
सुभाष आनंद
पंजाब में आई भीषण बाढ़ का पानी जो घरों तक प्रवेश कर गया था, अब धीरे-धीरे उतर चुका है। अब यहां के हैरान परेशान ग्रामीण लोगों ने कुछ राहत की सांस लेनी शुरू कर दी है। जिन लोगों ने अपने घरों को छोड़कर रिश्तेदारों या फिर सुरक्षित स्थानों पर पनाह ली थी, अब शनै: शनै: अपने घरों की तरफ लौट रहे हैं। घर लौटते इन लोगों को अब अपने भविष्य की चिंता सता रही है। यहां उनकी धान की फसल लगभग तबाह हो चुकी है। कई लोगों के घर सतलुज में समा गए हैं ।अनेक पक्के घरों में दरारें आ चुकी है। बचे खुचे घर भी अब सुरक्षित नहीं रहे हैं। अधिकांश लोगों के घर अब रहने के लायक नहीं बचे हैं। इस पत्रकार ने टेडी वाला और कालू वाला गांवों का दौरा किया,हालत यह है कि भविष्य में इन दोनों गांवों का अस्तित्व खतरे में नजर आया, कालू वाला गांव जो जीरो लाइन पर बसा है लगभग एक टापू के सामान है। यहां कोई सड़क या रास्ता नहीं है,वहां पहुंचने के लिए कश्ती का सहारा लिया जाता है। कालू वाला तीन तरफ सतलुज दरिया से घिरा है ,चौथी तरफ पाकिस्तान की सीमा से जुड़ा है। गांव वालों ने बताया कि यहां पर 40 – 42 घर है, इनमें भी अधिकतर घर कच्चे थे जो पानी में बह गए हैं। गांव के प्राइमरी स्कूल की इमारत जरूर पक्की है। बाढ़ के दौरान लोगों ने इसी स्कूल की छत के ऊपर बैठकर गुजारा किया है। गांव की सारी धान की फसल खराब हो चुकी है। सतलुज दरिया निरंतर भूमि का कटाव कर रहा है। यदि यही स्थिति रही तो कालू वाला गांव का नामोनिशान मिट जाने की आशंका से इनकार भी नहीं किया जा सकता। गांव के कई लोगों की भूमि सतलुज दरिया में समा गई है। जिन लोगों ने अपनी जमीन पर खेती-बाड़ी की थी, उस भूमि को सतलुज दरिया अपने दामन में समा चुका है। यहां एक महीने बच्चे स्कूल नहीं जा सके ,उनकी पढ़ाई प्रभावित हो चुकी है, कई बच्चों की कॉपियां किताबें पानी में पूरी तरह तबाह हो चुकी है। गांव वालों की मांग है कि उन्हें प्लाट दिए जाएं ताकि ऊंची जगह पर वे अपना मकान बना सके और सुरक्षित रह सके। वहीं टेडी वाला गांव जो सतलुज के बीचों-बीच बसा है, यहां पर 100 से कुछ अधिक घर हैं। सभी घर छोटे-छोटे हैं। यहां पर छोटे किसान हैं, जिनमें से कई शहरों में मेहनत मजदूरी भी करते हैं। वहां के रहने वाले किसान जोगिंदर सिंह का कहना है कि हम चार भाइयों की 16 एकड़ जमीन थी, 12 एकड़ दरिया में समा चुकी है, वहीं कई लोगों ने ठेके पर जमीन ले रखी थी वह भी पूर्ण रूप से तबाह हो चुकी है। गांव टेंडी वाला से सतलुज का बहाव दो-तीन किलोमीटर दूर था,लेकिन बाढ़ के बाद सतलुज का बहाव टेंडी वाला के बिल्कुल समीप आ चुका है। अगर अगली बार इसी प्रकार बाढ़ आई तो भविष्य में टेंडी वाला का नामोनिशान मिट जाएगा। अब सतलुज टेंडीवाला स्कूल से एक फ़लांग की दूरी पर बह रही है जो गांव वासियों के लिए खतरे की निशानी बन गया है।
वही, भूतपूर्व विधायक सुखपाल सिंह नन्नू ने बताया कि गांव टेंडीवाला में अधिकतर किसानों के पास कच्ची जमीन है ,अत: उन्हें मुआवजा मिलने की कोई संभावना नहीं है। स्वर्गीय प्रकाश सिंह बादल के शासनकाल में जमीनें पक्का करने का अभियान चलाया गया था,कुछ लोगों ने 50000 प्रति एकड़ में जमीन अपने नाम करवा ली थी, लेकिन चुनाव नजदीक होने के कारण कांग्रेसी विधायक पिंकी ने ग्रामीणों से वादा किया कि यदि वह जीत गए तो बिना पैसे लोगों की जमीन पक्की करवा देंगे, जिसके कारण अधिकतर लोगों ने 50 हजार रुपए प्रति एकड़ भरने से परहेज किया।
