Tuesday, December 2, 2025
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दृष्टिकोण: बेटिकट रेल यात्रा से बढ़ती अराजकता

डॉ.सुधाकर आशावादी
जब से संचार क्रांति हुई है तथा मोबाईल के मेसेज बॉक्स में टिकट रखने का चलन हुआ है। बेटिकट यात्रियों के हौसले अधिक बढ़ गए हैं। पहले तो रेलवे प्लेटफॉर्म पर बिना प्लेटफॉर्म टिकट के घुसना भी बेटिकट यात्री की श्रेणी में आता था। आम आदमी रेल से आने वाले अपने संबंधियों का स्वागत करने के लिए प्लेटफॉर्म टिकट लेकर जाता था। अब ऐसा नहीं है। बिना टिकट बेख़ौफ़ यात्रा की जा सकती है। यूँ तो पहले बेटिकट यात्रा करना हुनर माना जाता था तथा किसी शयनयान या वातानुकूलित कक्ष में बेटिकट यात्रा करने के बदले आर्थिक दण्ड के रूप में मूल टिकट से कई गुना धनराशि वसूली जाती थी। अब ऐसे समाचार कम ही प्रकाश में आते हैं, कि रेलवे ने बेटिकट यात्रियों से जुर्माना वसूला। अन्यथा पहले रेलों को ऐसी जगह रोक कर बेटिकट यात्रियों की धरपकड़ की जाती थी, जहाँ से बेटिकट यात्रियों को भागने का अवसर नहीं मिलता था। जो बेटिकट यात्री जुर्माना चुकाने की स्थिति में नहीं होते थे, उन्हें जेल में भेज दिया जाता था। वर्तमान में ऐसे समाचार नहीं आते, कि किसी बेटिकट यात्री को हवालात की हवा खिलाई जाती हो। समय के साथ सब बदल रहा है। अब रेलवे स्टेशन के प्रवेश व निकासी द्वार पर टिकट चेक नहीं होते, जिसका सर्वाधिक लाभ बेटिकट ही उठाते हैं। विगत कुछ दिनों से देखा जा रहा है, कि रेल के वातानुकूलित कोच में बेटिकट यात्रा करने वाली महिलाओं के वीडियो सोशल मीडिया पर अधिक वायरल हो रहे हैं। दैनिक रेल यात्रियों की बात की जाए तो स्पष्ट होगा, कि वे महिलाएं हों या पुरुष पहले से ही किसी भी कोच में घुसकर बेख़ौफ़ रेल यात्रा करते रहे हैं, उनके समूह के सम्मुख रेल प्रशासन भी घुटने टेकता रहा है, किन्तु वर्तमान में महिलाओं का बेटिकट यात्रा करना और टिकट मांगने पर वैध टिकट का परीक्षण करने वाले अधिकारी पर फर्जी आरोप लगाना फैशन बन चुका है। वातानुकूलित कोच से लेकर रेलवे प्लेटफॉर्म तक एक महिला अध्यापिका का ट्रेवलिंग टिकट परीक्षक (टीटीई) पर आरोप लगाने का वीडियो वायरल हुआ, किन्तु बेटिकट यात्री के विरूद्ध क्या दंडनीय कार्यवाही हुई, इसका खुलासा नहीं हुआ। इसी प्रकार एक ट्रेन के प्रथम श्रेणी कोच में दो महिलाओं के बेटिकट यात्रा करने का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें महिला मुफ्त यात्रा को अपना अधिकार बताते हुए टीटीई को धमका रही थी, कि उसका भाई लोको पायलट है। इसका आशय यह हुआ कि जिस परिवार का कोई रिश्तेदार रेलवे में नौकरी करता हो, तो उसे बेटिकट किसी भी रेल कोच में यात्रा करने का अधिकार मिल जाता है। यदि महिला होने के आधार पर बेटिकट यात्रा की छूट उपलब्ध होती है, तो क्या इसे नारी सशक्तिकरण का प्रभाव माना जाए? रेलवे भारत सरकार का उपक्रम है तथा आवागमन का प्रमुख साधन भी। यूँ तो रेल की सामान्य व अनारक्षित बोगी में नित्य ही लाखों गरीब परिवार बेटिकट यात्रा करते हैं तथा असंख्य खानाबदोश परिवार रेलवे प्लेटफॉर्म पर ही अपनी ज़िंदगी गुजार रहे हैं, फिर भी जिस प्रकार से रेल के वातानुकूलित कोचों में बेटिकट महिला यात्रियों की चोरी और सीना जोरी जैसे वीडियो प्रकाश में आ रहे हैं, उनसे रेलवे की अक्षमता एवं बेटिकट यात्रियों के प्रति रेलवे की लापरवाही उजागर हो रही है। यदि इस प्रकार की प्रवृत्ति के विरुद्ध कठोर दंडात्मक कार्यवाही नहीं की गई, तो इस प्रकार की अराजकता से निपटना रेलवे के लिए कठिन चुनौती बन सकता है।

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