
अमेरिकी संस्था यूएसएडीआई पैसे की ताकत से विकासशील राष्ट्रों में तख्ता पलटने के लिए कुख्यात है। अमेरिकी सरकार ने बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार का तख्ता पलटने के लिए 29 करोड़ रुपए वहां हो रहे छात्र आंदोलन के नाम पर दिए थे। इस संदर्भ में इंडियन एक्सप्रेस की छानबीन से भी बात सामने आई कि सच में अमेरिका ने शेख हसीना का तख्ता पलटने के लिए लाखों रूपये दिए थे। लेकिन जिस तरह के हालात बांग्लादेश में देखने को मिले, वे सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि क्या पढ़ाई कर रहे छात्र इतने हिंसक और नफरती भी हो सकते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि छात्रों का सरकार द्वारा आजादी में हिस्सा लेने वालों के परिजनों को 15 प्रतिशत नौकरियां सुरक्षित की गई थीं। पड़ोसी भारत में तो भी व्यवस्था आरक्षण की है। यद्यपि मंडल कमीशन आयोग की सिफारिशें लागू किए जाने पर कुछ छात्रों ने आहुतियां तक दीं। जन नायक कहे जाने वाले जयप्रकाश नारायण ने भी कांग्रेस के विरुद्ध आंदोलन किए। अन्ना हजारे ने बीजेपी और आरएसएस के समर्थन पाकर दिल्ली के रामलीला मैदान में रैलियां की थीं। लेकिन किसी भी आंदोलन में इतनी हिंसा नहीं देखी गई। न बहुसंख्य हिंदू समाज ने अल्पसंख्यकों पर खूनी हमले ही किए, जैसा बांग्लादेश में छात्र आंदोलन के समय देखने को मिले थे। बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों, इस्कॉन सहित हमले और आगजनी की खबरों ने भारत को विचलित कर दिया। फिर भी भारत सरकार द्वारा कोई प्रतिक्रिया कभी भी नहीं देखने में आई। मगर बांग्लादेश में तो प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचने की भी खबरें आईं। प्रधानमंत्री आवास जलाने, तोड़फोड़ और कीमती वस्तुओं की लूट की जानी अद्भुत थी। यही नहीं, अवामी लीग को चुनाव में बहुमत के बावजूद पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाबी मुसलमान शासकों ने मुजीबुर्रहमान को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने से रोक लगा दी। परिणाम स्वरूप बांग्लादेश में पश्चिमी पाकिस्तान के हुक्मरानों के खिलाफ रोष जरूर देखा गया, लेकिन किसी तरह की तोड़फोड़ और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते नहीं देखा गया था। पश्चिमी पाकिस्तान के हुक्मरानों ने तब के पूर्वी पाकिस्तान में मुजीबुर्रहमान के स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए सेना भेज दी। सेना ने नरसंहार करना शुरू कर दिया। मकसद साफ था, अवामी लीग के सारे नेताओं और कार्यकर्ताओं को हमेशा के लिए नींद में सुला देना। तात्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तब सादे वेश में भारतीय सैनिकों को बांग्लादेश में उतार दिया। नतीजन, पाकिस्तानी फौज को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा। 95 हजार पाकिस्तानी सैनिक बंदी बना दिए गए और तब बड़बोले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री भुट्टो को शिमला समझौते पर आना ही पड़ा।
सवाल यह है कि बांग्लादेश को आजादी दिलाने वाले जिन्हें बंग बंधु कहा गया था, उनकी मूर्ति सहित भारतीय सेना के बहादुरों की तस्वीरें लगवाकर तब मुजीबुर्रहमान ने एहसान माना था और याद दिलाते रहने के लिए मूर्तियां और तस्वीरें लगवाई थीं। बांग्लादेश को आजाद कराने के लिए आंदोलन और संघर्ष करने वाले बंगबंधु और भारतीय सेनाओं के चित्र-मूर्तियां तोड़ने को किसने प्रेरित किया? निश्चित ही छात्रों ने ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनका आंदोलन पाकिस्तान परस्त आतंकवादियों और अपराधियों द्वारा हाईजैक कर लिया जाएगा और अपने ही देश को आजाद कराने के लिए कुर्बानी देने वालों के नाम-ओ-निशान ही मिटा दिए जाएंगे। अपने ही देश में महात्मा गांधी का विरोध