विपक्षी नेताओं ने अपने यूपीए नाम के स्थान पर ‘इंडिया’ इसलिए रखा कि उसमें शामिल होने वाले कई दल पहले एनडीए के साथ भी जुड़ चुके थे। नई पहचान, नए नाम इंडिया से विपक्षी अगर सामने चुनाव में उतरते हैं तो बीजेपी को चिढ़ क्यों होने लगी? बार बार बीजेपी नेता इंडिया की बुराई करने लगे। अब तो हद तब हो गई जब हिंदी हिंदू हिंदुस्तान के सिद्धांत पर चलने का थोथा दावा करने वाली बीजेपी की केंद्र सरकार ने गुलामी की प्रतीक भाषा इंडिया के साथ देवनागरी लिपि के भारत शब्द की खिचड़ी पकाते हुए जी 20 सम्मेलन में निमंत्रण भेजने वाले के पद को प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के स्थान पर प्रेसिडेंट ऑफ भारत रख दिया। वैसे बीजेपी शुरू से हिंदी भाषा के प्रति श्रद्धा दिखाती रही है लेकिन विपक्षी दलों के संगठन के नाम इंडिया से एकाएक इतनी चिढ़ हो जाना उचित नहीं जान पड़ता। यद्यपि संविधान में इंडिया दैट इज भारत लिखा है लेकिन इंडिया की जगह भारत कर देना आधी अधूरी कवायद होगी। बहुत पहले महानगरों के नाम बोम्बे को मुंबई, कलकत्ता को कोलकाता, मद्रास को चेन्नई कर दिया गया था लेकिन वहां के उच्च न्यायालय अभी भी बोम्बे हाईकोर्ट, मद्रास हाईकोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट नाम से जाना जाता है। कोर्ट के समक्ष अभी भी यही लिखा देखा पढ़ा जा सकता है। उसी तरह इलाहाबाद का नाम प्रयागराज कर दिया गया लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट का नाम अब भी जस का तस ही है। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस नाम विक्टोरिया टर्मिनस की जगह बदला गया।
उसकी बात छोड़ भी दें तो बीजेपी सरकार को अब अपने सभी मंत्रालयों के नाम भी बदलने होंगे। गवर्मेंट ऑफ इंडिया को गवारमेंट ऑफ भारत की तरह वर्तनी में परिवर्तन लाने होंगे। सबसे पहले सरकारी दस्तावेजों से इंडिया शब्द निकालने के साथ ही संविधान में लिखा इंडिया शब्द हटाने के लिए संविधान में ही संशोधन करने की आवश्यकता होगी। इतना ही नहीं संसद में एक बिल पास कराना होगा कि वी द पीपल ऑफ इंडिया को इरेज करना होगा। दुनिया भर के देशों को देश की संसद में इंडिया की जगह भारत की सूचना सरकारी स्तर पर देनी होगी। दुनिया भर में फैली इंबैसी के नाम भारतीय दूतावास करने होंगे। इतना ही नहीं संविधान में इंडिया शब्द को मिटाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत के सारे कागजातों में से भी इंडिया शब्द लोप करने पड़ेंगे। सवाल यह उठता है कि इंडिया को भारत नाम से संबोधन करने का आग्रह अभी ही क्यों किया गया? नौ वर्षों से केंद्र में सरकार अपनी ही बनी है तो 2014 में ही सत्ता में आने के तुरंत बाद ही इंडिया की जगह भारत करने के प्रयास क्यों नहीं किए गए? आज केवल विपक्षी संगठन का नाम इंडिया हो जाने से इतनी अधिक चिढ़ अनुचित ही नहीं अनैतिक भी है खासकर उस दल के लिए जो पूर्व में नैतिकता पर जोर देती आई है। भारतीय अस्मिता की यदि भाजपा को इतनी ही चिंता है तो देश के उन बच्चों की भी चिंता करनी होगी जो कॉन्वेंट स्कूलों में शिक्षा लेने जाते हैं जिससे उनका अपमान होता है। क्या भाजपा को नहीं ज्ञात कि इंग्लैंड में नाजायज संबंधों से जन्में बच्चों के लिए शरणस्थली बनवाई गई जिसमें खाने, पीने, रहने के साथ ही शिक्षा देने की व्यवस्था की गई थी जिसे कॉन्वेंट नाम दिया गया था। आज हमारे देश के नेताओं और धनी, मध्यम वर्ग के करोड़ों बच्चे कॉन्वेंट में पढ़ते हुए गर्व करते हैं लेकिन उनकी अस्मिता खत्म हो जाती है नाजायज बच्चों के कॉन्वेंट में जाकर क्या वे नाजायज कहलाने के हकदार नहीं हो जाते?सरकार को सबसे पहले सभी कॉन्वेंट स्कूलों की मान्यता छिन लेनी चाहिए ताकि करोड़ों भारतीय बच्चे नाजायज नहीं हों। यही नहीं सभी सरकारी, गैरसरकारी आंग्ल भाषी विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी शिक्षा बंद कर देना होगा। संसद में गुलामी की प्रतीक भाषा अंग्रेजी का प्रयोग सबसे पहले बंद कर दे। अंग्रेजी पोशाक शर्त, पेंट, शूट टाई पर भी तुरंत रोक लगानी होगी क्योंकि गुलामी की याद दिलाते हैं। न सभी बिल्डिंगों को भी गिरा देनी चाहिए जो मुगलों और अंग्रेजों ने बनवाए थे। यातायात के साधन रेल भी खत्म कर देनी होगी जिसे अंग्रेजों ने बनवाए थे। कहने का अर्थ यह कि भारतीय अस्मिता को आंच आने वाली हर वस्तुएं खत्म करनी होगी जो गुलामी की याद दिलाते हों अन्यथा प्रेसिडेंट ऑफ भारत के पीछे विपक्षी दलों के नव संगठन इंडिया से चिढ़कर ही लिखा माना जाएगा