
डॉ.सुधाकर आशावादी
राजनीति जो न करा दे, वो कम है। सत्ता की चाहत में राजनीतिक दलों की स्थिति इतनी विकट हो चुकी है, कि सभी राजनीतिक दलों के मुखिया अपनी घिसी पिटी एवं एकतरफा सोच से बाहर नहीं निकलना चाहते। आम जनता जिन मुद्दों पर पारदर्शिता चाहती है उन मुद्दों पर ये लोग असमंजस की स्थिति में हैं, उन्हें सूझ नहीं रहा है, कि देश भर में चल रहे सुधार अभियान में जनता को कैसे भ्रमित करें। समाज में विघटनकारी स्थिति उत्पन्न करने के लिए कुछ राजनीतिक दल सामाजिक समरसता व राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के विमर्श को नकारने का खुलकर प्रयास कर रहे हैं। यदि ऐसा न होता, तो अपना जनाधार खो चुके वंशवादी नेता एसआईआर एवं वन्देमातरम जैसे मुद्दे पर सरकार को घेरने के प्रयास में झूठ का प्रचार न करते। वास्तविकता भी यही है, कि तर्क वितर्क के माध्यम से बहस की चुनौती देने वाले नेताओं ने स्वयं का आचरण ऐसा बना लिया है, जिससे उनकी विश्वसनीयता घटती जा रही है। कुछ बड़बोले नेता पहले बहस की चुनौती देते हैं, फिर बहस की जगह विषय से भटक कर मनमाने प्रश्न खड़े करते हैं और जब उत्तर सुनने की तथा तर्क करने की बारी आती है, तब सदन से पलायन कर जाते हैं तथा बाहर आकर प्रेस में इस प्रकार के वक्तव्य देते हैं, कि जैसे गरिमापूर्ण सदन में अपने विचारों का लोहा मनवाकर आएं हों। यहाँ इस सत्य को भी नकारा नहीं जा सकता, कि समय समय पर देश के विरुद्ध प्रचार करने वाले कुछ राजनेता जाने किस प्रकार की गलतफहमी में जी रहे हैं। उनके विचार में देश का बुद्धिजीवी वर्ग जैसे कुछ समझता ही नहीं। इस प्रकार के कृत्यों के लिए किसी एक वंशवादी परिवार के नेता को ही जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। अनेक ऐसे राजनीतिक परिवारों के युवराज हैं, जो स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था पर यकीन नहीं करते। उनका एकमात्र लक्ष्य देश के आम आदमी को न्याय दिलाना न होकर अपने परिवार के वैभव व आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देना है। इसी कारण वे चुनाव सुधारों का विरोध करते हैं। जनता उनके संकीर्ण विमर्श पर कई बार उन्हें दर्पण भी दिखा चुकी है। उनके द्वारा फैलाए जाने वाले अफवाह व झूठ के जाल को तार तार करके उनके पैरों तले से धरती खिसका चुकी है, लेकिन वे अपनी ही गलतफहमियों के शिकार हैं, उन्हें यथार्थ से जैसे कोई सरोकार नहीं है। ऐसे में जरुरी है कि स्वस्थ लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हेतु सभी राजनीतिक दल घुसपैठियों से देश को मुक्त कराने, चुनाव सुधार की कवायद में कार्यपालिका का साथ देने में जनसाधारण के साथ मिलकर सक्रिय भूमिका निभाए तथा लोकतंत्र को वंशवादी अवधारणा के नाम पर अपनी बपौती समझने वाले तत्वों की गलतफहमी दूर करे।




