मुंबई। हाल ही में विधानसभा चुनावों में शानदार जीत के बाद सत्ता में लौटी महायुति सरकार ने अपने मंत्रिमंडल विस्तार में बड़े बदलाव किए हैं। रविवार को हुई इस प्रक्रिया में भाजपा, शिवसेना और एनसीपी के 12 प्रमुख नेताओं को जगह नहीं दी गई। यह फैसला राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि हटाए गए नेताओं में कई प्रभावशाली चेहरे शामिल हैं।
प्रमुख नेता जो रह गए बाहर
एनसीपी से छगन भुजबल और दिलीप वाल्से-पाटिल जैसे दिग्गजों को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। भुजबल, जो कांग्रेस-एनसीपी सरकार में डिप्टी सीएम रह चुके हैं, हाल ही में मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल से हुए विवाद के कारण चर्चा में थे। दिलीप वाल्से-पाटिल, जो स्वास्थ्य संबंधी अफवाहों का खंडन कर चुके हैं, को भी नजरअंदाज किया गया। एनसीपी ने आदिवासी समुदाय के बाबा धर्मराव आत्राम, अनिल पाटिल (जलगांव), और संजय बनसोडे (लातूर) को भी मंत्रिमंडल से बाहर रखा है। भाजपा के सुधीर मुनगंटीवार, रवींद्र चव्हाण, विजयकुमार गावित, और सुरेश खाड़े को भी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। मुनगंटीवार, जो पिछली सरकार में वित्त, वन, और सांस्कृतिक मामलों के मंत्री थे, का हटाया जाना चौंकाने वाला है। वहीं, रवींद्र चव्हाण, जिन्हें मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का करीबी माना जाता है, को भी कैबिनेट में जगह नहीं मिली। सूत्रों का कहना है कि चव्हाण को भाजपा की राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। शिवसेना से तानाजी सावंत, अब्दुल सत्तार, और दीपक केसरकर जैसे बड़े नामों को भी मंत्रिमंडल से बाहर रखा गया है। शिवसेना के लिए इन नेताओं को हटाने का फैसला कठिन बताया जा रहा है।
शिवसेना और एनसीपी की रणनीति
शिवसेना और एनसीपी ने संकेत दिया है कि मंत्रिमंडल में ढाई साल बाद नए चेहरों को शामिल किया जाएगा। उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने नागपुर में कहा कि जो नेता इस बार मंत्रिमंडल में जगह नहीं बना पाए, उन्हें भविष्य में मौका दिया जाएगा। शिवसेना ने अपने मंत्रियों से लिखित में सहमति ली है कि पार्टी प्रमुख एकनाथ शिंदे के फैसले का पालन करेंगे और जरूरत पड़ने पर मंत्रिमंडल में बदलाव स्वीकार करेंगे। शिवसेना के नवनियुक्त मंत्री शंभूराज देसाई ने कहा, “हमने लिखित में यह जानकारी दी है कि हमारे नेता, उपमुख्यमंत्री शिंदे, जब चाहें किसी मंत्री को बदल सकते हैं। यदि कोई मंत्री अपने कार्यकाल में अच्छा प्रदर्शन नहीं करता, तो उसे हटाया जा सकता है।
नए मंत्रियों के साथ नई शुरुआत
रविवार को शपथ लेने वाले मंत्रियों, जैसे उदय सामंत और संजय शिरसाट, ने कहा कि कैबिनेट में प्रदर्शन के आधार पर बदलाव किए जाएंगे। महायुति सरकार ने यह संकेत दिया है कि उसका मुख्य ध्यान प्रशासनिक प्रदर्शन और राजनीतिक संतुलन पर है। यह मंत्रिमंडल विस्तार महायुति के भीतर संतुलन बनाए रखने और भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए किया गया है। हालांकि, प्रमुख नेताओं को नजरअंदाज करने से नाराजगी भी पैदा हो सकती है। भाजपा और शिवसेना के वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ एनसीपी के कुछ प्रभावशाली चेहरे भी इस फैसले से असहज हो सकते हैं। अगले ढाई सालों में, महायुति के इस नए मंत्रिमंडल के प्रदर्शन पर नजरें होंगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये बदलाव महायुति को स्थायित्व और सफलता की ओर ले जाते हैं या आंतरिक असंतोष को बढ़ावा देते हैं।