Wednesday, November 12, 2025
Google search engine
HomeFashionजिन्हें जीवन देना था वे ही बन रहे हैं मौत के सौदागर

जिन्हें जीवन देना था वे ही बन रहे हैं मौत के सौदागर

मनोज कुमार अग्रवाल
लालकिला विस्फोट साजिश मामले में उच्च शिक्षित छह डाॅक्टरों के नाम जुड़ जाने के बाद कई मिथक टूट रहे हैं जैसे अशिक्षा, बेरोजगारी आतंकवाद को जन्म देती है और आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है। इस मामले में उच्चशिक्षित और लाखों मासिक की तनख्वाह पाने वाले एक ही धर्म के लोग दहशतगर्दी की साजिश से जुड़े मिले हैं। सवाल है कि इन्हें कौन रेडिक्लाइज (उग्र कट्टरपंथी ) बना रहा है? जिंदगी देने वाले डॉक्टर ही दहशत फैलाने का औजार कैसे बन गए? ये कौन सी मजहबी तालीम है जो उच्च शिक्षित एम डी डॉक्टर्स का भी ब्रेनवॉश कर उन्हें दहशत फैलाने के नापाक मंसूबों से जोड़ देती है? और यह कौन सा धर्म है जो जिंदगी देने वाले डॉक्टरों को मौत का सौदागर बनने पर मजबूर कर देता है? पिछले कुछ दिनों से देश के अलग-अलग शहरों में आतंकियों की गिरफ्तारी और विस्फोटक सामग्रियों की बरामदी के बीच सोमवार शाम को लाल किले के पास जोरदार धमाका होना इस बात का प्रमाण है कि संभवत आतंकियों ने इस घटना को बौखलाहट में अंजाम दिया है, लेकिन इसके साथ यह भी साबित होता है कि आतंकी देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी जड़ें जमा चुके है। आतंक का जाल पूरे देश में फैल चुका है। दिल्ली में लाल किले के पास हुए जोरदार धमाके में 12 लोगों की मौत और दो दर्जन से ज्यादा लोगों का घायल होना काफी दुःखद और हृदयविदारक घटना है। यह विस्फोट इतना भयानक था कि लोगों के चिथड़े उड़ गए। धमाके की वजह साफ नहीं है, क्योंकि दिल्ली पुलिस ने इस संबन्ध में कुछ नहीं कहा है, लेकिन माना जा रहा है कि आतंकियों ने ही अपने नापाक मनसूबों को अंजाम दिया है।
संभवत दिल्ली में विस्फोट कर आतंकी पूरे देश में यह संदेश देना चाह रहे हैं कि तमाम गिरफ्तारियों के बीच उनका मनोबल गिरा नहीं है। दिल्ली, जो देश की प्रशासनिक और राजनीतिक धुरी है, में लाल किले जैसे ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक स्थान पर धमाका होना, सीधे-सीधे देश की सुरक्षा व्यवस्था और खुफिया एजेंसियों को चुनौती है। यह घटना ऐसे समय में हुई है जब श्रीनगर, अनंतनाग, गांदरबल, शोपियां, फरीदाबाद और सहारनपुर में व्यापक छापेमारी चल रही थी और सात संदिग्धों की गिरफ्तारी के साथ भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद की गई थी। इसलिए यह मानना तर्कसंगत होगा कि यह धमाका आतंकियों की बौखलाहट में की गई कार्रवाई हो सकती है, लेकिन इसकी भयावहता इस बात में है कि यह दिखाता है कि यह नेटवर्क अब भी सक्रिय और संगठित है। आंकड़े और घटनास्थल की विस्तृत जानकारी ने यह संकेत दिया है कि यह कोई साधारण विस्फोट या हमला नहीं था, बल्कि लंबी परतों में फैला एक सुसंगठित नेटवर्क चल रहा था। देश में विभिन्न स्थानों से कुल मिलाकर लगभग तीन टन के आसपास विस्फोटक पदार्थ और संबंधित सामग्री बरामद हुई है, और मामला एक ‘व्हाइट कॉलर’ आतंकी मॉड्यूल से जुड़ा बताया जा रहा है यानी प्रोफेशनल्स, छात्र और नागरिक का भी शामिल होना समझ को झकझोर देता है।
सबसे स्तब्ध करने वाली बात यह है कि जिन लोगों पर संदेह हुआ उनमें मेडिकल डॉक्टर भी शामिल थे। रिपोर्ट बताती हैं कि अनंतनाग के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज से एके-47 राइफल बरामद की गई और दो-तीन डॉक्टरों की गिरफ्तारी के बाद यहीं से छानबीन आगे बढ़ी। जिस कार में विस्फोट किया गया उसे भी एक डॉक्टर उमर चला रहा था। कुल छह डॉक्टरों के नाम सामने आ चुके हैं। इससे पता चल रहा है कि कैसे एक पवित्र और ईमानदार पेशे की आड़ लेकर संवेदनशील स्थानों और सामाजिक विश्वास के ऊपर से भी आतंकी गतिविधियों को संचालित किया जा सकता है। इससे पहले गुजरात से तीन आतंकियों को गिरफ्तार किया गया था, जिन्होंने पूछताछ में