Wednesday, March 12, 2025
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कहां हैं गोरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग कर मुस्लिमों की हत्या करने वाले?

वरिष्ठ लेखक: – जीतेंद्र पांडेय
ब्राजील के बाद बीफ का निर्यात करने वाला भारत दूसरे स्थान पर है, जिस देश में गौवंश को कृषि से जोड़कर देखा जाता रहा है। संविधान सभा में गौ सुरक्षा को लेकर बहस हुई। पंडित ठाकुरदास भार्गव ने नीति निर्देशक तत्व में एक संशोधन प्रस्ताव दिया। संशोधन बिल के अनुसार, राज्य आधुनिक और वैज्ञानिक तरीके से कृषि और पशुपालन को व्यवस्थित करने का प्रयास करेगा। मवेशियों की नस्लों के संरक्षण और सुधार के लिए, विशेष रूप से दुधारू और वाहक मवेशियों के युवा स्टॉक के वध पर रोक लगाएगा। संविधान संशोधन में मतभेद के कारण आंबेडकर ने गोवंश सुरक्षा को मौलिक अधिकार नहीं, बल्कि नीति निर्देशक तत्वों में शामिल कर दिया, केवल विवाद के कारण। संसद में भी समय-समय पर इस पर बहस और रोक के प्रयास किए गए। भूदान आंदोलन के संयोजक विनोबा भावे ने आमरण अनशन किया ताकि पश्चिम बंगाल और केरल की सरकारें भी कानून बनाएँ। इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई की सरकारों ने भी इसके लिए कोशिशें कीं। इंदिरा गांधी ने आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर सहित 14 राज्यों को पत्र लिखकर कहा कि गौहत्या पर रोक का अक्षरशः पालन किया जाए। इसे किसी भी कुटिल तरीके से दरकिनार न किया जाए और बूचड़खाने में जाने से पहले निरीक्षण करने हेतु एक कमेटी गठित की जाए।
सबसे कठोर कानून दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, पंजाब, राजस्थान और उत्तराखंड में हैं। यद्यपि असम और पश्चिम बंगाल में क्रमशः 10 और 14 वर्ष की उम्र की गायों को काटे जाने की अनुमति दी गई है। उत्तराखंड में घायल और बेकार समझे जाने वाले गोवंश को काटने की छूट है। बिहार और राजस्थान को छोड़कर, जहाँ बछड़े की उम्र तीन वर्ष से कम बताई गई है, महाराष्ट्र में यह एक वर्ष से कम तय की गई है। अधिकांश राज्य जैसे दादरा नगर हवेली, दमन दीव, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में मवेशी हत्या कानूनों का उल्लंघन संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है, जबकि अन्य राज्यों में यह केवल संज्ञेय अपराध माना जाता है। इस अपराध के लिए कारावास की सजा छह से चौदह वर्ष तक की हो सकती है और जुर्माना 1,000 से 5 लाख रुपये तक लगाया जा सकता है। दिल्ली और मध्य प्रदेश में न्यूनतम छह महीने की सजा तय की गई है। 2004 तक भारत में 3,600 वैध और 30,000 अवैध बूचड़खाने थे। जबकि 2013 में अनुमानित रूप से केवल आंध्र प्रदेश में ही 3,100 अवैध और मात्र 6 लाइसेंस प्राप्त बूचड़खाने थे।
कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत के सबसे बड़े सभी छह बूचड़खानों के मालिक हिंदू ही हैं, जो मुसलमानों के नाम पर बूचड़खानों को चलाकर 600 करोड़ रुपये का बीफ निर्यात करते हैं। इन्हें हिंदूवादी सरकार 70% सब्सिडी देती है और खुद को सनातनी हिंदू कहने तथा हिंदुत्व की राजनीति करने वाले प्रधानमंत्री मोदी उनसे भी चुनावी चंदा लेते हैं।गोरक्षा के नाम पर झूठा आरोप लगाकर मुसलमानों की हत्या करने वाले कथित हिंदुओं के लिए उन बड़े कत्लखानों के नाम और उनके मालिकों की सूची दी जा रही है। अगर सचमुच गोरक्षक हैं, तो रोज दस लाख गोवंश काटने वाले इन बूचड़खानों पर जाकर गौवंश हत्या बंद कराने का साहस दिखाएं:
अल-नूर एक्सपोर्ट – मालिक: सुनील सूद (मुख्यालय: दिल्ली)
एम के आर फ्रोजन फूड एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड – मालिक: मदन एबट (मुख्यालय: दिल्ली)
अरेबियन एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड – मालिक: सुनील कपूर (मुख्यालय: मुंबई)
ए ओ बी एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड – निदेशक: ओ पी अरोड़ा (मुख्यालय: नोएडा, उत्तर प्रदेश)
स्टैंडर्ड फ्रोजन फूड्स एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड – मालिक: कमल वर्मा (मुख्यालय: उन्नाव, उत्तर प्रदेश)
अल कबीर एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड – मालिक: सतीश सब्बरवाल (मुख्यालय: रूद्रम गांव, मेडक जिला, तेलंगाना)
मुंबई से कल्याण जाने वाली ट्रेन में एक बुजुर्ग को पीटकर लहूलुहान करने वाले कथित हिंदू गोरक्षक क्या इन बड़े कत्लखानों के कार्यालयों में जाकर मर्दानगी दिखाने की हिम्मत करेंगे?
खुद को कट्टर हिंदू सम्राट समझने वाले और मुसलमानों पर बुलडोजर चलाने वाले मठाधीश और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो महाकुंभ की अव्यवस्था पर सवाल उठाने वाले केंद्रीय जांच कमेटी की रिपोर्ट को खारिज कर चुके हैं, क्या जवाब देंगे? गंगा के पानी में हानिकारक बैक्टीरिया हैं और उसमें मानव मल मिला हुआ है, इस रिपोर्ट को नकारने वाले योगी क्या यह भी स्वीकार करेंगे कि यूपी में आज भी खुले गोवंश किसानों की फसलें चौपट कर रहे हैं?
मोदी सरकार द्वारा किसानों की आय दोगुनी करने का वादा इन गोवंशों द्वारा ही पलीता लगाया जा रहा है। गौशालाओं में गोवंश की दुर्दशा और उनकी मौतों का हिसाब देने वाला कोई नहीं है।
गुजरात स्थित गौतम अडानी के पोर्ट से गोवंश से लदे सैकड़ों ट्रकों को कत्लखाने भेजा जाता है। क्या हिंदू गौरक्षक इस पर सवाल उठाने का साहस दिखाएंगे? मुंबई में गुजरातियों की दुकानों पर “गौरक्षा हेतु चंदा” देने के लिए पात्र रखे जाते हैं। उन पैसों का हिसाब कौन देगा? आज की सच्चाई कल इतिहास बनेगी। जब आगामी पीढ़ियां इतिहास के पन्ने पलटेंगी, तो उन्हें मिलेगा कि बीजेपी के मुख्यमंत्री गौवंश बचाने के लिए जनता के टैक्स का पैसा खर्च करते रहे, जबकि प्रधानमंत्री गौहत्या करने वाली कंपनियों से चुनावी चंदा लेते रहे। क्या इसे भी भविष्य में जुमला कह दिया जाएगा, या फिर सच को मिटाने की कोशिश की जाएगी?

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