
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मकान मालिक-किराएदार विवादों में लंबित मामलों की अवधि और देरी पर गंभीर चिंता जताते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से स्थिति का आकलन करने और त्वरित समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ में जस्टिस संजय करोल और मनोज मिश्रा ने हाई कोर्ट को आदेश दिया कि वह अपने अधीनस्थ न्यायालयों से मकान मालिक-किराएदार मामलों की लंबित स्थिति की रिपोर्ट मांगे। अगर व्यापक देरी की पुष्टि होती है तो संबंधित सुधारात्मक उपाय किए जाएं। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे विवादों में केवल कानूनी कब्जे का मामला नहीं होता, बल्कि वित्तीय हित भी जुड़े होते हैं। देरी से दोनों पक्षों को नुकसान होता है, क्योंकि विवादित संपत्ति के उपयोग और उससे होने वाले लाभों से वंचित होना पड़ता है। यह निर्देश मुंबई के ‘हरचंद्राय हाउस’ पर कब्जा करने वाले हिंदुस्तान ऑर्गेनिक केमिकल्स लिमिटेड (एचओसीएल) से जुड़े एक मामले के निपटान के दौरान दिया गया। यह मामला लगभग 25 वर्षों से लंबित था। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के कई हिस्सों को बरकरार रखते हुए ब्याज दर 8 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत कर दी। साथ ही किरायेदार को तीन महीने में बकाया राशि चुकाने का आदेश दिया गया। पीठ ने कहा कि मुकदमा वर्ष 2000 में शुरू हुआ था और इतनी लंबी देरी न्यायिक प्रणाली की अक्षमताओं को दर्शाती है। हालांकि कुछ देरी मामलों में पक्षकारों के कारण भी होती है, लेकिन कई बार यह न्यायिक प्रक्रियाओं में होती है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया है कि वे महाराष्ट्र के सभी मकान मालिक-किराएदार विवादों की लंबित स्थिति का मूल्यांकन करें और उन्हें तेजी से निपटाने के लिए सुधारात्मक कार्रवाई करें।