नहीं किया जाता? उनको गालियां नहीं दी जाती? महात्मा गांधी के हत्यारे को आदर्श माना नहीं जाता? जिस प्रकार महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या करने के बावजूद उनकी विचारधारा, उनके सत्य और अहिंसा के आदर्श को खत्म नहीं किया जा सकता। दुनिया जानती है कि महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलकर ही साउथ अफ्रीका को नेल्सन मंडेला ने आजादी दिलवाई थी। भले ही क्रूर ब्रिटिश सरकार ने मंडेला को तीन दशक तक जेल में कैद कर रखा हो, लेकिन महात्मा गांधी के सत्य अहिंसा मार्ग पर चलने से नेल्सन मंडेला को तानाशाह सरकार रोक नहीं सकी। आप किसी व्यक्ति को मार सकते हैं, लेकिन उसके आदर्श और विचारों की हत्या नहीं कर सकते। ठीक यही स्थिति बांग्लादेश में थी। छात्र आंदोलन तो मात्र बहाना था। विपक्ष के गुंडों ने तोड़फोड़ मचाई। आगजनी की। विपक्ष समर्थक पुलिस वालों को बंगबंधु की मूर्ति तोड़ते देखा जाना प्रमाणित करता है कि बांग्लादेश में विपक्षी गुंडों ने ही तोड़फोड़ की। आगजनी की। हिंदुओं के विरुद्ध जितनी भी हिंसाएं की गईं, छात्रों द्वारा नहीं की जा सकतीं। चूंकि पाकिस्तान को अमेरिका धन और युद्धक हथियार हमेशा भारत के खिलाफ देता रहा था, इसलिए गुंडों और विपक्ष को अमेरिका ने हिंदुओं को टारगेट करने की प्रेरणा दी होगी। अपने अंगरक्षकों और खास लोगों को भारत ने शरण देकर अपनी महान परंपरा का ही निर्वहन किया है।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के भारत आने के बाद अंतरिम सरकार बनी, जिसका नेतृत्व मुख्य सलाहकार के रूप में डॉ. मुहम्मद युनुस कर रहे हैं। यह युनुस अमेरिकी एजेंट है। संभव है, इसके परामर्श के बाद ही बांग्लादेश में शेख हसीना को अपदस्थ करने के लिए 21 लाख डॉलर दिए हों, अमेरिकी संस्था यूएसएडीआई ने। जहां तक युनुस की बात है, वह यूएसएडीआई में प्रमुख पद पर रहा अमेरिकी दलाल है। युनुस ने कुल 21 सलाहकारों को नियुक्त किया है। यूसुफ को माइक्रोफाइनेंस का जनक कहा जाता है, जिसे बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने संसद भंग कर अंतरिम सरकार का प्रमुख घोषित किया है। इतने समय बीत जाने के बावजूद अंतरिम सरकार के मुखिया युनुस लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन नहीं कर पाए, जिसमें उनकी अक्षमता दिखाई देती है। हिंदुओं पर हमले अब भी जारी हैं। शायद बांग्लादेश के विषम हालात देखकर बांग्लादेश के आर्मी चीफ जनरल वकार उज्ज जमन ने बांग्लादेशी नेताओं को अत्यंत कठोर धमकी दे डाली है। आर्मी चीफ ने चेतावनी तब दी है, जब वे 2009 में पीलखाना में मारे गए अफसरों की याद में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने साफ चेतावनी देते हुए कहा, “आप सभी नेताओं को चेतावनी देते हुए कह रहा हूं। बाद में आप नहीं कह सकते कि मैंने चेताया नहीं।” उन्होंने कहा, “कानून व्यवस्था के कमजोर होने के कुछ कारण हैं। पहली वजह यह है कि हम लड़ने में व्यस्त हैं। हम एक-दूसरे को नाराज़ करने में व्यस्त हैं।” आगे कहा, “जब हितधारक ही आपस में आरोप लगाने में व्यस्त हैं तो बदमाश इस स्थिति का फायदा उठा रहे हैं। उन्हें लगता है कि वह कुछ भी कर सकते हैं। बांग्लादेश में भी पाकिस्तान की तरह सेना द्वारा तख्ता पलट का इतिहास रहा है। बताया जाता है कि आर्मी चीफ पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के रिश्तेदार लगते हैं। संभव है, लॉ एंड ऑर्डर की हालत यदि ऐसे ही खराब चलती रही तो सेना राष्ट्र की कमान अपने हाथ में ले ले। दरअसल, शेख हसीना के खिलाफ छात्र आंदोलन का कारण केवल आरक्षण ही हो नहीं सकता। जैसे भारत में बीजेपी सरकार चुनाव आयोग को गुलाम बनाकर लगातार चुनाव दर चुनाव बेइमानी से जीत रही है, कुछ ऐसा ही बांग्लादेश के आम चुनाव में शेख हसीना ने भी किया था।




