
अंजनी सक्सेना
काशी विश्वनाथ की महिमा अपरंपार है। उनकी महिमा का वर्णन करना तो सूरज को दिया दिखाने के समान है। काशी जहाँ के कण-कण में शिव विराजमान है वहाँ के काशी विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा भी शब्दों से परे हैं। काशी को मुक्ति का मार्ग माना गया है। हर सनातनी मनुष्य अपने जीवन काल में कम से कम एक बार तो गंगा स्नान और काशी विश्वनाथ के दर्शन अवश्य करना चाहता है। काशी को भगवान शंकर की बसायी गयी नगरी माना जाता है। काशी न केवल धार्मिक नगरी है बल्कि भगवान शंकर एवं माता पार्वती के आपसी सम्मान, स्नेह एवं अटूट बंधन की प्रतीक स्थली भी है जहाँ भगवान शंकर, माता पार्वती की भावनाओं का आदर करते हुए स्वयं उनके साथ यहाँ ज्योर्तिलिंग स्वरूप में स्थापित हो गए। काशी नगरी जहां घर-घर में शिवालय है, जगह -जगह भगवान शंकर के शिवलिंग हैं, वहाँ का कण-कण शिव भक्ति से ओतप्रोत है। यहाँ की सुबह गंगा मैय्या के जयकारे से आरंभ होती है तो अनगिनत शिवालयों के हर-हर महादेव और जय विश्वनाथ के उद्घोष से सारे दिन और रातें गुंजायमान रहती हैं। ऐसे काशी विश्वनाथ की महिमा अनुपम, अनोखी और न्यारी ही है। पुराणों के अनुसार द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सातवें क्रम के काशी विश्वेशर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति सबसे पहले हुई है। मान्यता है कि इसी स्थान पर ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर के मध्य अपनी अपनी श्रेष्ठता के लिए वार्तालाप हुआ तब यहीं एक विशालकाय ज्योति पुंज के रूप में भगवान शंकर प्रकट हुए और निर्णय हुआ कि जो भी इस ज्योति पुंज की उत्पत्ति (आरंभ) और अंत का पता लगा लेगा वही सर्वश्रेष्ठ होगा। तब ब्रह्मा जी हंस का रूप धारण करके स्वर्ग में इस ज्योतिस्तंभ के शीर्ष (ऊपरी भाग) का पता लगाने गए और भगवान विष्णु इस ज्योति पुंज के आधार का पता लगाने वराह रूप धारण करके पाताल की ओर गए। ब्रह्मा और विष्णु दोनों ही इस ज्योतिपुंज के आरंभ और अंत की खोज नहीं कर पाए। विष्णु जी ने इसे स्वीकार कर लिया कि वे इस ज्योति पुंज के मूल को नहीं खोज पाए, लेकिन ब्रह्मा जी ने पाँच साक्षियों के साथ इस स्तंभ के शीर्ष को देखने की बात कही। इस पर रुष्ट होकर भगवान शंकर ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि अब वे इस पृथ्वी पर पूजे नहीं जाएंगें। यहीं पर भगवान विष्णु को सत्य बोलने के कारण सदैव पूजनीय रहने का सम्मान मिला। तभी से देवाधिदेव महादेव इस संपूर्ण चराचर जगत के नाथ के रुप में ज्योतिर्लिंग स्वरूप में यहां प्रतिष्ठित हैं। स्कंद पुराण में काशी विश्वनाथ की महिमा में एक पूरा काशीखंड है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के काशी रहस्य खंड़ एवं श्री शिवमहापुराण के कोटिरुद्रसंहिता अध्याय में भी काशी विश्वनाथ की महिमा का विस्तार से वर्णन है। इनके अलावा ऋग्वेद, रामायण एवं महाभारत में भी काशी विश्वनाथ के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। पौराणिक कथाओं में यह भी वर्णन है कि माता पार्वती एवं भगवान शंकर का विवाह कैलाश पर्वत पर हुआ था। माता पार्वती कैलाश पर नहीं रहना चाहती थी इसलिए वे अपने पिता के घर रहने लगी। वहाँ भगवान शंकर उनसे मिलने आते रहते थे। विवाहिता माता पार्वती को अपने पिता के यहां रहना उचित प्रतीत नहीं होता था। इसलिए उन्होंने महादेव जी कहीं अन्यत्र बसने का आग्रह किया। तब माता पार्वती की भावनाओं का आदर एवं सम्मान करते हुए भगवान शंकर ने काशी नगरी में रहने का निर्णय लिया और संपूर्व विश्व के नाथ बनकर काशी नगरी में माता पार्वती के साथ निवास करने लगे। अनेक धार्मिक मान्यताओं, धर्मग्रंथों एवं स्कंद पुराण आदि ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव की यह नगरी उनके त्रिशूल पर बसी हुई है और जब प्रलयकाल में संपूर्ण पृथ्वी का नाश होगा तब यही एक नगरी शेष बचेगी और पुन: सृष्टि का प्रारंभ यहीं से होगा। काशी के बाबा विश्वनाथ को विश्वेश्वर महादेव के नाम से भी पुकारा जाता है जिसका अर्थ ही संपूर्ण विश्व के नाथ, स्वामी या शासक है। इस प्रकार काशी विश्वनाथ संपूर्ण जगत, संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी हैं। काशी नगरी में उनकी आराधना एवं स्मरण मात्र करने से मनुष्य जन्म जन्मांतरों के दुखों एवं पाप कर्मों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।