
मुंबई। 1992 के चर्चित जेजे अस्पताल गोलीकांड मामले में विशेष मकोका अदालत ने 63 वर्षीय त्रिभुवन रामपति सिंह को आरोपमुक्त करने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि सिंह के खिलाफ पर्याप्त सबूत मौजूद हैं जो प्रथम दृष्टया उनके अपराध में शामिल होने की ओर संकेत करते हैं। सिंह पर आरोप है कि वह 12 सितंबर 1992 को हुई उस घातक गोलीबारी में शामिल हमलावरों में से एक था, जिसे दाऊद इब्राहिम के बहनोई इब्राहिम इकबाल पारकर पर हुए हमले का बदला लेने के लिए अंजाम दिया गया था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, 16 मार्च 1991 को अरुण गवली गिरोह के सदस्यों ने पारकर पर हमला किया था, जिसके बाद दाऊद गैंग ने प्रतिशोध स्वरूप जेजे अस्पताल में गोलियां बरसाईं। घटना के दौरान ए.के.-47, पिस्तौल, रिवॉल्वर और हथगोले से लैस हमलावरों ने अस्पताल के वार्ड में घुसकर गोलीबारी की, जिसमें शूटर शैलेश हल्दनकर और सुरक्षा ड्यूटी पर तैनात दो पुलिस कांस्टेबलों की मौत हो गई, जबकि कई अन्य गंभीर रूप से घायल हुए। 32 वर्षों तक उत्तर प्रदेश में फरार रहने के बाद त्रिभुवन रामपति सिंह को गिरफ्तार किया गया। अभियोजन पक्ष ने अदालत में कहा कि प्रत्यक्षदर्शियों के बयान, पहचान परेड और सिंह के कथित कबूलनामे से यह साबित होता है कि वह गोलीबारी में शामिल था। डॉक्टर की रिपोर्ट के अनुसार, सिंह के शरीर पर आग्नेयास्त्रों से लगी पुरानी चोटों के निशान पाए गए, जो इस बात का संकेत हैं कि वह पुलिस की जवाबी कार्रवाई में घायल हुआ था और मौके से फरार हो गया था। सिंह के वकील सुदीप पासबोला ने बचाव में कहा कि यह “गलत पहचान” का मामला है और केवल दो हमलावर- सुभाष ठाकुर (दोषी) और बृजेश सिंह (बरी) घटना में शामिल थे। उन्होंने तर्क दिया कि 32 साल बाद की गई पहचान पर भरोसा नहीं किया जा सकता। वहीं, विशेष सरकारी वकील सुनील गोंजाल्विस ने प्रतिवाद किया कि सिंह उर्फ रमापति प्रधान ने डीएनए परीक्षण कराने से इंकार कर दिया था, जिससे उसके खिलाफ संदेह और गहरा हो जाता है। रिकॉर्ड की समीक्षा करने के बाद अदालत ने कहा- प्रथम दृष्टया साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि आवेदक एक आपराधिक गिरोह की आपराधिक गतिविधियों में षड्यंत्र, हत्या, सहायता और प्रोत्साहन के अपराध में शामिल था। अदालत ने पाया कि त्रिभुवन रामपति सिंह के खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त आधार मौजूद हैं।



