
देहरादून। भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को देहरादून में बहुप्रतीक्षित ‘राष्ट्रपति तपोवन’, ‘राष्ट्रपति निकेतन’ और ‘राष्ट्रपति उद्यान’ का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने आगंतुक सुविधा केंद्र, कैफेटेरिया और स्मारिका दुकान सहित विभिन्न सार्वजनिक सुविधाओं का उद्घाटन किया, साथ ही राष्ट्रपति निकेतन में एक एम्फीथिएटर और उद्यान की आधारशिला भी रखी। राजपुर रोड स्थित राष्ट्रपति तपोवन हिमालय की तलहटी में 19 एकड़ में फैला एक अद्वितीय परिसर है, जो आध्यात्मिक विश्राम और पारिस्थितिकी संरक्षण को समर्पित है। यह क्षेत्र 117 पौधों की प्रजातियों, 52 प्रकार की तितलियों, 41 पक्षियों और 7 प्रकार के जंगली स्तनधारियों का घर है। वहीं, राष्ट्रपति निकेतन 1838 से समृद्ध विरासत का परिचायक है, जो पहले गवर्नर जनरल के अंगरक्षकों के ग्रीष्मकालीन शिविर के रूप में उपयोग में था। यह परिसर 21 एकड़ में फैला है और इसमें ऐतिहासिक इमारतें, लिली तालाब, अस्तबल और सुंदर बाग शामिल हैं। राष्ट्रपति उद्यान 132 एकड़ में फैला एक नेट-जीरो सार्वजनिक पार्क होगा, जो दिव्यांगजनों के लिए पूर्ण रूप से सुलभ है और नागरिक सहभागिता का आदर्श केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने एक विशेष पुस्तक का विमोचन भी किया, जिसमें इन परिसरों की 300 से अधिक वनस्पतियों और 170 से अधिक जीव-जंतुओं की प्रजातियों को सूचीबद्ध किया गया है। यह परिसर आम नागरिकों के लिए क्रमशः 24 जून (तपोवन) और 1 जुलाई 2025 (निकेतन) से खुले रहेंगे। राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने देहरादून प्रवास के दौरान राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तीकरण संस्थान का भी दौरा किया। उन्होंने वहां मॉडल स्कूल की विज्ञान प्रयोगशाला, कंप्यूटर लैब और प्रदर्शनी का अवलोकन किया तथा छात्रों से संवाद किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि किसी समाज की प्रगति इस बात से मापी जा सकती है कि वह दिव्यांगजनों के साथ कैसा व्यवहार करता है। उन्होंने सरकार की “सुगम्य भारत” पहल की सराहना की और कहा कि यह दिव्यांगजनों के लिए सुलभ वातावरण और प्रौद्योगिकीय सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने यह भी कहा कि विज्ञान और तकनीक के माध्यम से दिव्यांगजन आज समाज की मुख्यधारा में सशक्त भूमिका निभा सकते हैं। साथ ही उन्होंने समाज से आह्वान किया कि वह हर क्षेत्र में दिव्यांगजनों को प्रोत्साहित करे और उनकी क्षमताओं का सम्मान करे। इस प्रकार राष्ट्रपति मुर्मू की देहरादून यात्रा न केवल सांस्कृतिक और पारिस्थितिक धरोहरों के संरक्षण की दिशा में एक प्रेरणादायक पहल रही, बल्कि सामाजिक समावेशन और संवेदनशीलता को भी नया आयाम प्रदान करती है।