
जागरूक और प्रबुद्ध नागरिक जानते हैं कि चुनाव आते ही राजनीतिक दल मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का ऐलान करती रहती हैं। चाहे वह मोदी सरकार हो, मध्यप्रदेश सरकार या फिर राजस्थान सरकार सहित उन राज्यों की सरकारें हों चुनाव आते ही मुफ्त की रेवड़ी बांटने की घोषणा करती हैं। पांच साल जनता की उपेक्षा की जाती है लेकिन चुनाव आते ही मुफ्त स्कूटी लैपटॉप सायकल जैसी चीजें हो या गैस सिलेंडर 500 या 600 रुपए में देने के वादे कर वोटरों को लुभाते ही नहीं फांसते भी हैं ताकि लालच में आकर वोटर उन्हें सत्ता सौप दे। अभिअध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने लाडली योजना और मोदी ने 600, रुपए में गैस सिलेंडर देने का वादा किया है। राजस्थान की सरकार ने 500 रुपए में गैस सिलेंडर देने की लालच दी है लेकिन राजस्थान में मोदी ने 600 रुपए में सिलेंडर देने की पहले ही घोषणा की है। अर्थात पांच साल तक जनता की सुधि नहीं लेने, भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नेताओं ने जनता को प्रलोभन देकर वोट हथियाने की व्यवस्था की है। जनता भी मुफ्तखोर हो चुकी है। अब केंद्र सरकार सहित राज्यों में स्थापित सरकारों ने यदि पांच साल में अपने वादे पूरे किए होते तो अरबों रुपए के विज्ञापन देने की जरूरत ही नहीं होती। पांच साल तक जनता किसी नेता, किसी राजनीतिक दल किसी मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री को याद नहीं आती लेकिन चुनाव आते ही जनता के सामने वोट की भीख मांगने आ जाते हैं। किसी सरकार ने जनता का कितना हित किया। कितनी निशुल्क शिक्षा, कितनी सुविधाओं, कितने रोजगार दिए? इसका कोई हिसाब अरबों के विज्ञापनों में नहीं देते। अगर कोई सरकार जनहित में काम करेगी तो जनता उससे संतुष्ट रहेगी और बिना प्रचार किए उसे वोट करेगी लेकिन एक भी सरकार, नेता, दल ऐसा नहीं जो ईमानदारी से जनता की सेवा की हो। जनता की आर्थिक स्थिति सामाजिक स्थिति सुधारने, शिक्षा की ही नहीं चिकित्सा की भी निशुल्क व्यवस्था की होती। बेरोजगारी गरीबी दूर करने, असमानता मिटाने का काम किया होता तो विज्ञापन देने और प्रचार करने की जरूरत ही नहीं होती। मजेदार बात यह कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री करने जाते हैं चुनाव प्रचार अपने दल का लेकिन अपव्यय जनता के द्वारा दिए गए कर के पैसे से करते हैं। टैक्स दाताओं का पैसा अपनी पार्टी के प्रचार में क्यों किया जाए।कोई भी नेता यदि अपनी पार्टी का प्रचार करता है तो उसे जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे अपव्यय करने का कौन सा नैतिक अधिकार है? अगर हमारे देश के नेताओं में तनिक भी नैतिकता शेष रहती तो आचार्य चाणक्य की तरह राज्यकार्य में जनता का धन उपयोग करते लेकिन व्यक्तिगत यात्रा और अपनी पार्टी के प्रचार किया अपनी ही पार्टी के धन का उपयोग करते। राजनेताओं से इतनी नैतिकता की आशा तो की ही का सकती है परंतु अपात्र नेता तो जनता के पैसे को बाप का माल समझ अय्याशी करने लगाते हैं। सरकार के पास जितना पैसा है वह साधारण नागरिकों तक की खून पसीने से लिया गया टैक्स का पैसा होता है। जनता के पैसे मुफ्त की रेवड़ी बांटने के लिए नहीं होता। मुफ्त की रेवाडियां क्यों नहीं पार्टी के पैसे से बांटते? जनता टैक्स देती है तो घोटाले और भ्रष्टाचार करके अपना घर भरने किए नहीं देती।जनता के द्वारा दिया गया पैसा जनता की शिक्षा सुविधा रोजगार और चिकित्सा आदि पर व्यय किए जाने के लिए होता है। एन एचआई हाईवे बनाती है और वेहिकिल मालिकों से रोड टैक्स लेती है तो जनता अपने ही पैसे से बनी रोड पर चलने का टोल टैक्स क्यों दे लेकिन हिटलर के सिद्धांत जनता का इतना अधिक खून चूस लो कि जीवित रहने को ही विकास समझने लगे। टोल टैक्स 600 से 1000 एक ही हाई वे पर लेना छल धोखा फरेब और लूट ले अलावा क्या हो सकता है? बात चुनावी रेवड़ी बांटने का है। सवाल यह है कि नौ वर्षो में एक हजार से बारह सौ में सिलेंडर देने वाली सरकार मात्र 500 और 600 में सिलेंडर कैसे और क्यों दे? चार महीने कम मूल्य पर गैस सिलेंडर देकर चुनाव बाद चार महीने बिताने पर फिर गैस सिलेंडर 1200 रुपए में बेचकर आम जनता का शोषण किया जाने लगेगा।खून चूसा जाने लगेगा। यह बहुत ही अच्छी पहल सुप्रीमकोर्ट की तरफ विशेषकर सी जे आई चंद्रचूड़ साहब की तरफ से की गई है। जिन्होंने सरकारों द्वारा मुफ्त की रेवड़ियां बांटकर वोट लेकर चुनाव जीतने का काम किया जा रहा है। चुनाव आयोग को यह सवाल पूछना चाहिए था नेताओं से कि चुनाव के समय यह जो मुफ्त की रेवड़ी बांटने का उद्योग किया जाता रहता है, वह सरकार जनता के टैक्स से मिले पैसे से देगी या फिर पार्टी फंड से? लेकिन सरकार का पालतू चुनाव आयोग भी कैसे नैतिकता का पाठ पढ़ाने लगे जब कि सरकार से मिले आदेश निर्देश पालने के लिए वह बाध्य है। हां सुप्रीम कोर्ट ही केंद्र सरकार का पालतू नहीं बना है इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार सहित उन सभी राज्यसरकारों को नोटिस भेजकर चार हफ्ते में ही जवाब देने को कहा है कि मुफ्त की रेवड़ियां क्या जनता द्वारा दिए गए टैक्स से दी जाएगी या पार्टी फंडे??साधुवाद सुप्रीम कोर्ट। सरकारों द्वारा जनता को मुफ्त की रेवड़ी बांटने वह भी एन चुनाव के समय साहसिक सुधारात्मक कदम है। शायद सुप्रीमकोर्ट के किसी निर्णय से वोटरों को मुफ्त बांटकर वोट लेने की कुत्सित प्रवृत्ति पर अंकुश लगे।




