाचारियों ने डिजिटल इंडिया की वाट ही लगा दी है। डिजिटल करेंसी सिस्टम यदि पूर्ण रूपेण लागू हो जाए तो आर्थिक भ्रष्टाचार का खात्मा सुनिश्चित है क्योंकि जहां केस है वहीं भ्रष्टाचार है। नोट छापेखानों से हजारों करोड़ नोट आरबीआई पहुंचे ही नहीं।फेक करेंसी धड़ल्ले से बैंक में होती हुई जनता तक फिर मार्केट में आ रही। कहीं कहीं एटीएम भी फेक करेंसी उगल रहा। कैग ने केंद्र सरकार के अरबों रुपए का भ्रष्टाचार होने की पोल खोली। सीबीआई और ईडी मौन। कोई जांच नहीं। गोदी मीडिया, केंद्र सरकार चुप। मंशा पर उठाते सवाल। चुनाव में दस अरब खर्च का अनुमान। निश्चित ही काले धन का होता खेल। पकड़े जाते करोड़ों रुपए मगर जांच नहीं। मध्यप्रदेश में पचास प्रतिशत कमीशन की खूब चर्चा हो रही। इसके पहले कर्नाटक में चालीस प्रतिशत कमीशन की बीजेपी सरकार हार चुकी थी। अब बारी मध्यप्रदेश की।विपक्षी दलों के भ्रष्ट नेताओं को अपने पाले में जोड़ने का नतीजा बीजेपी सरकारों द्वारा भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार का खुला खेल खेलने की आजादी। पिछली लोकसभा चुनाव में बीजेपी सरकार द्वारा आठ अरब रुपए व्यय का अनुमान। इलेक्ट्रोरल फंड द्वारा बीजेपी को बेनामी बेपहचानी पांच अरब की आय हुई। कैसे कहा जाय कि वह कालाधन नहीं था। जब खुद सरकार ब्लैक मनी पर कुंडली मारकर बैठी हो तो डिजिटल करेंसी लागू ही क्यों करेगी? स्विस बैंक में जमा भारतीय चोरों की पांचवी लिस्ट सरकार को पिछले महीने ही प्राप्त हुई लेकिन जब सरकार सदन में घोषित कर चुकी है कि स्विस बैंक में जमा राशि कालाधण नहीं है तो फिर वापस लाने का सवाल ही नहीं है। पूंजीपतियों का ग्यारह लाख करोड़ केंद्र सरकार ने खुद बैंक कर्ज माफ करके उनको ग्यारह लाख करोड़ रुपए कालाधन बनाने का सुनहरा मौका दे दिया। हां यदि कमीशन मिला हो माफ करने में तो वल्लाह क्या बात है? 2019 लोकसभा चुनाव में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से कई अरब रूपए अधिक व्यय हुए। अरे भाई जनता का पैसा है चाहे जैसे उड़ाओ। केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को डिजिटल चुनाव और डिजिटल मतगणना के प्रस्ताव दशकों पूर्व एनडीएस दे चुकी है। न बूथ खर्च, न कर्मचारी व्यय न ईवीएम की सुरक्षा व्यय और न मतगणना में लगने वाले कर्मचारियों सुरक्षा बलों और श्रम के साथ समय और धन व्यय शून्य करने के दोनों प्रस्ताव लागू हो जाते तो जनता के अरबों रुपए बचते। मोबाइल द्वारा वोटिंग सेंट परसेंट होती। सीधे कंप्यूटर द्वारा मत गणना हो जाती। एक ही दिन में पूरे देश की वोटिंग और मतगणना बिना एक भी पाई व्यय किए बिना पारदर्शी तरीके से हो जाती। न बूथ कैप्चरिंग का डर न ई वी एम हैक का भय। न कम वोटिंग की समस्या कुछ भी नहीं होती। सुदूर रहकर भी साधारण मोबाइल द्वारा हर मतदाता वोट दे देता।
आज कल जातीय आधार पर जनगणना कराने, न कराने पर सभी दल एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने लगे हैं। हर पार्टी अपने आप को ओबीसी का हितैषी होने का नाटक कर रही है। जातीय आधार पर जनगणना द्वारा जातिवादी राजनीति कर सत्ता सुख पाना अभीष्ट है। पता नहीं कब इन नेताओ की समझ में आएगा कि देश के सभी नागरिक समान हैं। जिस आंबेडकर की दुहाई दी जाती है। उसके संविधान में नागरिक है जाति नहीं। अगर बाबा साहेब आंबेडकर और भारतीय संविधान जिसकी भूमिका में लिखा है हम भारत के लोग या आंग्लभाषा में वी द पीपुल ऑफ इंडिया लिखा है। हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सवर्ण ओबीसी एससी एसटी पिछड़े अति पिछड़े दलित कुछ भी नहीं लिखा है। यहां तक कि कहीं अमीर गरीब तक नहीं लिखा है यानी संविधान में अमीर गरीब में कोई भेद नहीं किया गया है। इसीलिए मौलिक अधिकार सबके समान हैं। कुछ कम या कुछ ज्यादा नहीं। फिर जाति आधारित जनगणना क्यों हो? भारतीय नागरिक गणना क्यों नहीं हो? सरकारी कर्मचारियों में सबसे निरीह प्राणी है सरकारी शिक्षक। बेगारी कराना सरकार अपना अधिकार मानती है।जनगणना हो या चुनाव या मत गणना,बेचारे शिक्षक को लगा दो। गरीब बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित होती है तो हो जाए। नेताओं के लाडले तो सरकारी स्कूल में पढ़ते नहीं। गरीब बच्चे अनपढ़ रहें तो अशिक्षित गुलाम बनकर रहेंगे। मुफ्त पांच किलो राशन लेकर अस्सी प्रतिशत जनता गरीब बनी रहे तो उसकी बला से। जनगणना करने में काफी समय और श्रम लगता है। अगर डिजिटल जनगणना होने लगती तो हर दसवें वर्ष होने वाली जनगणना मात्र दो दिनों में होने लगेगा। देशवासियों की गाढ़ी कमाई से प्राप्त धन का दुरुपयोग रुकना चाहिए इसके लिए कर दाताओं का एक संगठन बनना चाहिए। जिसकी अनुमति के बिना कोई भी सरकार अपने मन से बेकार खर्च एक पैसा भी कर सके।