प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार 11वीं बार लाल किले भाषण दिया, जिसमें उन्होंने देश के सामने उपस्थित विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार साझा किए। हालांकि, इस बार उनके भाषण का स्वरूप कुछ अलग था। प्रधानमंत्री ने अपनी बात रखते हुए पिछली सरकारों की आलोचना की, जिसमें उन्होंने विशेष रूप से पूर्ववर्ती शासनकाल के आतंकवादी हमलों और उनके बाद की प्रतिक्रियाओं का उल्लेख किया। मोदी ने कहा कि पिछली सरकारें आने वाली पीढ़ियों की चिंता किए बिना कार्य करती थीं और देश की सुरक्षा पर पर्याप्त ध्यान नहीं देती थीं। लेकिन उनके भाषण में यह आलोचना बहुत हावी रही, और इसके विपरीत, उन्होंने देश के लिए नए संकल्प या वादे नहीं किए, जो कि आमतौर पर इस महत्वपूर्ण दिन पर अपेक्षित होते हैं। इसने कई लोगों को यह सोचने पर मजबूर किया कि क्या लाल किले का मंच राजनीतिक आलोचना के लिए उचित था, या इसे एक राष्ट्रीय दिशा दिखाने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए था। इतिहास को देखते हुए, यह तथ्य नहीं झुठलाया जा सकता कि अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकारों के समय में भी देश के सामने कठिन चुनौतियाँ थीं, जैसे कि संसद पर हमला और कांधार विमान अपहरण। लेकिन इन घटनाओं के बावजूद, उन सरकारों ने देशहित में महत्वपूर्ण कार्य किए और राष्ट्र की प्रगति को प्राथमिकता दी। आजादी का दिन हर प्रधानमंत्री के लिए राष्ट्र की उन्नति और जनता की पीड़ा पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर रहा है। परंतु इस बार प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में विपक्ष की आलोचना अधिक हावी रही। उन्होंने विपक्ष को दिशाहीन बताया, जबकि विपक्ष का तर्क है कि वे मुद्दों की बात करते हैं और मोदी सरकार इनसे भागती है। यह भी देखा गया कि संसद में भी सरकार की तरफ से मुद्दों पर सार्थक विमर्श कम ही होता है। प्रधानमंत्री का भाषण इस बार एक गंभीर राजनीतिक भाषण की तरह अधिक प्रतीत हुआ, जहाँ उन्होंने अपनी उपलब्धियों की बजाय पूर्ववर्ती सरकारों की आलोचना पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। जबकि इस अवसर पर, देश को यह बताना अधिक महत्वपूर्ण होता कि सरकार ने अब तक क्या हासिल किया है और आगे के लिए क्या योजनाएं हैं। चीन के बढ़ते दबदबे, भारत की सीमाओं पर उसकी गतिविधियों, और बांग्लादेश में हिंदुओं पर कथित अत्याचार जैसे मुद्दों पर भी प्रधानमंत्री ने विस्तार से चर्चा नहीं की। इसके अलावा, उन्होंने एनआरसी और सीएए जैसे विषयों को उठाया, जो इस अवसर पर अनावश्यक प्रतीत हुआ। प्रधानमंत्री से अपेक्षा थी कि वे देश को रोजगार, शिक्षा, किसानों की आय, और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की चुनौतियों पर बात करेंगे। साथ ही, उन्हें यह बताना चाहिए था कि इन मुद्दों पर सरकार आगे क्या करेगी। लेकिन इस बार उनके भाषण में वादों और गारंटी की कमी थी, और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी उन्होंने कोई उल्लेख नहीं किया। अंततः यह सवाल उठता है कि इस बार प्रधानमंत्री ने देशवासियों से कोई नया वादा क्यों नहीं किया और अपनी सरकार की उपलब्धियों को लेकर अधिक चर्चा क्यों नहीं की। लाल किले से दिए गए भाषण में राष्ट्रीय मुद्दों पर गंभीरता से बात करने का अवसर था, लेकिन यह अवसर राजनीतिक भाषणबाजी में बदल गया।