
डॉ.सुधाकर आशावादी
लम्बे समय से देश में फर्जी मतदान का ढिंढोरा पीटकर अनेक राजनीतिक दल कभी अपनी हार का कारण ईवीएम को बताते रहे, कभी कार्यपालिका के प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों को मतदान में गड़बड़ी का आरोपी प्रचारित करते रहे। मतदाता सूची में गड़बड़ के आरोपों पर ध्यान देते हुए भारत में चुनाव सुधार की प्रक्रिया हेतु विशेष गहन पुनरीक्षण हेतु चुनाव आयोग ने कमर कसी, जिसके उपरांत बिहार में चुनाव हुए। उसके बाद देश के अनेक राज्यों में एसआईआर के माध्यम से मतदाता सूची को अद्यतन करने की कवायद चल रही है। एक व्यक्ति एक मतदान अधिकार की स्पष्ट नीति के तहत एक से अधिक स्थानों पर मतदाता सूची में नाम होना या मृतक अथवा पलायन कर गए मतदाता का नाम संबंधित क्षेत्र की मतदाता सूची से हटाकर मतदाता सूची में प्रामाणिक परिवर्तन करना विशेष गहन पुनरीक्षण का प्रमुख उद्देश्य है। विडंबना यह है कि जो लोग मतदाता सूची में गड़बड़ी और वोट चोरी का आरोप लगाकर चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा कर रहे थे, वहीं मतदाता सूची को अद्यतन करने हेतु की जा रही एसआईआर का विरोध करके चुनाव आयोग के विरुद्ध अराजक प्रदर्शन करने से बाज नहीं आ रहे हैं। प्रथम दृष्टया यही प्रतीत होता है, कि देश के विभिन्न राज्यों में चुनाव आयोग के निर्देशन में चल रही एसआईआर में जुटे कर्मचारियों की निष्ठा और कर्तव्यपरायणता को संकीर्ण सियासत अपमानित करके देश में अराजकता का वातावरण बनाना चाहती है तथा आम आदमी को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है। वह ईमानदारी से चुनाव सुधार प्रक्रिया के पक्ष में नहीं है। यदि चुनाव सुधार के पक्ष में होती, तो अनेक क्षेत्रीय राजनीतिक दल पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश तथा अन्य प्रदेशों में एसआईआर का विरोध न करते, बल्कि अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से मतदाताओं की पहचान में सहयोग करते। इतिहास साक्षी है, कि देश के दूरदराज के क्षेत्रों में बरसों तक देश में मतपत्रों के माध्यम से चुनाव कराए जाने वाली दीर्घ प्रक्रिया में आम आदमी की मतदान स्थल तक पहुँच नहीं हो पाती थी। गांवों के दबंग जातीय क्षत्रप अपनी मनमानी किया करते थे। बूथ कैप्चरिंग, मतपत्र छीनने और मतपेटियां चोरी करके चुनाव परिणामों को प्रभावित किया जाता था। मतगणना स्थल पर थकाऊ प्रक्रिया में दिन रात मतपत्रों की गिनती करके चुनाव परिणाम जारी होते थे, जिनमें गड़बड़ी की आशंका रहती थी। अब मतदान पर्यवेक्षकों, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों की देखरेख में चुनाव कर्मियों को मतदान और मतगणना के लिए विशेष प्रशिक्षण देकर निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया संपन्न कराई जाती है। इस प्रक्रिया में जुड़े कर्मियों के अथक प्रयासों से सटीक चुनाव परिणाम आते हैं, किन्तु मतदाताओं द्वारा नकारे जाने से आहत अराजक तत्व अपनी हार का ठीकरा चुनाव आयोग पर फोड़कर अपनी रातों की नींद और दिन का चैन गंवाकर चुनाव में ड्यूटी देने वाले कर्मचारियों की निष्ठा और कर्तव्यपरायणता पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा करने में पीछे नहीं रहते। मतदाता सूचियों में यदि गड़बड़ है तथा एक व्यक्ति का एक से अधिक मतदाता सूची में नाम है, तो इसके लिए वह मतदाता दोषी क्यों नहीं है, जो एक मत के स्थान पर अधिक मत देने का दुस्साहस करता है। आम मतदाता तो ऐसा कर नहीं कर सकता। समझा जा सकता है, कि किसी राजनीतिक दल से जुड़ा व्यक्ति ही ऐसा दुस्साहस करने की हिम्मत जुटा सकता है। बहरहाल ऐसा प्रतीत होता है, कि एसआईआर का विरोध वही कर रहे हैं, जो निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया के पक्षधर नहीं हैं। यहाँ यह भी समझना आवश्यक है कि मतदाता सूचियों का परीक्षण कर रहे बीएलओ को भी संकीर्ण मनोवृत्ति धारी संदेह के घेरे में खड़ा करने का प्रयास करने से परहेज नहीं कर रहे हैं। उनके आरोपों के अनुसार बीएलओ विपक्षी दलों के मतदाताओं के वोट काटता है। समझ नहीं आता कि इस प्रकार की सोच सियासी तत्व कैसे रख सकते हैं? चुनाव प्रक्रिया से जुड़े प्राथमिक कर्मचारी से लेकर प्रशासनिक अधिकारी तक मतदाता सूचियों से मतदाताओं के नाम बिना किसी जांच पड़ताल के कैसे काट सकते हैं? क्या प्राथमिक कर्मचारी मतदाता सूची का परीक्षण करने से पहले हर मतदाता से यह पूछता है, कि वह किसी राजनीतिक दल का समर्थक है? क्या मतदान के दिन कोई मतदान कर्मी किसी खास दल के समर्थक मतदाताओं से पूछता है, कि वे किस राजनीतिक दल के पक्ष में मतदान करने आए हैं। यदि नहीं तो वोट चोरी करने और मतदाता सूचियों के परीक्षण हेतु की जाने वाली एसआईआर प्रक्रिया पर प्रश्न उठाने का औचित्य क्या है? लगता है कि अपनी राजनीतिक जमीन खो चुके राजनीतिक दल अपनी नैतिक हार स्वीकार कर चुके हैं तथा जनता के बीच में अपना अस्तित्व सुरक्षित न पाने के कारण देश में अराजकता का वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यदि ऐसा न होता, तो वे चुनाव सुधार की प्रक्रिया में विशेष गहन पुनरीक्षण अर्थात एसआईआर का विरोध करने की जगह चुनाव प्रक्रिया को सरल, पारदर्शी एवं निष्पक्ष बनाने हेतु चुनाव सुधारों का समर्थन करते।




