Wednesday, August 6, 2025
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माता-पिता को टॉर्चर करते थे बेटा-बहू, बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- 10 दिन में खाली करो फ्लैट

मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने आज के ‘कलयुगी’ बेटे और बहू को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। शहर में रह रहे बूढ़े माता-पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने बेटे-बहू को घर छोड़कर जाने का आदेश दिया है। इससे पहले पनवेल के सीनियर सिटीजन ट्राइब्यूनल ने भी ऐसा ही आदेश पारित किया था। लेकिन इसके बावजूद पीड़ित माता-पिता को इंसाफ नहीं मिला तो उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया था। बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के बेटे और उसकी पत्नी को नवी मुंबई के खारघर स्थित फ्लैट का कब्जा उन्हें सौंपने का निर्देश दिया है। साथ ही बुजुर्ग दंपत्ति को भरण-पोषण के लिए हर महीने एक निश्चित राशि देने का भी फैसला सुनाया है। 70 साल के बुजुर्ग दंपत्ति का आरोप है कि संपत्ति विवाद के चलते उनका बेटा और बहू उनके साथ दुर्व्यवहार और प्रताड़ित करते थे। जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और जस्टिस फिरदोश पूनीवाला ने 22 जनवरी के आदेश में कहा है कि यदि बेटा और बहू याचिकाकर्ताओं को फ्लैट का कब्जा नहीं सौंपते हैं तो पुलिस की मदद ली जा सकती है। बुजुर्ग माता-पिता ने अपनी याचिका में कहा है कि उत्पीड़न की उनकी शिकायत पर ट्रिब्यूनल ने 6 जून 2022 को उनके बेटे-बहू को फ्लैट खाली करने और बेटे को अपने माता-पिता को 5,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था। हालाँकि, बेटे-बहू ने आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने भी उनका सहयोग नहीं किया। न्यायाधीशों ने कहा कि पर्याप्त नोटिस के बावजूद युवा कपल उपस्थित नहीं हुआ। राज्य के वकील ने 22 जनवरी को खारघर पुलिस स्टेशन के सहायक पुलिस निरीक्षक (एपीआई) और ट्रिब्यूनल के पीठासीन अधिकारी से प्राप्त जानकारी कोर्ट को बताई। एपीआई ने कहा कि बेटे द्वारा दिए गए कुछ कारण की वजह से पुलिस ने कार्रवाई नहीं की थी। हालांकि कोर्ट इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुए। कोर्ट ने कहा, पुलिस अधिकारी का इरादा स्पष्ट रूप से आदेश के तहत कार्य नहीं करने का प्रतीत होता है… उनके रिपोर्ट में कोई भी उचित कारण नहीं दिख रहा है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल के आदेशों पर कोई अंतरिम रोक नहीं है। ट्रिब्यूनल के आदेश को डेढ़ साल से अधिक समय बीत गए है, लेकिन इसे अभी लागू नहीं किया गया है। जो कि उचित नहीं है और इससे कानून का उद्देश्य विफल होता है। इसके साथ ही कोर्ट ने युवा जोड़े को कोर्ट के आदेश की प्रति उन्हें सौंपे जाने की तारीख से दस दिनों के भीतर संबंधित फ्लैट बुजुर्ग माता-पिता को सौंपने का निर्देश दिया। वहीँ, बेटे ने ट्रिब्यूनल के पहले आदेश को चुनौती दी है, इस पर हाईकोर्ट ने 6 सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का आदेश भी दिया है।

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