कई बड़े खुलासे किए हैं। आतंकियों ने हमले की तैयारी के लिए अहमदाबाद, लखनऊ और दिल्ली जैसे शहरों की रेकी की थी और आतंकी घटनाओं से इन्हें दहलाने की साजिश भी रची थी। आतंकियों के मुताबिक अहमदाबाद के भीड़भाड़ वाले इलाकों का नक्शा तैयार किया गया था। वहीं लखनऊ में आरएसएस के कार्यालय को भी निशाना बनाने के मंसूबे थे। दिल्ली में आतंकियों की नजरें आजादपुर मंडी इलाके पर थी। प्रारंभिक जांच में पता चला कि आतंकी राइसिन नामक जहर बना रहे थे जिससे हजारों लोगों को जान से मारने की तैयारी थी। पुलिस पूछताछ में एक अहम खुलासा यह भी हुआ था कि आतंकवादी आजाद शेख एक हफ्ते तक जम्मू-कश्मीर में रहा था, जहां पर उसने कुछ संवेदनशील इलाकों की जानकारियां भी जुटाई थीं। आतंकियों ने हर जगह पर मौसम, शहरी बनावट और ट्रैफिक की पुख्ता जानकारी जुटाई थी। सभी आतंकी पाकिस्तान से संपर्क में थे और अपने आकाओं के इशारों पर काम कर रहे थे। पाकिस्तानी आकाओं के इशारों पर ही आतंकियों ने भारत में बड़े नरसंहार की योजना रची थी। वह लोगों को राइसिन नाम का जहर देकर मारने की प्लानिंग कर रहे थे। आतंकी अहमद सैयद कई दिनों से राइ‌सिन पॉइजन इकट्ठा कर रहा था, ताकि खौफनाक मंसूबों को अंजाम दिया जा सके। निःसंदेह यह दौर बहुआयामी चुनौतियों का है। एक ओर केंद्र तथा राज्य एजेंसियों की त्वरित कार्रवाई और अंतर-एजेंसी समन्वय का जो नमूना हमें इन छापों से दिखा, वह सराहनीय है, सही सूचना-इंटेलिजेंस के भरोसे तेजी से छापे डाले गए और संभावित बड़े हादसों को रोका गया। दूसरी ओर यह भी स्पष्ट है कि हमारी जांच-विधान, संस्थागत निगरानी और पंजीकरण तंत्र में ऐसे षड्यंत्रों को पकड़ने-समेत रोकने के लिए और सुधार की जरूरत है। आज जिस तरह से आतंकवाद का चेहरा परिवर्तित हो रहा है, निःसंदेह वह भयभीत करने वाला है। लेकिन इससे कल होशियार होना भी आसान है, क्योंकि जब हमें पता चल गया है कि डॉक्टर, प्रोफेशनल्स, छात्र संघ, कहीं-कहीं सामान्य दिखने वाला व्यक्ति भी हमारी सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा बन सकता है, तो हमें सिर्फ चिन्ता नहीं करनी, बल्कि सटीक कार्रवाई करनी होगी। आतंक को मात देने का समय अब है। हमें पीछे मुड़कर नहीं देखना, बल्कि आगे बढ़ना है, सामूहिक रूप से, सतर्क रूप से,अडिग रूप से। मगर इतना तय है कि लाल किले के पास धमाका कोई साधारण घटना नहीं है, यह एक तरह से देश पर हमला है। यह हम सबको यह याद दिलाता है कि आतंक का जाल अब हमारी गलियों, विश्वविद्यालयों, डिजिटल चैट ग्रुपों और वित्तीय तंत्रों में घुस चुका है। अब यह युद्ध सिर्फ सैनिकों या पुलिस का नहीं, बल्कि नागरिक समाज, तकनीकी संस्थानों, शिक्षकों, और नीति निर्माताओं सहित हम सबका है। हमें एक ऐसे भारत का निर्माण करना होगा जहां सुरक्षा सिर्फ हथियारों से नहीं, बल्कि विश्वास, शिक्षा, न्याय और एकता से सुनिश्चित की जाए। आतंकवाद को हराने का अर्थ सिर्फ आतंकियों को मारना नहीं, बल्कि उस मानसिकता को खत्म करना है जो उन्हें जन्म देती है। इसके लिए सबसे पहले खुफिया एजेंसियों को देश में फैले आतंक के जाल को तोड़ना होगा और यह काम सभी केंद्र और राज्य एजेंसियों को मिलकर करना होगा। यह काम आम नागरिकों के सहयोग के बिना संभव नहीं है। देश की राजनीतिक पार्टियों को भी चाहिए कि इस विषय पर राजनीति नहीं करते हुए सरकार का साथ दें। आतंकवाद पर किसी भी प्रकार की राजनीति नहीं हो।हकीकत यह है कि भारत का हर नागरिक, सुरक्षा संस्था और राज्य प्रशासन मिलकर इस खतरे से तब तक नहीं जीत सकते जब तक हम इसके स्रोत, नेटवर्क, लॉजिक और सहयोगियों तक पहुंच नहीं पाते। हमें एक रणनीति के साथ काम करना होगा, जहां आतंक सिर्फ दबाया नहीं जाए, बल्कि जड़ से उखाड़ दिया जाए। सभी के सहयोग से ही देश में फैले आतंक के जाल को तोड़ा जा सकता है लेकिन उच्च शिक्षित डाक्टरों का आतंकी तंजीम से जुड़ना बेहद चौंकाने वाला और गहन चिंता का विषय है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments