
मुंबई। महाराष्ट्र में स्कूली शिक्षा में हिंदी को अनिवार्य बनाने के खिलाफ़ राजनीतिक घमासान तेज़ हो गया है। कांग्रेस सांसद और पूर्व शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड़ ने रविवार को भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार पर “मराठी विरोधी” एजेंडा चलाने और हिंदी थोपने के लिए झूठे प्रचार अभियान चलाने का आरोप लगाया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “हम हिंदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसे महाराष्ट्र पर जबरन थोपना स्वीकार नहीं करेंगे। गायकवाड़ का यह बयान उस समय आया जब राज्य सरकार ने एक संशोधित आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को ‘आम तौर पर’ तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। हालांकि, यदि 20 या अधिक छात्र किसी अन्य भारतीय भाषा की मांग करते हैं, तो उन्हें हिंदी के स्थान पर वह भाषा चुनने की अनुमति दी जा सकती है। इस आदेश को लेकर शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पार्टी कार्यकर्ताओं से राज्यभर में इस सरकारी आदेश की प्रतियां जलाने का आह्वान किया। वहीं, मंत्री उदय सामंत का कहना है कि हिंदी को अनिवार्य बनाने का निर्णय उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री रहते एमवीए सरकार द्वारा लिया गया था। वर्षा गायकवाड़ ने इस दावे का सख्त खंडन करते हुए कहा कि एमवीए सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत तीन-भाषा फॉर्मूले को कभी स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिस डॉ. रघुनाथ माशेलकर समिति का हवाला दिया जा रहा है, वह स्कूल शिक्षा विभाग की नहीं थी, बल्कि उसका संबंध उच्च और तकनीकी शिक्षा से था। गायकवाड़ ने कहा, हमने स्कूली शिक्षा में मराठी के संरक्षण और प्रचार के लिए ठोस कदम उठाए थे। हमारी सरकार ने कक्षा 8 तक सभी स्कूलों में मराठी को अनिवार्य किया था। उन्होंने बताया कि 1 जून 2020 को इस संबंध में सरकारी प्रस्ताव (जीआर) जारी किया गया था और 30 सितंबर 2020 को इसके क्रियान्वयन के लिए समिति गठित की गई थी। इसके अतिरिक्त, मुंबई के चर्नी रोड पर मराठी भवन के लिए ज़मीन भी आवंटित की गई थी, लेकिन वर्तमान सरकार ने उस परियोजना को भी रोक दिया है। गायकवाड़ ने भाजपा पर तीखा हमला करते हुए कहा, “भाजपा झूठ का सहारा लेकर अपने मराठी विरोधी फैसलों से ध्यान भटकाना चाहती है। यह पार्टी अपने ही राज्य में मराठी भाषा को कमजोर करने का षड्यंत्र रच रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य की जनता, विशेषकर मराठी भाषी वर्ग, भाजपा के इस छिपे एजेंडे के खिलाफ़ एकजुट हो रहा है, और सत्तारूढ़ पार्टी जानबूझकर गलत जानकारी फैलाकर इस जनाक्रोश को तोड़ने की कोशिश कर रही है। इस पूरे घटनाक्रम ने राज्य में भाषा आधारित राजनीति को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है, जहां हिंदी को लेकर भाजपा और मराठी की अस्मिता को लेकर एमवीए खेमे के बीच टकराव साफ दिखाई दे रहा है।