वही नन्नू कहते हैं कि यदि गांव के अस्तित्व को बचाना है तो सरकार को सतलुज के किनारे मजबूत बांध बनाने की जरूरत है, लोगों द्वारा बांधे गए मिट्टी के बांध इतने मजबूत नहीं है जो सतलुज के बहाव को रोक सकें। सतलुज दरिया का तेज बहाव उनको कभी भी किसी भी समय टक्कर मारकर नुकसान पहुंचा सकता है। उन्होंने कहा कि पंजाब को बाढ़ से बचाने के लिए जो सहयोग पंजाबियों ने किया उनकी प्रशंसा पूरे विश्व में हो रही है,लेकिन राज्य सरकार कहां है? आज भी पंजाब के मुख्यमंत्री और मंत्री लोगों के गुस्से का सामना कर रहे हैं। गांव टेंडी वाला में पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री बलवीर सिंह को जिस प्रकार जान बचाकर भागना पड़ा, यह दर्शाता है कि लोगों के मन में मंत्रियों के प्रति कितना गुस्सा है। बाढ़ प्रभावित टेडी वाला गांव के नौजवान अमृतपाल सिंह, दिलबाग सिंह ,दलेर सिंह का कहना है कि फिरोजपुर, गुरदासपुर, तरनतारन, अमृतसर, फाजिल्का के सीमावर्ती क्षेत्रों में बाढ़ से सबसे अधिक नुकसान हुआ है। पंजाब में 54 लोग मारे जा चुके हैं,हजारों मवेशी बाढ़ में बह चुके हैं। कई बच्चे अनाथ हो गए हैं, हजारों एकड़ फसल तबाह हो चुकी है,प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पंजाब का हवाई सर्वेक्षण करने के पश्चात 1600 करोड़ की राहत जारी करने की बात कही हैं जबकि पंजाब का नुकसान 20,000 करोड़ से भी ज्यादा हुआ है। बाढ़ प्रभावित लोगों ने अपनी दु:ख भरी दास्तां सुनाते हुए कहा कि हमें अपने प्रिय लोगों का दाह संस्कार घरों की छतों के ऊपर करना पड़ा,पंजाबियों के हाथ जो सदैव लोगों की मदद के लिए उठते रहे हैं, आज वह हाथ मांगते नजर आ रहे हैं। टेंडी वाला के लोगों ने बताया कि हम भारत-पाक युद्ध से नहीं डरते ,लेकिन हर वर्ष सतलुज का पानी हमें भयभीत करता है। सरकार सतलुज पर पक्के बांध नहीं बना रही है। अकाली दल- भाजपा गठबंधन की सरकार, कांग्रेस और अब आम आदमी पार्टी की सरकार है किसी भी सरकार ने बांधों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। सिंचाई विभाग में बड़े-बड़े घोटाले इस बात का सबूत हैं कि दरियाओं और नहरों में जो काम किए जा रहे हैं वह सभी कागजों तक सीमित है,धरातल पर नहीं। यदि सतलुज दरिया इसी तरह उफनता करता रहा तो टेंडी वाला गांव को पूरी तरह अपने में शामिल कर लेगा और टेंडी वाला का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। टेंडी वाला के अधिकतर लोगों की मांग है कि सतलुज किनारे बसे लोगों को ऊंची जगह पर प्लाट अलाट किए जाएं ताकि लोग पानी की मार से बच सके। यहां समाज सेवी संस्थाओं ने बाढ़ पीड़ित लोगों को राशन एवं पशु चारा पहुंचाने की कोशिश की उसको लेकर गांव के लोग उनकी सराहना करते हुए नहीं थकते लेकिन यही लोग प्रशासन और सरकार को कोस रहे हैं । अभी भी बाढ़ पीड़ितों को पक्के घर, गर्म कपड़ों के साथ-साथ चप्पल, बूट, ब्रेड और जानवरों के लिए त्रिपालों की बड़ी मात्रा में जरूरत पड़ेगी। बिना सरकारी मदद के लोगों को इससे उबरना बहुत मुश्किल होगा। दांडी वाला में भी अनेक मकान सतलुज के अंदर समा चुके हैं। गटटी राजोके के स्कूल के पीछे बने कच्चे मकानों को भी बहुत नुकसान हुआ है। निहाला किलचा,बस्ती भाने वाली, किलचे,चांदी वाला, रुकने वाला, हबीब वाला, पंजाब माता की समाधि, गट्टा बादशाह तथा छोटी-छोटी ढाणियों का बाढ़ से बहुत नुकसान हुआ है। अनुमान है कि प्रकृति की इस मार से किसान तीन वर्ष तक उबर नहीं सकते ,कई किसान बैंक और आड़तियों के पहले ही करजाई हैं।
सांपों और जहरीले जानवरों का भी डर
अधिकतर लोगों का मानना है कि बाढ़ के कारण सांप और जहरीले जानवर भी बाहर आ जाते हैं। घरों में भी दो-दो फीट गारा और रेत जमी होने के कारण जहरीले जानवरों, कीड़े मकोड़ों का खतरा बना हुआ है। घरों की सफाई को लेकर परेशानी बनी हुई है। लोग सांप और जहरीले जानवरों से भी भयभीत है।




