
लेखक- पवन वर्मा
मध्यप्रदेश को मिल्क कैपिटल बनाने की मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने घोषणा की है। उन्होंने अपनी घोषणा के साथ यह भी तय कर लिया है कि म.प्र. में दुग्ध क्रांति लाने में उन्हें कितने वर्ष लगेंगे। डॉ. यादव का दावा है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और केन्द्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह के सहयोग से वे 2028 तक दुग्ध उत्पादन को लगभग 11 प्रतिशत बढ़ा देंगे। म.प्र.में अभी देश के महज 9 प्रतिशत दुग्ध का उत्पादन होता है और सरकार ने 2028 तक इसके उत्पादन करने का लक्ष्य बीस प्रतिशत तय कर दिया है। यह लक्ष्य हवा-हवाई नहीं है, यानि भाषण बाजी कर वाह-वाही लूटने का भी जरिया नहीं है, क्योंकि मुख्यमंत्री ने जिस दिन यह दावा किया कि वे 2028 तक मप्र को मिल्क कैपिटल बना देंगे उससे पहले उन्होंने और उनकी सरकार ने इस पर अपना होमवर्क भी कर लिया। इसके बाद ही यह दावा उन्होंने सार्वजनिक रूप से किया।
ऐसे हासिल होगा लक्ष्य
प्रदेश में देश के कुल दुग्ध उत्पादन का 9 प्रतिशत होता है, जिसे 20 प्रतिशत तक ले जाने का सरकार का लक्ष्य है। प्रदेश में गोवंश के लिए आहार की व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए प्रतिमाह दी जाने वाली राशि को 20 रुपये से बढ़ाकर 40 रुपये कर दिया गया है। ‘हर घर गोकुल’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रदेश में 946 नई दुग्ध सहकारी समितियों का गठन किया गया है। मुख्यमंत्री वृंदावन ग्राम योजना में प्रदेश के ग्रामों को आत्मनिर्भर बनाया जाएगा। दुग्ध उत्पादन और ग्रामीण आजीविका को बढ़ाने के लिए प्रत्येक जनपद में एक वृंदावन ग्राम बनाया जा रहा है।
दुग्ध उत्पादन से अधिक आय के लिए मध्यप्रदेश दुग्ध संघ के सांची ब्रांड को अधिक लोकप्रिय बनाया जा रहा है, इसके लिए नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड से करार भी किया गया है। प्रदेश में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के साथ दुग्ध उत्पादों की बेहतर ब्राडिंग, गोवंश की समुचित देखभाल, वेटनरी क्षेत्र में आवश्यक प्रशिक्षण और उन्नत अधोसंरचना स्थापित करने में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की विशेषज्ञता का हरसंभव लाभ लिया जा रहा है। वर्ष 2030 तक प्रदेश के 26 हजार गांवों तक डेयरी नेटवर्क का विस्तार सुनिश्चित किया जाना है। इससे 52 लाख किलोग्राम दुग्ध संकलन होगा। बड़े हुए दुग्ध संकलन का समुचित उपयोग सुनिश्चित करने के लिए आधुनिकतम दुग्ध प्रसंस्करण अवसंरचना विकसित की जाएगी। प्रदेश में निर्मित होने वाले दुग्ध उत्पादों की राष्ट्रीय स्तर पर ब्राडिंग सुनिश्चित की जाएगी। प्रदेश में पशुपालन और डेयरी विकास के लिए सरकार द्वारा नई योजनाएं शुरू की गई हैं। डॉ.भीमराव अंबेडकर कामधेनु योजना में पशुपालक को 25 दुधारू पशु गाय, संकर गाय, भैंस की इकाई प्रदान की जाएगी। इस इकाई की लागत 36 से 42 लाख रुपए के बीच रहेगी। योजना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के हितग्राहियों के लिए 33 प्रतिशत एवं अन्य वर्ग के लिए 25 प्रतिशत अनुदान की व्यवस्था की गई है। सरकार ने तय किया है कि अब 14 जिलों में चल रही दुधारु पशु योजना सिर्फ भैंस का ही नहीं गाय का दूध भी खरीदेगी। गाय के दूध की खरीद की कीमत बढ़ाई जाएगी। प्रदेश में ‘स्वावलंबी गो-शालाओं की स्थापना नीति 2025’ भी लागू की गई है। इसके अंतर्गत नगरीय क्षेत्र में उपलब्ध गो वंश के आश्रय एवं भरण पोषण के लिए पांच हजार गो-वंश से अधिक की क्षमता वाली वृहद गो-शालाएं नगर निगम ग्वालियर, उज्जैन, इंदौर, भोपाल और जबलपुर में स्थापित की जा रही हैं।
