मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को शहर में खुली जगहों और खेल सुविधाओं की सुरक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और उज्जवल भविष्य को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत ने घटती हरियाली और खेल क्षेत्रों के पुनर्विकास के लिए निजीकरण के बढ़ते मामलों पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
2036 ओलंपिक की तैयारी पर सवाल
न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और न्यायमूर्ति अद्वैत सेठना की पीठ ने भारत की 2036 ओलंपिक मेज़बानी की दावेदारी का ज़िक्र करते हुए सवाल उठाया कि यदि खेल मैदानों को निजी विकास के लिए सौंप दिया गया, तो युवा एथलीटों को प्रशिक्षण के लिए स्थान कैसे मिलेगा। उन्होंने क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसे प्रतिभावान युवाओं के पास प्रशिक्षण और खेल के अवसर नहीं होंगे। पीठ ने नवी मुंबई में सिडको द्वारा प्रस्तावित विश्व स्तरीय खेल स्टेडियम को निजी निर्माण के लिए रद्द करने की आलोचना करते हुए कहा, आप बॉम्बे में ओलंपिक चाहते हैं? आम आदमी के लिए खेल सुविधाओं का दृष्टिकोण कहां गया?
स्लम पुनर्विकास अधिनियम पर समीक्षा
उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र स्लम एरिया (सुधार, निकासी और पुनर्विकास) अधिनियम, 1971 की समीक्षा के तहत स्वतः संज्ञान याचिका पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हाई कोर्ट ने अधिनियम के कार्यान्वयन का ‘प्रदर्शन ऑडिट’ करने की प्रक्रिया शुरू की है। एमिकस क्यूरी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में झुग्गी-झोपड़ियों की पहचान और पुनर्विकास में आने वाली 100 से अधिक चुनौतियों को रेखांकित किया गया। राज्य के महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने अदालत को आश्वासन दिया कि प्रशासनिक और विधायी परिवर्तनों के माध्यम से इन समस्याओं का समाधान किया जाएगा।
झुग्गीवासियों के अधिकारों की रक्षा पर जोर
सराफ ने झुग्गीवासियों की सुरक्षा के लिए डेवलपर्स को पुनर्विकास शुरू करने से पहले दो साल का अग्रिम किराया चुकाने के नियम का समर्थन किया। अदालत ने इसे झुग्गीवासियों के हित में आवश्यक बताया।
अगली सुनवाई की तैयारी
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को 15 जनवरी तक रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करने और संबंधित पक्षों से 31 जनवरी तक सुझाव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। अदालत 14 फरवरी से नियमित सुनवाई शुरू करेगी। पीठ ने स्पष्ट किया कि मुंबई की हरियाली और खेल क्षेत्रों को संरक्षित करना केवल पर्यावरण और खेल विकास के लिए नहीं, बल्कि शहर के भविष्य की दिशा में एक दूरदर्शी कदम है। न्यायालय ने मुख्य समस्याओं को प्राथमिकता देकर समाधान निकालने की प्रतिबद्धता जताई।