Sunday, October 26, 2025
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प्रथम महिला स्वतंत्रता सेनानी अभय रानी ‘अब्बक्का चौटा’

हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार
कर्नाटक के उल्लाल में 1525 को जन्मीं रानी ‘अब्बक्का चौटा’ 16 वीं शताब्दी में उल्लाल की एक तुलुवा रानी थीं, जिन्होंने पुर्तगालियों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी और उन्हें भारत की प्रथम महिला स्वतंत्रता सेनानी और एक जैन महिला बलिदानी भी कहा जाता है। अपनी वीरता के कारण उन्हें ‘अभय रानी’ भी कहा जाता था, और उन्होंने चार दशकों से अधिक समय तक पुर्तगालियों के हमलों को विफल किया। वह चौटा राजवंश से थीं और उनके रणनीतिक कौशल और ‘अग्निबाण’ के उपयोग के लिए जानी जाती हैं। उल्लेखनीय चौटा राजवंश जैन बंट मूल का एक जैन राजवंश था। जिसने 12 वीं – 18 वीं शताब्दी के दौरान तुलुनाडु क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर शासन किया था।
उल्लाल राज्य की शासक
साल था 1555 जब पुर्तगाली सेना कालीकट, बीजापुर, दमन, मुंबई जीतते हुए गोवा को अपना हेडक्वार्टर बना चुकी थी। टक्कर में कोई ना पाकर उन्होंने पुराने कपिलेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर उसपर चर्च स्थापित कर डाली। मंगलौर का व्यवसायिक बंदरगाह अब उनका अगला निशाना था। उनकी बदकिस्मती थी कि वहाँ से सिर्फ 14 किलोमीटर पर ‘उल्लाल’ राज्य था जहां की शासक थी 30 साल की रानी ‘अबक्का चौटा’। पुर्तगालियों ने रानी को हल्के में लेते हुए केवल कुछ सैनिक उसे पकडने भेजा। लेकिन उनमें से कोई वापस नहीं लौटा। क्रोधित पुर्तगालियों ने अब एडमिरल ‘डॉम अल्वेरो ड-सिलवीरा’ के नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेजी। शीघ्र ही जख्मी एडमिरल खाली हाथ वापस आ गया। इसके बाद पुर्तगालियों की तीसरी कोशिश भी बेकार साबित हुई।
शेरो की भांति टूट पडी
चौथी बार में पुर्तगाल सेना ने मंगलौर बंदरगाह जीत लिया। सोंच थी कि यहाँ से रानी का किला जीतना आसान होगा, और फिर उन्होंने यही किया। जनरल ‘जोओ पीक्सीटो’ बड़ी सेना के साथ उल्लाल जीतकर रानी को पकड़ने निकला। लेकिन यह क्या? किला खाली था और रानी का कहीं अता-पता भी ना था। पुर्तगाली सेना हर्षोल्लास से बिना लडें किला फतह समझ बैठी। वे जश्न में डूबे थे कि रानी अबक्का अपने चुनिंदा 200 जवान के साथ उनपर भूखे शेरो की भांति टूट पडी। बिना लड़े जनरल व अधिकतर पुर्तगाली मारे गए। बाकी ने आत्मसमर्पण कर दिया। उसी रात रानी अबक्का ने मंगलौर पोर्ट पर हमला कर दिया जिसमें उसने पुर्तगाली चीफ को मारकर पोर्ट को मुक्त करा लिया।
गौरवपूर्ण इतिहास
रानी अबक्का के देशद्रोही पति ने पुर्तगालियों से धन लेकर उसे पकड़वा दिया और जेल में रानी विद्रोह के दौरान 1570 में मारी गई। इस वीर रानी अबक्का चौटा के बारे में पहले कभी बहुत से लोगों ने सुना या पढ़ा होगा? जो चार दशकों तक विदेशी आततायियों से वीरता के साथ लड़ती रही हमारी पाठ्यपुस्तकें चुप हैं? अगर यही रानी अबक्का योरोप या अमेरिका में पैदा हुई होती तो उस पर पूरी की पूरी किताबें लिखी गई होती। वीरता की भूलता की वजह से हमें हमारे गौरवपूर्ण इतिहास से जानबूझ कर बंचित रखा गया है। हमारी 1000 साल की दासता अपने ही देशवासियों के विश्वासघात का नतीजा है। प्रेरणास्पद रानी अबक्का की याद में हर साल उल्लाल में “वीरा रानी अब्बक्का उत्सव” का त्योहार मनाया जाता है। जिसके दौरान विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान के लिए वीर, प्रतिष्ठित महिलाओं को वीरा रानी अब्बक्का पुरस्कार और प्रशस्ति दिया जाता है।

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