गो संरक्षण में अग्रणी
गो-संरक्षण एवं संवर्धन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश देश का अग्रणी राज्य बन गया है। मुख्यमंत्री दुधारू पशु योजना, कामधेनु निवास योजना, मुख्यमंत्री डेयरी प्लस कार्यक्रम, नस्ल सुधार कार्यक्रम के साथ ही विभिन्न केंद्रीय योजनाओं का प्रदेश में प्रभावी क्रियान्वयन किया जा रहा है। इन योजनाओं के माध्यम से प्रदेश में न केवल गोवंश का समुचित पालन-पोषण किया जा रहा है, अपितु दुग्ध उत्पादन में भी निरंतर वृद्धि हो रही है। प्रदेश में स्वावलंबी गो-शालाओं की स्थापना नीति पर तेज गति से कार्य किया जा रहा है। योजना के अंतर्गत प्रदेश में 28 स्थान चिन्हित किए गए हैं तथा 8 स्वयं सेवी संस्थाओं को भूमि भी आवंटित भी की जा चुकी है। योजना में 5000 एवं अधिक गो-वंश के पालन पर शासन की ओर से 130 एकड़ तक भूमि आवंटित किए जाने का प्रावधान है। गो-शालाओं के लिए चारा-भूसा अनुदान योजना के अंतर्गत इस वित्त वर्ष में विभिन्न गो-शालाओं को 133.35 करोड रुपए दिए गए हैं। गत वर्ष इस योजना में 270.40 करोड़ रुपए गो-शालाओं को अनुदान के रूप में दिए गए थे। प्रदेश में गो संवर्धन बोर्ड के अंतर्गत 2942 गो-शालाएं पंजीकृत हैं, जिनमें 2828 गो-शालाएं संचालित हैं। इन गो-शालाओं में 04 लाख 22 हजार गो-वंश का पालन-पोषण किया जा रहा है। गत एक वर्ष में प्रदेश में कुल 623 गौशालाएं पंजीकृत हुई हैं, जिनमें 596 गौशालाएं मनरेगा योजना के अंतर्गत बनाई गई हैं तथा 27 का संचालन स्वयंसेवी संस्थाएं कर रही हैं। प्रदेश में अति पिछड़े बैगा, सहरिया और भारिया जनजाति के पशुपालकों के लिए प्रदेश के 14 जिलों में मुख्यमंत्री दुधारु पशु योजना संचालित की जा रही है, जिसके अंतर्गत सरकार द्वारा 90 प्रतिशत अनुदान पर प्रत्येक हितग्राही को दो-दो मुर्रा भैंस/ गाय प्रदान की जाती है। योजना में गत वर्ष 660 के विरुद्ध 639 हितग्राहियों को लाभान्वित किया गया था तथा इस वर्ष 483 को पशु प्रदान किए जाने का लक्ष्य है। मुख्यमंत्री डेयरी प्लस कार्यक्रम प्रदेश में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में सीहोर, विदिशा तथा रायसेन जिलों में चलाया जा रहा है। केंद्र सरकार के राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अंतर्गत प्रदेश में कुल 1500 ‘मैत्री’ की स्थापना के लिए 12 करोड़ 15 लाख रुपए की राशि प्राप्त हुई है। प्रदेश में कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से पशु नस्ल सुधार के लिए निरंतर कार्य किया जा रहा है।मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने अपने लक्ष्य को पाने के लिए किसानों-गोवंश को संरक्षण के प्रयास तेज कर दिए हैं। उनका लक्ष्य 2028 तक सीमित नहीं है बल्कि 2030 तक 52 लाख किलो ग्राम दुग्ध का उत्पादन करना है। डॉ. यादव की इच्छाशक्ति और इस पर चल रहे कामों को देखते हुए फिलहाल यह कहा जा सकता है कि म.प्र.दुग्ध उत्पादन में देश का सिरमौर बन सकता है। हालांकि लक्ष्य पाना आसान नहीं है, इसके लिए इसकी मॉनिटरिंग गांव से लेकर राजधानी भोपाल तक होना जरूरी है।