
नागपुर। संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ जैसे शब्दों को हटाने की आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले की मांग के बाद सियासी हलचल तेज़ हो गई है। इस मुद्दे पर एनसीपी (शरद पवार गुट) की सांसद सुप्रिया सुले ने नागपुर में प्रेस से बातचीत करते हुए तीव्र विरोध दर्ज कराया है। सुले ने कहा, संविधान में जो शब्द हैं, वे व्यापक सलाह-मशविरा और लोकतांत्रिक विमर्श के बाद शामिल किए गए थे। यह किसी एक व्यक्ति की सोच पर आधारित नहीं था, बल्कि समस्त देश की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र की वर्तमान सरकार अप्रत्यक्ष रूप से संविधान संशोधन की दिशा में बढ़ रही है। उन्होंने कहा, हम लगातार कह रहे हैं कि मौजूदा सत्ता संविधान को बदलने का इरादा रखती है। लोकसभा में भाजपा के दो सांसदों ने खुले तौर पर ‘अबकी बार 400 पार, बदलेंगे संविधान’ जैसा बयान दिया है। हम ऐसा होने नहीं देंगे। भारत का संविधान हमारे लोकतंत्र की आत्मा है और उसे कोई भी मनमाने ढंग से नहीं बदल सकता।
आपातकाल की वर्षगांठ पर उठे विवादित सवाल
यह विवाद तब और बढ़ गया जब आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्द आपातकाल के दौरान संविधान में जबरन जोड़े गए थे, और अब समय आ गया है कि उन पर पुनर्विचार किया जाए।
कार्यक्रम, जिसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर ने मिलकर आयोजित किया था, आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर हुआ। होसबोले ने इस दौरान जोर देते हुए कहा, आपातकाल केवल सत्ता का दुरुपयोग नहीं था, बल्कि नागरिक स्वतंत्रताओं का दमन था। प्रेस की आज़ादी पर प्रतिबंध लगा, लाखों लोग जेलों में बंद किए गए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि “जिन लोगों ने संविधान और लोकतंत्र को रौंदा, उन्होंने न तो आज तक माफी मांगी और न ही आत्मावलोकन किया। अगर वे व्यक्तिगत रूप से क्षमा नहीं मांग सकते, तो उन्हें अपने पूर्वजों की ओर से माफी मांगनी चाहिए। इस बयान पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। सुप्रिया सुले के अलावा अन्य विपक्षी नेताओं ने भी आरएसएस पर “संविधान की आत्मा को बदलने का प्रयास” करने का आरोप लगाया है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा संसद और सड़क- दोनों पर गरम बहस का विषय बन सकता है।