
मुकेश “कबीर”
हमारे देश में लाड़ली लक्ष्मी, लाड़ली बेटी, लाड़ली बहना योजना बहुत चलती हैँ, इतनी ज़्यादा चलती हैं कि इनके सहारे कई ऐसे नेता भी चल जाते हैं,जो खड़े होने लायक भी नहीं होते। इन योजनाओं के कारण जब न चलने वाले नेता भी चल जाते हैं तो ये योजनाएं भी चलती रहती हैं। और जैसे ही लगता है कि सरकार अब नहीं चल पाएगी तो फिर कोई लाड़ली योजना चला दी जाती है। अब हमें तो समझ नहीं आता कि सिर्फ बेटी और बहना ही लाड़ली क्यों? जीजा, भाई, फूफा, समधी, समधन लाडले क्यों नहीं? इन्होंने कौन सा उधार खा रखा है सरकार का? जीजा का तो समझ आता है कि नखरेला होता है इसलिए वो तो लाड़ला हो नहीं सकता, आगे चलकर वो ही फूफा बन जाता है इसलिए वो भी लाड़ला नहीं हो सकता। फूफा तो करेला और नीम चढ़ा होता है इसलिए उससे तो सब वैसे ही दूर भागते हैं, जैसे जुरसिक पार्क में डायनासोर क़ो देखकर भागते थे। वैसे भी हमारे देश में मुन्नी के बाद सबसे ज़्यादा बदनाम कोई है तो वो फूफा ही है, उसकी कोई सुनता नहीं है फिर भी फूं फां बहुत करता है, इसलिए वैज्ञानिकों ने उसका नाम ही फूफा रख दिया। ठीक है जीजा या फूफा से लाड़ मत करो लेकिन समधी ने क्या बिगाड़ा है? लाड़ला समधी योजना तो चला ही सकते हैं। समधी वो चीज है जो हमारे घर में अपनी लाड़ली देता है। वो लाड़ली होती है इसलिए लड़ भी लेती है, लड़ना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। वो लाड़ली है और उसकी लड़ाई की एक मूल वजह यह भी है कि हम समधी क़ो लाड़ नहीं करते, इसलिए लाड़ला समधी योजना की सख्त जरुरत है ताकि घर घर की कहानी ख़त्म हो सके। समधी को लाड़ला बनाईये, हर हफ़्ते उन्हें लाड़ली के घर जाने का संवैधानिक अधिकार दीजिये, उनका स्वागत सत्कार उसी तरह से करवाइये जैसे सरपंच साब पहली बार आपके घर आये हों। लेक़िन याद रहे कि हर बार पहली बार जैसा ही स्वागत सुनिश्चित किया जाए वरना यह भी याद रखें कि समधी भी किसी का फूफा है, जैसे सास भी कभी बहू थी वैसे ही समधी भी पहले फूफा था और फूफा क्या चीज है यह तो हम जानते ही हैं, पता है न? इसलिए समधी के अंदर से फूफा बाहर आये ऐसे काम ही न किये जाएँ, यदि ऐसा हुआ तो लक्ष्मी के अंदर से भी भवानी निकलने में देर नहीं लगेगी फिर भवन में रहना मुश्किल पड़ जाएगा।
इसलिए सारी योजनाएं बंद करके लाड़ला समधी योजना शुरू की जाए, इसमें लाड़ली लक्ष्मी तो इनबिल्ड रहती ही है। यदि समधी खुश तो लाड़ली खुश और समधी नाराज तो रोग लाइलाज, इस सूत्र को वैसा ही ब्रह्म वाक्य समझें जैसे पुलिस वालों के लिए देशभक्ति जनसेवा। सिर्फ इतना ही नहीं लाड़ला समधी योजना के अंतर्गत समधी जी की आरती भी रोज घर घर गवाई जाए जैसे दफ्तर दफ्तर वन्दे मातरम गवाया जाता है। साधो,अब त्रेता युग नहीं है जिसमे समधी अपनी लाड़ली के घर खाना नहीं खाता था, अब कलजुग है कलजुग। अब या तो समधी खाना खायेगा नहीं तो लाड़ली जान खा जायेगी, “नाऊ यू हैव टू डिसाइड व्हाट् यू प्रेफर”। देख लीजिये हमने अंग्रेजी भी बोल दी, अब भी आप नहीं समझें तो हमाई कोई गलती नइयाँ,हम जा से आगे कछु न के सकत। तो दद्दा याद रखो ‘चाहो जो संकट से बचना,चलाओ लाड़ला समधी योजना’।