पुलवामा आतंकी हमले में मारे गए चालीस शहीद जवानों के परिजन जांच की मांग कर रहे हैं। यही नहीं भारतीय सेना के पूर्व प्रमुख शंकर रॉय चौधरी, जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल और बीजेपी के बड़े नेता रह चुके सत्यपाल मालिक के समर्थन में उतरते हुए कहा कि पुलवामा हमले की जिम्मेदारी पीएम मोदी और उनके सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को लेनी चाहिए। पूर्व राज्यपाल ने पहले ही आरोप लगाए थे कि खुद पीएम मोदी ने पुलवामा मामले में उन्हें चुप रहने को कहा था।बाद में सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी उन्हें चुप रहने को कहा था। साथ में यह भी कि सारा मामला पाकिस्तान के सिर पर जाना है। इसलिए चुप रहें आप। सत्यपाल मालिक ने एक इंटरव्यू में कहा था कि सेना ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से हवाई जहाज मांगा था। छः महीने तक गृहमंत्रालय ने जवाब तक नहीं दिया। सबको पता है कि एक साथ इतनी बड़ी संख्या में सैनिकों को सड़क मार्ग से नहीं भेजा जाता। मालिक ने इंटरव्यू में यह भी कहा था कि जिस विस्फोटक भरी गाड़ी से सेना की गाड़ी को टकराकर हमला किया गया जिसमें चालीस जवान शहीद हो गए। वह बारह दिनों तक सड़कों पर खुलेआम घूमती रही। प्रशासन मौन रहा। बीजेपी सत्यपाल मलिक को झूठा करार देती है लेकिन उनके ही समय में धारा 370 हटाई गई जिसके लिए धमकियां दी जाती रहीं कि तिरंगा पकड़ने वाला कोई हाथ नहीं रहेगा अगर धारा 370 हटाया गया तो।वे सत्यपाल मलिक जैसे सुलझे राज्यपाल थे जिन्होंने कश्मीर में पर भी मारने नहीं दिया।इतना ही नहीं मलिक को दूसरे कई राज्यों का राज्यपाल बनाया गया। मलिक ने इंटरव्यू में यह भी आरोप लगाए थे कि आरएसएस के एक बड़े पदाधिकारी सुबह सुबह आकार रिलायंस कंपनी के दो टेंडर पास करने के लिए तीन सौ करोड़ का ऑफर दिए थे।उसकी भी जांच या पूछताछ नहीं की गई। शायद इंटरव्यू में आरोप लगाने के कारण ही मलिक से बंगला छीन लिया गया। संवेदनशील राज्य का राज्यपाल रहने के कारण उनकी जान खतरे में होने के बावजूद मलिक की सुरक्षा हटा ली गई। उनके आवास पर पुलिस के छापे पड़े और पूछताछ के नाम पर उन्हें पुलिस स्टेशन बुलाकर गिरफ्तार करने की तैयारी थी परंतु उसी समय सैकड़ों किसानों के थाने पहुंचने के कारण दबाव में आकर मलिक को गिरफ्तार नहीं किया गया। अब सवाल यह है कि मलिक ने आरोप में यह भी कहा था कि खुद मोदी ने शहीद जवानों के नाम पर चुनाव में वोट मांगे थे। हर छोटी छोटी बात पर ट्वीटर हैंडल पर लिखने वाले मोदी ने पुलवामा घटना पर एक भी शब्द न बोले एन लिखे। तीन सौ करोड़ घूस ऑफर करने और पुलवामा आतंकी हमले की जांच की मांग जब शहीद सैनिकों के परिजन कर रहे हैं तो सरकार का विशेषकर पीएम मोदी का दायित्व बनता है कि तुरंत मामले की निष्पक्ष जांच किसी सेवामुक्त जज की देखरेख में की जानी चाहिए ताकि आतंकी हमले की असलियत देश के सामने आ सके।देश हमारे बहादुर सैनिकों का बहुत सम्मान करता है। गाजर मूली की भांति उड़ा दिए गए और सरकार चुप है। बेहद शर्म की बात है। पीएम और सुरक्षा सलाहकार पर जब पूर्व सेना प्रमुख उंगली उठाते हुए जिम्मेदारी लेने की बात कहने लगे हों और शहीद परिवार के लोग निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं तो अनिवार्य हो जाता है कि सरकार निष्पक्ष जांच कराए। यदि अब भी जांच नहीं कराई जाती है तो सिद्ध हो जाएगा कि दाल में काला ही नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली है। षडयंत्र अवश्य रचा गया है। एक तरफ पुलवामा आतंकी हमले की जांच करने की मांग, दूसरी तरफ मणिपुर में ढाई सौ चर्च, दो हजार घर जलाने की घटना और आर्मी के बड़े अधिकारी का पूछना कि सरकार क्या ठोस उपाय कर रही। वहीं तीसरी तरफ जी 20 सम्मेलन की राजसी भव्य तैयारी, दिल्ली की गरीबी का सच हरे सफेद कपड़े से ढकने, मोदी को दुनिया के नेताओं में सबसे बड़ा कद बताने के लिए पोस्टर बड़ी संख्या में, सोने चांदी के बर्तनों में मेहमानों को डिनर कराकर नौ वर्षों में धनवान बनाने की झूठ को बेनकाब करता वाशिंगटन टाइम्स और अमेरिकी अखबारों में छपे लेख 80 करोड़ इंडियंस को गरीबी रेखा के नीचे धकेलने की उपलब्धि पांच किलो मुफ्त अनाज पूरी कलई खोल कर रख देते हैं। अखबार लिखता है कि जी 20 के समय जीडीपी बढ़ाकर दिखाई जा रही है जबकि सच्चाई यह है कि इंडिया बढ़ती महंगाई, बेरोजागरो की फौज़ और गरीबी से जूझ रहा देश इंडिया की सच्चाई है। एक देश के ही व्यक्ति गोदी मीडिया द्वारा जी 20 की कवरिंग करने को अंतरराष्ट्रीय कैटेगरी का नहीं मानते हुए सलाह दी है कि गोदी मीडिया जी 20 और चुनावी रैली में फर्क नहीं कर पाती। बस गुणगान में लगी है जिसकी हकीकत विदेशी मीडिया खोलने लगी है। जी 20 मीटिंग की हर सदस्य देश बारी करता है। इसमें मोदी को श्रेय देने की कौन सी बात है? सिवाय गरीब जनता के पैसों की बरबादी के सिवाय। जिससे विदेश में छवि खराब हो रही विश्वगुरू की।